पूज्य साँई जी द्वारा लिखित कविता:
अब कुछ बड़ा करना है….
बनकर पर्वत बादलों को छूना है,
अब कुछ बड़ा करना है…
छोड़कर पगडंडी रास्ते,
राजमार्ग पर चलना है,
मुझे अब मुझसे ही मिलना है,
अब कुछ बड़ा करना है…
चाहे उड़े सब आसमां में,
मुझे तो शून्यावकाश में तैरना है,
अब कुछ बड़ा करना है….
संध्या होने पर सुनाई देते हैं,
घर की ओर लौटते कदमताल के लिए,
उन कदमों की प्रतीक्षा करनेवाला
प्रियजन मुझे बनाना है,
अब कुछ बड़ा करना है…
भूतकाल बन दीवार पर
लग जाते हैं लोग,
मुझे तो तेरी यादों में
तरबतर होना है…
अब कुछ तो बड़ा करना है…