मैं तो विशेष रूप से स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूँ जिसे अपनी माँ का बचपन में साथ – पास – संरक्षण मिला पर बाद में दूरी होने के बावजूद भी अगम्य अतुल्य स्नेह संरक्षण – कृपा संरक्षण मिलता रहा, बढ़ता रहा और ये आज भी बरकरार है । आपकी परोक्ष संन्निधि में आपका पुत्र मुसीबतों के बीच, जेल में होने के बावजूद भी सम, प्रसन्न एवं स्वस्थ है ये आपकी कृपा का प्रमाण नहीं तो और क्या है ?

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