दृढ़ वासना को ग्रहण करने पर ही अंतवाहक से अधिभौतिक होकर शरीर आदि प्राप्त होते हैं । चित्तवृत्ति स्फुरण से रहित होकर अपने स्वरूप की ओर आती है तब केवल अपना ही स्वरुप भासित होता है और परम आनंद अद्वैत रूप दिखता है ।
(Holding onto intense cravings takes the being from subtle to physical body. The thought wave of the Chita becomes free of ripples and arrives at its true self. Then only one’s own self reflects and the Supreme bliss becomes visible as free of Dualities.)