सतत सावधानी ही साधना है
सतत सावधानी ही साधना है
(पूज्य साँईंजी की बोधप्रद वाणी)
सतत सावधानी ही साधना है । असावधानी और लापरवाही असफलता का कारण है । चाहे कोई भी कार्य करो, उसमें सावधानी आवश्यक है । असावधान मछली काँटे में फँस जाती है, असावधान साँप मारा जाता है, असावधान हिरण शेर के मुख में चला जाता है, असावधान वाहन चालक दुर्घटना कर देता है और स्वयं व दूसरों को हानि पहुँचाता है । चलने में असावधान रहे तो ठोकर खानी पड़ती है, विद्यार्थी पढ़ने में सावधान न रहे तो उत्तीर्ण नहीं हो सकता । चाहे व्यवहार हो या परमार्थ, सावधानी अत्यन्त आवश्यक है । जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सावधानी महत्त्वपूर्ण है ।
जब सज्जन लोग लापरवाह रहते हैं, तो समाज में दुर्जनता बढ़ जाती है | जरा-सी असावधानी बहुत बड़ी हानि कर देती है । हर एक दिन के साथ सावधानी जुड़ी है, ऐसा कोई भी कार्य न करो, जिसमें असावधानी का अंश हो । जितनी-जितनी असावधानी मिटती जायेगी, सावधानी बढ़ती जायेगी, उतना ही जीवन उन्नत होता जायेगा । अपना प्रत्येक कार्य सावधानी के साथ करें और संकीर्णता से बचें । संकीर्ण बुद्धिवाले की योग्यता का विकास नहीं हो सकता, वह अपने ही विचारों के दायरे में उलझा रहता है । अत: अपने मन को विस्तृत बनाओ । बुरे से बुरे व्यक्ति में भी कुछ न कुछ अच्छाई छुपी रहती है, उसे देखकर उसे अपनाने का यत्न करो ।
परमात्मा सभी प्रकार से अपनी कृपा ही बरसाते हैं
परमात्मा अनुग्रह करके तो अपनी कृपा बरसाते ही हैं, परंतु दंड देकर भी अपनी कृपा ही बरसाते हैं । जिस प्रकार माँ का मिठाई देना भी प्यार का स्वरूप है और थप्पड़ मारना भी प्यार का दूसरा स्वरूप ही है । अनुकूल परिस्थिति में भी उसकी कृपा का अनुभव करो और प्रतिकूल स्थिति में भी उसकी करुणा का दर्शन करो । परमात्मा की कृपा की प्रतीक्षा नहीं, समीक्षा करो ।
नास्तिक कहता है कि ईश्वर नहीं है, तो यह भी तो ईश्वर की सत्ता से ही कहता है । परंतु जो उसकी सत्ता को, महत्ता जो जानता है, वह निहाल हो जाता है । दीपक तो बुझ सकता है, किंतु सूर्य नहीं बुझता । सूर्य के अस्तित्व से ही हमारा अस्तित्व है, उसका एक बार ठीक से पता चल गया, तो फिर वह हमसे दूर नहीं हो सकता । उसी प्रकार ईश्वर की सत्ता, सर्वव्यापकता का एक बार ठीक से ज्ञान हो जाए, फिर वह कभी अपने से भिन्न नहीं लगेगा । विभिन्न रूपों में, विभिन्न परिस्थितियों में, विभिन्न भाषा और शैलियों में, विभिन्न पद्धतियों द्वारा, विभिन्न लोगों द्वारा उसी एक ईश्वर की ही स्तुति-आराधना-उपासना हो रही है । विभिन्न ढंग और शैलियों द्वारा लोग उसीको पुकार रहे हैं । वह प्यारा भी निरंतर सभी पर अपना प्रेम बरसा रहा है । जो मीरा के गिरधरनागर हैं, वही शंकराचार्य के ब्रह्म हैं और भक्तों के भगवान हैं, सिक्खों के अकाल स्वरूप और मुसलमानों के खुदा भी वही हैं । शिष्यों के सद्गुरु भी वही हैं । चाहे कैसे भी हो पर उसे जान लो क्योंकि जानना बहुत जरूरी है ।