सुधार, केवल और केवल लंबी सजाएँ देने से नहीं होता
किसी को जेल भेजना अपने आप में एक दंड है । जेल लगातार सजा के लिए नहीं है । अपराध रोकने और सुधार लाने के लिए जेल अंतिम स्थान है । किसी को अंतिम श्वास तक जेल में ही रहने की सजा करना, मानव हृदय के परिवर्तन से विश्वास खो देने जैसा है ।
जेल में रहनेवाले हर व्यक्ति को जेलमुक्ति देकर सुधरने, बदलने का अवसर देना चाहिये । जेल में रहनेवाला हर व्यक्ति दोषी नहीं होता । कई निर्दोष, निरपराध, बेगुनाह लोग भी जेल में होते हैं ये वास्तविकता है । निर्दोष, बेगुनाह, निरपराध लोगों को जेल में अपराधी, दोषी, गुनहगारों की तरह लंबे समय तक रहना पड़े और उनको जमानत भी न मिले – ये कितनी बड़ी अमानवीयता, करुणता और अव्यवस्था है !
मैं चाहता हूँ कि प्रत्येक जेल में रहनेवाले कैदियों को स्नेह, सहानुभूति और सहयोग से परिपूर्ण नेतृत्व का लाभ मिलना चाहिये । क्षमाशील, प्रभावशाली, संवेदनशील नेतृत्व से ही हृदय परिवर्तन संभव है ।
सुधार, केवल और केवल लंबी सजाएँ देने से नहीं होता । आंतरिक परिवर्तन, प्रायश्चित होने के बाद जेलवास निरर्थक है । जीवन में हुई एक-दो भूलों का जीवनभर प्रायश्चित, बार-बार प्रायश्चित करते रहना भी कहाँ तक उचित है !