वैदिक कृषि व ऋषि आधारित जीवनशैली !

वैदिक कृषि व ऋषि आधारित जीवनशैली !

मैं भारत के किसानों से आग्रह करता हूँ कि वे जैविक खेती करने का संकल्प लें । कैंसरमुक्त भारत बनाने के लिये हमें रासायनिक खाद व जंतुनाशक मुक्त खेती करनी होगी। नीम, गौमूत्र, गुड़ व हींग आदि चीजों से किसान स्वदेशी कीटनाशक बनाएँ और जैविक खाद का ही प्रयोग करें । हमें विश्व में भारत को पूर्णतः जैविक खेती का देश बनाने की ओर शीघ्र आगे बढना चाहिए । इससे हमारे उत्पादों की माँग भी बढ़ेगी, मूल्य भी अधिक मिलेगा और आरोग्य भी बेहतर होगा । पंजाब के संगरूर से १४-१५ कि.मी. दूर बसे बरनाला के मल्लिया गाँव की महिलाओं ने जब देखा कि ३ लोगों की कैंसर से मौत का कारण जंतुनाशक का छिड़काव की हुई सब्जियाँ थीं, उन्होंने जैविक खेती का संकल्प लिया । पिछले चार वर्षों में एक भी कैंसर का रोगी नहीं हुआ है । क्या उनके इस प्रयास से भारत के किसान व सरकार प्रेरणा लेकर जैविक खेती का संकल्प नहीं ले सकते ?

भारत कृषि प्रधान देश है और देश के ग्रामीणों की सर्वाधिक संख्या की जीविका का माध्यम कृषि ही है । कृषि के द्वारा किसान अपने साथ समूचे देशवासियों को अन्न उपलब्ध कराने की क्षमता रखता है । हरित क्रांति के परिणामस्वरूप खाद्यान्न आत्मनिर्भरतावाला भारत का किसान आज आत्महत्या को विवश है, जो हमारे आर्थिक विशेषज्ञों और समाजवेत्ताओं के लिये गहन चिंता का विषय बना हुआ है ।

आज देश में कृषि घाटे का सौदा है । कृषि कर्म में लागत बढ़ गई है और उपज कम हो गई है । पूरी उत्पादन प्रणाली पर बड़ी-बड़ी कम्पनियों का कब्जा हो चुका है । दुष्परिणाम यह हो रहा है कि बीज किसान की पहुँच से दूर हो रहे हैं, उनके हाथ से जमीन भी जा रही है । छोटे किसान खेती छोड़कर शहरों में मजदूरी करने को मजबूर हैं । जो किसान आत्मविश्वास खो रहे हैं, वे आत्महत्या कर रहे हैं । खेती पर जो शोध हो रहा है, वह किसान-हित में नहीं, बल्कि कम्पनियों के हित में हो रहा है ।

पंजाब के उपजाये गेहूँ-चावल ने भले ही देश को सौगात में अन्न क्रांति दे दी हो, लेकिन पंजाब इस क्रांति की बड़ी भारी कीमत चुका रहा है । रासायनिक कीटनाशकों और खादों के अंधाधुंध इस्तेमाल की बदौलत पंजाब की हवा, मिट्टी व पानी में जहर फैल रहा है, जो स्थानीय निवासियों को कैंसर की सौगात दे रहा है । वैसे तो पूरे पंजाब पर कैंसर का खतरा देश के औसत से ज्यादा है, लेकिन यहाँ भी मालवा का इलाका ऐसा है, जो अब यहाँ से गुजरनेवाली ट्रेन कैंसर एक्सप्रेसके लिये पहचाना जाने लगा है । हमारे देश में राष्ट्रीय स्तर पर कैंसर रोगी दर प्रति लाख ७१ है, वहीं पंजाब के मालवा इलाके में यह आँकड़ा १२५ से भी आगे पार कर चुका है । रोज रात इस इलाके से गुजरनेवाली कैंसर एक्सप्रेस का सफर बीकानेर पहुँचकर खत्म हो जाता है, जहाँ के अस्पताल में इनका सस्ता इलाज किया जाता है । 

लेकिन क्या कैंसर एक्सप्रेस इसी तरह रोज पंजाब के कैंसर पीड़ितों को बीकानेर लाती, ले जाती रहेगी या इसका सफर कभी रुकेगा भी ? खेती के बदलते ढंग, रहन-सहन से लेकर खान-पान में आए बदलाव और धन व पैसों के प्रति बढ़ते लोभ और लालच की वजह से सिंधुघाटी की इस नायाब धरती को कैंसर नामक जानलेवा बीमारी निगलने को तैयार है । कैंसर के कारण अधिकतर लोगों की रखी पूंजी समाप्त हो गई है और इलाज के लिये ७० फीसदी लोगों को अपना कुछ न कुछ बेचना पड़ रहा है । इलाके के ९ फीसदी लोग ऐसे हैं जो कर्ज लेकर इलाज करा रहे हैं और ८ फीसदी ऐसे कैंसर रोगी हैं, जिन्होंने इलाज के लिये अपनी एफ.डी. तुड़वायी है ।

आमतौर पर यह माना जाता है कि ज्यादा मात्रा में रासायनिक खाद एवं कीटनाशक इस्तेमाल करने से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है और उत्पादन बढ़ने से किसान का मुनाफा बढ़ सकता है । सरकार भी किसानों को वैज्ञानिक ढंग से खेती करने की सलाह देती है, लेकिन इस वैज्ञानिक विधि का अर्थ सिर्फ और सिर्फ रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल तक ही सीमित होता है । नतीजतन आए दिन हम विदर्भ, आंध्र प्रदेश, गुजरात, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश के किसानों द्वारा आत्महत्या करने की खबरें सुनते रहते हैं । इसके अलावा रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल से अनाज, सब्जियाँ, दूध और पानी, जो इंसान के जीवन का प्रमुख आधार हैं, जहरीले बनते जा रहे हैं । इस वजह से इंसानी जीवन धीरे-धीरे खतरे में पड़ता जा रहा है । आज हार्टअटैक, शुगर, ब्लडप्रेशर एवं 

अन्य कई प्रकार की बीमारियाँ आम होती जा रही हैं ।

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