न्यू इंडिया के लिए न्यू जेल मेन्युअल चाहिए
सेवा निवृत्त न्यायाधीश आनंद नारायण मुल्ला के अध्यक्षीय पद के नीचे रची गई जेल सुधार की अखिल भारतीय समिति (1980-83) का रिपोर्ट बहुत ही महत्वपूर्ण है । इस रिपोर्ट में भारतीय जेल प्रणाली की घोर दुर्व्यवस्था और अधःपतन का पूरा वृतांत है । साथ ही उसमें ऐसे निर्देश और सुझाव हैं कि जिसका अमल करके भारतीय जेलों की नरकागार स्थिति को सुधारा जा सकता है । किसी समय केन्द्र सरकार ने इस रिपोर्ट को सिद्धांत के स्वरूप में स्वीकार कर लिया था और वर्तमान जेल व्यवस्थाओं में उसकी सिफारिशों, सुझावों, निर्देशों को समावेश करने की इच्छा भी प्रगट की थी । इसीलिए आज भारत की जेलों के लिए इस समिति के रिपोर्ट को ही निर्देशक नियमावली के रूप में स्वीकार करना चाहिये ऐसा डॉ. किरण बेदी का मानना है और मैं इससे सहमत हूँ । भारत की जेलों का संचालन पुरानी नियमावली, कि जो स्वतंत्रता से पहले भारत में ब्रिटिश हितों के रक्षण के लिए उपयोग में आती थी, उस नियमावली के अनुसार भारत की जेलों का संचालन नहीं होना चाहिये ।
इस रिपोर्ट में मुख्य रूप से इस बात को सुनिश्चित करना जेल अधिकारियों का कर्तव्य माना गया है कि कैदियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन न हो, इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिये । एक अधिक व्यापक दृष्टि प्रदान करते हुए इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जेलों का प्रेस के साथ भी संवाद होना चाहिये क्योंकि तभी ही उनमें चल रहा कार्यभार, बाहर के संसार के लिए प्रामाणिक रूप से पारदर्शी बन सकेगा और समाज उन जेल में रहनेवाले कैदियों के साथ संपर्क रख सकेगा कि जो अलग कर दिये गये हैं ।
दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है कि अनेक मुख्य न्यायालयों ने जेल प्रशासन को निर्देश करते हुए कहा है कि कारावास व्यवस्था में मानवीय रहन-सहन को लागू किया जाये और कैदियों को बाहरी समाज के साथ जोड़ा जाए ।
यहाँ सेवा निवृत्त न्यायाधीश आनंद नारायण मुल्ला के अध्यक्षीय पद के तहत गठित जेल सुधार की अखिल भारतीय समिति (वर्ष 1980-83) के रिपोर्ट में से एक उदाहरण प्रस्तुत है । (अध्याय – 3, धारा 3.45.1)
“पुरातन काल से अपराध एक सामाजिक समस्या रही है और सामाजिक समस्याओं को केवल कानूनों से या प्रशंसनीय लक्ष्यों के विज्ञापनों द्वारा हल नहीं किया जा सकता । कारावासों में कोई भी आधुनिक या प्रगतिशील व्यवस्था तब तक लागू नहीं की जा सकती, जब तक समाज का एक बड़ा हिस्सा सुधार और पुनर्वास का दृष्टिकोण अपना नहीं लेता । प्रजा मत कुछ इस तरह बनाना होगा कि जनता भटक गये लोगों को समाज में ही पुनर्वास स्वीकार कर लें । सामाजिक और आर्थिक समस्या के रूप में अपराध के सर्वव्यापी परिणामों के बारे में लोगों को जानकारी देकर ही यह लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है । लोगों को अपराधियों के साथ व्यवहार का प्रगतिशील और आधुनिक उपायों की जानकारी देना भी जरूरी है इसीलिए हमारी सिफारिश (सुझाव) है कि समाज में पुनर्वास के लिए अनुकूल संस्कृति के प्रवर्तन को लक्ष्य में रखकर जेल प्रशासन एक नियमित योजना बनाकर उसे लागू करे ।
स्पष्ट है कि इस प्रकार की शिक्षा के मौलिक प्रयास में प्रेस (मीडिया) बहुत ही यथार्थवादी भूमिका अदा कर सकती है । इसी बात को समझते हुए डॉ. किरण बेदी ने आई.जी. (जेल) के कार्यकाल के दौरान तिहाड़ जेल में प्रचार-प्रसार माध्यमों को जेल के अंदर प्रवेश करके परिवर्तन देखने और उसका कवरेज दुनिया को दिखाने की इजाजत दी थी । जेलों के अंदर कैदियों की दुनिया, उनकी अच्छाईयाँ, उनकी वेदना, पीड़ा, समस्या भी जनता के सामने पहुँचनी चाहिए और इसीलिए मीडिया (प्रेस) को जेलों में प्रवेश करने की इजाजत (छूट) मिलनी चाहिये ।”
जेल, मीडिया के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र के रूप में कब तक और क्यों रहनी चाहिये ? अतः अब, राजनीति और नौकरशाही, दोनों को प्रयत्नपूर्वक यह दो काम करने चाहिये । एक तो, मुल्ला समिति के रिपोर्ट के मुताबिक जेलों का संचालन हो और दूसरा, प्रेस (मीडिया) को भी जेलों से जोड़ा जाए । भारत की स्वतंत्रता से पहले की जेल नियमावली (Jail Manual) को अमल में लाते हुए जेलों का संचालन करते रहना अंग्रेजों की मानसिक गुलामी को स्वीकार करने के सामन है । अतः मुल्ला समिति के रिपोर्ट को ही जेल की निर्देशक नियमावली के रूप में लागू किया जाए । तत्काल प्रभाव से मुझे यह जानकारी मिली है कि भूतपूर्व जेल सुप्रीटेंडेंट ‘श्री एम.एस. संघवी’ ने नया जेल मेन्युअल बनाया था जिसे गुजरात सरकार ने लागू नहीं किया । (हिम्मत KB. – 214/215), [3/2/2018]
जेल नियमावली (Jail Manual) को फिर से संपूर्ण लिखना और वर्तमान समय के अनुसार बनाना जरूरी है जिससे वह ब्रिटिश उपनिवेशवाद के दिनों से नहीं अपितु वर्तमान भारत के यथार्थ के साथ सच्चाई से जुड़ सके । वर्तमान रूप में तो जेल प्रशासन को चाहिए कि जब तक नया जेल मेन्युअल नहीं बनता तब तक पुराने जेल मेन्युअल को शब्दार्थ स्तर पर नहीं, बल्कि हेतु के स्तर पर लेना योग्य समझते हुए मुल्ला समिति के निर्देशों-सुझावों को दृष्टि में रखते हुए जेलों का संचालन करें ।
New India, नये भारत में
New Jail Manual नई जेल नियमावली ही चाहिए ।
भूतपूर्व तिहाड़ जेल की I.G. (जेल) डॉ. किरण बेदी ने लिखा है कि “मुझे लगता है कि जेलों में नई विचारधारा लाने की जरूरत है और उसे बदलना एक चुनौती है ।” [4/2/18]