जेल, किसी भी तरह समय व जीवन की बर्बादी का केन्द्र नहीं बनना चाहिये
जेल, किसी भी तरह समय व जीवन की बर्बादी का केन्द्र नहीं बनना चाहिये
जेलों के अंदर ऐसे अनगिनत असंख्य लोग कैदी बनकर, अपराधियों की नाईं समय व जीवन बर्बाद कर रहे हैं कि जिनका अपराध साबित ही नहीं हुआ ! न्यायालयों द्वारा उनका दोष सिद्ध किया ही नहीं गया ! और उनकी संख्या दोषित कैदियों से कहीं ज्यादा है ! उनके समय का योग्य प्रकार से आयोजन न होने से वे खतरनाक अपराधी बन सकते हैं । और, जैसे आम की टोकरी में, एक आम खराब हो तो उसे अच्छे आमों के बीच से हटाकर दूर कर दिया जाता है ठीक वैसे ही अपराधी कैदियों से आरोपी कैदियों को दूर या अलग रखा जाना चाहिए । इतना ही नहीं लंबे समय तक विचाराधीन आरोपी (undertrail prisoner) बनकर वे जेल में लंबा समय न रहें, उनकी शीघ्र जमानत न्यायालयों को मंजूर करनी चाहिये । जो जमानत की याचिका न्यायालय में दायर न कर पाए उनको जेलवास के 5-6 महीने बाद स्वाभाविक जमानत पर रिहा कर देना, आवश्यक है । ताकि, उनके बिगड़ने की संभावनाएँ कम हो जाए और समय तथा जीवन की जेल में बर्बादी रुक सके ।
जेल, किसी भी तरह समय व जीवन की बर्बादी का केन्द्र नहीं बनना चाहिये । इसमें दोष कैदियों का नहीं, व्यवस्थाओं का है ।