परमात्मा ही शरण लेने योग्य हैं !
(पूज्य साँईंजी के सत्संग से संकलित)
भगवान की कृपा नित्य-निरंतर बरस रही है । जैसे बारिश तो बरस ही रही है पर जैसा बर्तन होगा, उतना ही उसमें पानी आ सकेगा, छोटे बर्तन में कम और बड़े बर्तन में ज्यादा । यह बारिश तो फिर भी बारह महीने में चार महीने ही होती है, वो भी कभी हो कभी न हो, कब आए, कब तक चले, पर भगवान की महती कृपा तो आठों प्रहर, चौसठ घड़ी, बारह महीनें, तीन सौ पैंसठ दिन चालू ही चालू है !
लोग सोचते हैं कि भगवान तो हमें दिखते नहीं, गुरुजी के साथ हम निकट रह नहीं सकते, तो भगवत कृपा हमें कैसे मिलेगी । ये विचारणीय बात है कि भगवान कृष्ण जैसे कृष्ण द्रौपदी के साथ रहते थे । इतनी निकटता थी कि द्रौपदी भगवान को राखी बाँधती थी, फिर भी आखिर क्या ? उसे साक्षात्कार हो गया ? कुंती माता को देखिए, कितना भक्त हृदय था उनका । कर्ण भी कुंती माता का पुत्र था और पांडव भी, लेकिन पांडवों के द्वारा कर्ण को मरवाने का काम कुंती माता ने ही किया । महाभारत में कई ऐसे प्रसंग आते हैं कि स्वयं भगवान श्रीकृष्ण और धर्मराज युधिष्ठिर जब शास्त्रों और धर्म की बातें द्रौपदी के समक्ष करते हैं, तो वह मुँह बनाकर और बाल खोलकर चल देती है । जब भी युद्ध रोकने के लिये द्रौपदी को समझाया गया, तो द्रौपदी ने एक ही बात कही कि – ‘मैं यह शांति की, धर्म की बातें नहीं जानती ।’ उसका परिणाम सबके सामने आया । विशाल महाविध्वंसक महाभारत का युद्ध हुआ । तो स्त्रीहठ की सारी बातें माने – यह भी उचित नहीं और सारी बातें नहीं माने, यह भी उचित नहीं । महाभारत के युद्ध का कारण द्रौपदी ही थी । कुंती ने अपने बेटे को ही मरवा दिया ।
‘स्त्रीचरित्रं पुरुषस्य भाग्यम्’
पुरुष का भाग्य और स्त्री का चरित्र इन दोनों का पार देवता भी नहीं पा सकते । गुरु गोविंद सिंहजी ने कहा कि स्त्रियों में ३६६ दुर्गुण होते हैं । यह बात उनके प्रवचन में सुनकर सारी महिलाएँ उनकी माता के पास गईं और सारी बात बताई । गुरु गोविंद सिंहजी के आने पर उनकी माँ ने उनसे पूछा कि – ‘पूत्र । आज तूने ऐसा बोला कि स्त्रियों में ३६६ दुर्गुण हैं । तो क्या मेरे में भी इतने ही दुर्गुण हैं ?’ इस पर वे बोले – ‘माँ ! तुम संत की माँ हो तो हो सकता है कि तुममें एकाध दुर्गुण कम हो ।’
ऐसे ही एक संत हो गए – श्री उड़िया बाबाजी महाराज । बड़ी ऊँची स्थिति पर पहुँचे हुए थे, वे कभी न तो पैसा छूते थे और न ही स्त्रियों को देखते थे । उनके जीवन का व्रत था कि महिलाओं से बात, उनका दर्शन नहीं करना और पैसा नहीं छूना । आनंदमयी माँ ने सुना कि वृन्दावन में एक उच्च कोटि के संत रहते हैं, उन्होंने उड़िया बाबाजी से मिलने के लिये संदेश भिजवाया । संदेश मिलते ही जवाब आया कि मुलाकात संभव नहीं है । बाबाजी महिलाओं से नहीं मिलते । माँ ने जवाब भिजवाया – ‘आश्चर्य है ! हमने तो सुना था कि भगवान कृष्ण के सिवा दूसरा कोई पुरुष नहीं है, बाकी सब स्त्रियाँ है । यह नया पुरुष कहाँ से आया ?’ जवाब सुनते ही बाबाजी ने तुरंत माँ को बुलवा लिया । तो जहाँ यह स्त्री-पुरुष का भेद समाप्त हो जाता है, वह है ज्ञान । कोई कहे कि मैं ज्ञानी हूँ और उसके चित्त में स्त्री और पुरुष का भेद विद्यमान है तो उसका ज्ञान दिखावा मात्र है ।