शब्द व्यक्तित्व को निखारनेवाली संजीवनी है…

शब्द व्यक्तित्व को निखारनेवाली संजीवनी है…

शब्द व्यक्तित्व को निखारनेवाली संजीवनी है…

प्रशंसा करने में ईमानदार इंसान कितने ? क्या इस मामले में हम और आप वास्तव में ईमानदार हैं ? हकीकत ये है कि अपना मतलब सिद्ध करने के लिए हम किसीके भी आगे प्रशंसा के पुल बाँधना शुरू कर देते हैं । ईमानदारी से प्रशंसा भी नहीं कर सकते !

हाँ, प्रशंसा करना ये प्रेम का एक प्रकार है, लेकिन लगभग प्रशंसा करने में प्रामाणिकता का स्तर शायद ही होता है । मनुष्य के पास देने के लिए कुछ नहीं हो, फिर भी उसके पास एक चीज तो होती ही है, वो है उसके दिल से निकलते शब्द !

शब्दों का कोई मूल्य नहीं, और इसीलिए शब्द अमूल्य हैं । फूलों को तो चुनना पड़ता हैं या फिर खरीदना पड़ता है । शब्दों को खरीदना नहीं पड़ता, शब्द सभी के पास होते हैं।

जरूरी केवल इतना है कि हमारे दिल में शब्दों का बगीचा होना चाहिए ! फूल बासी हो जाते हैं, पर शब्द हमेशा ताजे रहते हैं । शब्द भूलते नहीं है, शब्द याद रहते हैं, शब्द घूमते रहते हैं । शब्द संजीवनी है । शब्दों की कीमत है । अतः प्रत्येक शब्द का महत्त्व है । सोचकर बोले हुए बोल व्यक्तित्व को निखारते चले जाते हैं ।

हम किसीकी प्रशंसा अकेले में करते हैं और निंदा जाहिर में करते हैं । अगर इस बर्ताव को बदल दें, उल्टा कर दें कि प्रशंसा जाहिर में करना और निंदा अकेले में करना, तो काफी प्रॉब्लम कम हो जाएगी । एक बात याद रखना – आप जिससे जाहिर में जैसा बोलेंगे और बर्ताव करेंगे, ऐसा ही लोग करेंगे ।

क्या कभी अपने माता-पिता को हमने कहा कि आपको बहुत-बहुत धन्यवाद कि आपने मुझे इतनी अच्छी जिंदगी दी ! इतना अच्छा शरीर दिया ! हमको इतनी सुंदर लाइफ देने के बदले आपको थैंक्यू ! इतना आभार, धन्यवाद अगर संतान अपने हृदय से माता-पिता के लिए अभिव्यक्त करे, तो संतान पर माता-पिता के द्वारा स्नेहपूर्ण आशीर्वाद की वर्षा हो जाए !                                 

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