शरद पूर्णिमा पर नारायण साँईं का संदेश…
आप सभी को शरद पूर्णिमा की हार्दिक बधाई देता हूँ । नवरात्र व दशहरा (विजयादशमी) के बाद अब दीपावली के प्रकाश पर्व की बेसब्री से प्रतीक्षा हो रही है ।
शरद पूर्णिमा के बाद तोड़े गए आँवलों का महत्व है और इन आँवलों से बना च्यवनप्राश बहुत गुणकारी होता है ।आयुष्य आरोग्य वर्धक आँवला किसी न किसी रूप में पूरे वर्ष हम सेवन कर सकते हैं !
समय बदल रहा है… हालात एक जैसे नहीं रहते ! प्रदूषण सिर्फ बाहर ही नहीं, वैचारिक प्रदूषण भी तेजी से बढ़ रहा है और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या के साथ ही यह समस्या भी है ही – और इन समस्याओं से मुक्त होने के लिए शांति, प्रेम, करुणा, स्नेह, सामंजस्य, सौजन्य और आत्मभाव की नितांत आवश्यकता है ।
गीता ने कहा –
“आत्मवत् सर्वभूतेषु, यः पश्यति सः पण्डितः”
वही एक देखता है जो सभी में आत्मभाव का दर्शन करता है ।
‘जिधर देखता हूँ वहीं तू ही तू है…’
तुझमें राम मुझमें राम सब में राम समाया है… ऐसी व्यापक उदात्र दृष्टि कि जिसमें आनंद ही आनंद है, मौज ही मौज है – हमें विकसित करनी होगी !
चंद्रमा की शीतल किरणों में बैठकर, चंद्रमा के समक्ष हो सके तो थोड़ी देर ध्यान त्राटक करते हुए – अपने मन को शीतलता से परिपूर्ण कर सकते हैं । मन के देवता है चंद्रमा । तो पूर्ण चंद्रमा को निहारते-निहारते अपने मन को भी, स्वयं को भी निहारना, देखना ठीक से सीख लें हम !
किसी ने कहा है-
जिंदगी के आइने में तुमने खुद को देखा है कभी ।
यह जिंदगी है कुछ हकीकत और चंद सपने ।।
कभी डोली तो कभी अर्थी निकलती है जिंदगी में ।
थोड़ी खबर, थोड़ी बेखबर, यही तो जिंदगी है ।।
तो अपने आप की खबर भी अवश्य लें । लोग दुनिया की तो बहुत खबरें रखते हैं लेकिन अपनी खबर से बेखबर रहते हैं । काश ! स्वयं को जानें, समझें और शरद पूर्णिमा की इस रात्रि में शीतलता का अनुभव करके मन को शांत, शीतल, प्रसन्न बनाने का प्रयास करें । मंगलमय पूर्णिमा !
– आपका नारायण साँईं