ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने, धरती को बचाने,
पर्यावरण की रक्षा करने, प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए
एक अति महत्वपूर्ण पायलट प्रोजेक्ट
– पूज्य श्री नारायण साँईं जी
(1.) “सूर्य को आइना दिखाया जाए”
डॉ. ये टाओ (Dr Ye Tao), कि जो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के प्रमुख शोधकर्ता हैं और मिरर्स फोर अर्थस एनर्जी रीडिस्ट्रिब्यूशन संस्था मीयर्स (MEER) के संस्थापक हैं । उनका कहना है कि – केवल प्रदूषण रोकना ही उपाय नहीं है, इससे तो और तेजी से धरती तपेगी । कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए पहले धरती के एक हिस्से को सूरज की रोशनी से गरम होने से बचाना होगा और इसका आसान और सबसे सस्ता उपाय सूरज को आइना दिखाना होगा ।
भारत, चीन और अफ्रीका में वायु प्रदूषण एकदम रोक दिया जाए तो इन इलाकों में गर्मी एकदम बढ़ जायेगी । ऐसी स्थिति में एक दशक में ही धरती का तापमान 2 डिग्री की लक्ष्मण रेखा को पार कर जाएगा । कुछ वैज्ञानिकों का तो मानना है कि ये रेखा पार हो चुकी है यानी प्रदूषण रोकना मात्र उपाय नहीं है ।
सूरज को आइना दिखाना, यह उपाय कारगर इसलिए हो सकता है कि ग्लोबल वार्मिंग का गणित बताता है कि उपाय ऐसा हो कि जिसे लागू करने में अगर एक यूनिट एनर्जी लग रही हो तो 100 यूनिट गर्मी जलवायु से घटे । फॉसिल फ्यूल ही हमारे पास एकमात्र विश्वसनीय ईंधन का स्त्रोत है जो तत्काल इस्तेमाल हो सकता है । इन बंधनों के साथ सूरज की रोशनी को वापस अंतरिक्ष में भेजना ही एकमात्र उपाय संभव है । पहले ये काम धरती पर पसरी बर्फ की सफेद चादर करती थी, जो अब बहुत सिकुड चुकी है । उसकी पूर्ति के लिए शीशे की आर्टिफिशियल चादरों से सस्ती कोई और चादर बन ही नहीं सकती । जितने शीशे चाहिए, वे 800 रुपये वर्ग मीटर से भी कम कीमत पर बन सकते हैं । इन्हें लगाने के लिए मेटल की बजाए बांस का प्रयोग भी किया जा सकता है । दुनिया की जीडीपी का 3% इस प्रोजेक्ट की लागत हो सकती है । अगर सोलर एनर्जी भी जोड़ दें, तो लागत 1% पर सिमट जाएगी ।
सूरज को आइना दिखानेवाले इस प्रोजेक्ट को गरीबों के झोपड़ों से शुरू कर सकते हैं ताकि गर्मी में उन्हें ठंडक मिले । खेतों में लगा सकते हैं ताकि उर्वरता बरकरार रहे, फसलों में कम पानी लगे और पैदावार बढ़ सके । किसी इलाके में 10% रिफ्लेक्टिविटी बढ़ा दी जाए, तो वहाँ तापमान 1 से 7 डिग्री तक कम हो जाता है । अगर आइने लगें तो सिंचाई में 30% पानी कम लगेगा । 10 सेमी गहराई तक जमीन में नमी बरकरार रहेगी ।
जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में भारत का प्रमुख योगदान अनिवार्य है । उक्त प्रोजेक्ट भारत में शुरू हो और सफलता मिलने पर पूरे एशिया में इसे शुरू करने की योजना बनाई जा सकती है ।
(2.) हिलींग ग्रीन्स – कुदरती प्राकृतिक वातावरण में लोग समय बिताएं और हरियाली के बीच कार्य करें, निवास करें जिससे सकारात्मकता बढ़े, स्नायुओं को आराम मिले और ब्लड प्रेशर घटाने में भी मदद मिले ।
(3.) प्रतिदिन सूर्य स्नान करना – सुबह 7:30 से 9:30 के बीच की धूप में अधिक से अधिक शरीर के अंगों पर सूर्य किरणें लेना (सूर्य स्नान करना) इससे मूड सुधरता है और शरीर में विटामिन डी की कमी नहीं होती ।
(4.) अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगाना, धरती पर हरियाली बढ़ाना । लोगों को जाग्रत करना । अपने जन्म दिवस, विवाह दिवस पर अमुक संख्या में पौधारोपण का संकल्प करना ।
(5.) पानी का उपयोग घटाना और गंदे पानी के उत्पादन पर नियंत्रण लगाने का प्रयास करना ।
(6.) ऊर्जा की बर्बादी को रोकना । टालना ।
(7.) डिजिटलाइजेशन द्वारा कागज के इस्तेमाल में कमी करना ।
(8.) प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और न्यायपूर्ण उपयोग के लिए स्थानिक लोगों को प्रशिक्षित करना ।
(9.) घर के आसपास आरोग्यवर्धक जड़ी-बूटियाँ लगाना जैसे कि – तुलसी, पुदीना, मीठा नीम, सहजन, आंवला, एलोवेरा, नींबू, गिलोय आदि । जिससे रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़े, मुख्यतया बीमारियों में दवाई घर के आंगन से मिल सके ।
(10.) विश्व इस समय इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रोनिक्स वेस्ट मैनेजमेंट क्राइसिस में से गुजर रहा है ऐसे वक्त में बैटरी आधारित व्हीकल्स भी भविष्य में खतरा पैदा करेंगे क्योंकि अंततः उसे भी जब लैन्डफिल के रूप में जब डम्प किया जाएगा तब उनमें से अत्यंत विषैले पदार्थ पर्यावरण को नुकसान पहुँचायेंगे जो तमाम सजीवों के लिए खतरा होगा । ऐसे में EV vehicles भी शत-प्रतिशत समाधान नहीं है । ऐसे में रिड्यूस, रीकवर, रीयूज और रिसाइकल – ये चार R का महत्व है । इस तरह, वास्तव में पर्यावरण की अगर रक्षा करनी हो तो ग्रीन कवर या ग्रीन फ्यूअल जैसे एक-दो पहलूओं के बदले अनेकविध पहलूओं पर हर स्तर पर कार्य करना जरूरी है ।
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(11.) सुप्रीम कोर्ट द्वारा रुलिंग दिए जाने पर अब विज्ञान और इंजीनियरिंग क्षेत्र में पर्यावरण जागृति के विषय पर कुछ कोर्सेस को आवश्यक किया गया है । व्यक्तिगत स्तर पर नागरिकों को अपनी ज़िम्मेदारी समझकर पर्यावरण की रक्षा करें ये इच्छानीय, अपेक्षित है । जैसे कि पेट्रोल – डीजल के बदले बैटरी ऑपरेटेड वाहन उपयोग करने की बजाय वाहन का इस्तेमाल घटाना या सार्वजनिक वाहन का उपयोग बढ़ाना । इस ‘शेरिंग व्हीकल युज़’ के प्रति लोगों में अवेरनेस लानी होगी ।
(12.) छात्र – छात्राऐं ( स्टूडेंट्स ) एन वाय एन्वायर्नमेंटल साइंस में ग्रेजुएट या पोस्ट ग्रेजुएट हो सकते हैं या फिर एन्वायर्नमेंटल साइंस में इंजीनियरिंग में एम. ई. या एम. टेक भी बन सकते हैं । अधिकतर तमाम कम्पनियों के लिए पर्यावरणीय सुरक्षा के क़दम आवश्यक होने के कारण इस क्षेत्र में स्कोप ज़्यादा होने से प्रतिमाह 75,000 रुपये से लेकर 1,25,000/- रुपये तक का वेतन मिल सकता है । अतः इस क्षेत्र में केरियर बनाने के लिए स्टूडेंट्स को प्रेरित / जागरुक करना अनिवार्य है ।
(13.) बिल्डर्स, मकान निर्माताओं को भी ‘हरित – घर प्लान डिज़ाइन’ बनाने को प्रेरित किया जाए जैसा कि सूरत ( गुजरात ) में पालगाँव के चिराग धनसूख भाई पटेल ने 8500 स्कवेर फुट के तीन मंज़िला के घर में 400 से अधिक छोटे बड़े इनडोर पौधे लगाए हैं । जिसकी वजह से 8 से 10 डिग्री तापमान में कमी आती है । हर बिल्डर या व्यक्ति को पर्यावरण रक्षा का ख्याल रखते हुए निर्माण करना चाहिए प्लान बनाना चाहिए ।
(14. )हाइड्रोपोनिक खेती को अपनाना बढ़ावा देना हाइड्रोपोनिक तकनीक से बिना मिट्टी के खेती की जा सकती हैं । और इस तकनीक से उत्पादित सब्ज़ियां बेहद सेहतमंद होती हैं । इसमें कीटनाशक का प्रयोग नहीं होता इसलिए यह पूर्णतः ऑर्गेनिक है । उत्तर प्रदेश के इटावा शहर से क़रीब 8 किलोमीटर दूर हाईवे किनारे फूफइ गाँव में पूर्वी मिश्रा ने बंधन में एमबीए करने के बाद अब अपने इस गाँव में यह हाइड्रोपोनिक खेती करना शुरू किया है । कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बना रही है ।प्रतिमाह लाखों की कमाई हो रही है ।विशुद्ध रूप से प्राकृतिक यह सब्ज़ियां और आर्क लेट्युस, ब्रोकोली, पाक चाय, चेरी टोमेटो, बेल पेपर और बेसिल आदि की खेती 5 हज़ार स्क्वेयर फ़ीट में 25 लाख के पॉली हाउस में हो रही है । पानी और नारियल का स्क्रैप बुरादा ही इस खेती के लिए के लिए पर्याप्त है । मिट्टी, यूरिया और रासायनिक खाद की बिलकुल ज़रूरत नहीं है ।
इससे तो साइलस फ़ार्मिंग भी कहते हैं । एन एफ टी टेबल में पानी जाता है बड़े बड़े शहरों से इन सब्ज़ियों के ऑर्डर आते हैं । बिना मिट्टी, रासायनिक खाद के तैयार हुई सब्ज़ियां आरोग्य के लिए भी हितकारी हैं ।इस तकनीक को अधिक से अधिक बढ़ावा देने की ज़रूरत है ।
(15.) प्लास्टिक वेस्ट से सड़क बनाना :
प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट हर बड़े शहरों में लगना चाहिए । प्लास्टिक वेस्ट विश्व भर की समस्या है इस समस्या को अवसर में बदलते हुए गुजरात के भटार में प्लांट लगाया है जहाँ प्लास्टिक वेस्ट के दाने बनते हैं । और ये दाने बिकते हैं इतना ही नहीं पिछले 4 साल में 70000 मैट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट का रिसाइकल करते हुए 21 किलोमीटर प्लास्टिक की सड़क बनाइ गई । युनाइटेड नेशन डेवलपमेंट प्रोग्राम ने भी इस तकनीक की सराहना की है ।
प्रतिमाह प्रतिदिन इस शहर में 220 मैट्रिक टन प्लास्टिक वेस्ट निकलता है । जिसमें से 65-70 मैट्रिक टन कचरा के संग्रह का रिसाइकल के लिए प्रोसेस किया जाता है इसमें 400 से अधिक लोग कचरे का सेग्रिगेशन करते हैं । अतः हर शहर में वेस्ट मैनेजमेंट सही तरीक़े से होना चाहिए ।
16. प्लास्टिक की वेस्ट बोटल से घर, बग़ीचे की बेंच आदि बनाना –
आसाम के गुवाहाटी के स्कूल के छात्रों ने बॉटल – ब्रिक्स तैयार की है और महाराष्ट्र औरंगाबाद की 2 छात्राओं ने नामिता कपाले व कल्याणी भारंभे ने कूड़े में से कमाल की हैं । पाँच घर बनाए हैं । इसी तर्ज़ पर विस्तार से कार्य हो सकता है । सोशल मीडिया पर वेस्ट टू बेस्ट सर्च करके कई वीडियो देखे जा सकते हैं ।
उपरोक्त सभी मुद्दों पर अगर जनता सभी सरकारें व सभी राज्य ध्यान देवें तो अवश्य ग्लोबल वॉर्मिंग से रक्षा हो सकती है और विश्व की मानवता की पर्यावरण की रक्षा हो सकती है ।