रचनात्मक कार्य करने के लिए बुनियादी आवश्यकता
रचनात्मक कार्य करने के लिए शांत और स्वस्थ दिमाग (मन) एक बुनियादी आवश्यकता है, क्योंकि सकारात्मक सुझावों को स्वस्थ एवं शांत मन द्वारा ही ग्रहण किया जा सकता है और इससे शरीर को रचनात्मक कार्य करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है ।
मन की शक्तियों, इसकी साधना और इसकी सीमाओं पर बुद्धिमान पुरुषों द्वारा सदियों से विचार किया गया है, लेकिन उत्तेजना, पूर्वाग्रह, चिंता से मुक्त, शांत, स्वस्थ, रोशनी युक्त, निर्मल मन प्राप्त करने के लिए जप, विपश्यना, ध्यान, मौन, नाम स्मरण, कीर्तन, स्तुति, स्तवन, पाठ या गीत-संगीत का सहारा बुद्धिमान व्यक्तियों ने लिया है, जिसके अच्छे परिणाम मिले है ।
लेकिन अब यह समय की माँग है कि हमें अभी तक ऐसे यंत्र, शिक्षण विधियाँ या उपकरण नहीं मिले हैं, जो जनता के लिए उपयोगी हों और उनके दिमाग (मन) को एकाग्र कर सकें, उन्हें सकारात्मकता से भर सकें, जिस पर काम करने की जरूरत है । तभी एक स्वस्थ समाज का निर्माण हो सकेगा ।
१९२० में लाहौर में गाँधीजी ने कहा था कि ‘मेरे शरीर में कोई शक्ति नहीं है, लेकिन मेरा मानना है कि मेरी इच्छा के विरुद्ध कोई मेरे से कुछ नहीं करा सकता ।’
अंग्रेजी सल्तनत भी गाँधीजी के साथ अपने मन का कराने में असफल रही । इसके विपरीत गाँधीजी दृढ़ मनोबल से ही सल्तनत को झुकाते थे । अत्यधिक व्यस्तता के बीच भी वे अपने मन को स्वस्थ रखने के लिए प्रार्थना करते-कराते थे । भजन सुनते थे । सुबह सैर पर जाते – शरीर को स्वस्थ रखने के लिए समय निकालते ।
जैसा मन, वैसा शरीर और जैसा शरीर, वैसा मन । दोनों आपस में जुड़े हुए है । स्वस्थ व्यक्ति का मन प्रसन्न रहता है ।
इसलिए शरीर और दिमाग (मन) को स्वस्थ रखने की कोशिश कभी न छोड़ें । इसके लिए दृढ़ मनोबल, दृढ़ इच्छाशक्ति का होना आवश्यक है, तभी हम रचनात्मक कार्य कर सकेंगे ।