मोबाइल फोन का अधिक उपयोग करते हो, तो हो जाओ सावधान !
आज के अखबार में आया है । लेटेस्ट न्यूज बताता हूँ । सुबह अखबार ले आया था कोई, तो मैं जल्दी-जल्दी देख रहा था । एक खबर लास्ट पेज पर थी । लिखा था मोबाइल से ब्रेन हेमरेज, मोबाइल से ट्यूमर होता है । Memory loss, स्मरणशक्ति का ह्रास होता है । कई लोग फोन पर चिपके रहते हैं । ये आधुनिक विज्ञान ने सुविधाएँ दे दी, लेकिन आपका दिमाग खाली कर देगा । वैचारिक क्षति, संकल्प क्षति होती है, हमने तो खुद अनुभव किया है । जिस दिन हम अपना मोबाइल चालू रखते हैं और उपयोग करते हैं, उस दिन सिरदर्द थोड़ा हो जाता है । सिर की जो नसें हैं, वो ऐसे दर्द करने लगती हैं, ब्लिंकिंग होने लगता है, जैसे फट रही हैं । मैं तो अपने अनुभव के आधार पर बोल रहा हूँ । आपको भी ऐसा अनुभव हुआ होगा, जिस दिन आप ज्यादा प्रयोग करोगे, ज्यादा बातचीत करोगे । कई बेवकूफ तो फोन चालू रखकर सिरहाने के पास ही छोड़कर सो जाते हैं । बहुत नुकसान करता है । जिस कमरे में सोएँ, उस कमरे में भी मोबाइल नहीं होना चाहिए । वो चार्ज करने बाहर रखो तो अच्छा है, ऐसा बोलते हैं । सोनेवाले कमरे में चार्जिंग करो, तो भी नुकसान होता है । इसके रेडिएशन अच्छे नहीं हैं ।
टेक्नोलोजी के गुलाम नहीं, स्वामी बनो ।
हर वक्त हाथों में स्मार्टफोन होना आम हो गया है । हर उम्र के लोगों का स्क्रीन टाइम बढ़ता जा रहा है । नये शोध से पता चला है कि बार-बार फोन चेक करना भी उतना ही खतरनाक है, जितना कि स्क्रीन टाइम का बढ़ते जाना । ब्रिटिश जर्नल ऑफ साइकोलॉजी में छपी शोध रिपोर्ट कहती है – ‘बार-बार फोन चेक करने से दैनिक जीवन में आनेवाली छोटी-छोटी समस्याओं की समझ और उनका समाधान करने की क्षमता घटती जाती है । जैसे-जैसे फोन चेक करने की आदत बढ़ती जाती है, हमारा प्रॉब्लम सॉल्विंग एटिट्यूड कमजोर होने लगता है । वहीं शोध से यह भी पता चला है कि अब लोग छोटी-छोटी समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए फोन उठा लेते हैं । बोरियत मिटाने या टाइम पास करने के लिए भी स्मार्टफोन चेक करते रहते हैं । इससे दिमाग पर नियंत्रण नहीं रहता । ध्यान भटकता है, काम अधूरे छूटने लगते हैं और लोग बात करते-करते शब्द भूलने लगते हैं ।’
सिंगापुर मैनेजमेंट यूनिवर्सिटी के मनोविज्ञान प्रोफेसर और इस शोध के प्रमुख शोधकर्ता ऐंड्री हैरटैंटो कहते हैं – ‘स्मार्टफोन ने दुनियाभर में बातचीत करने और सूचनाएँ हासिल करने का तरीका बदला है । कई बार तो हमें पता ही नहीं चलता कि बिना जरूरत के भी हम स्मार्टफोन चेक कर रहे हैं । इस अध्ययन के लिए सिंगापुर के एक विश्वविद्यालय के आईफोन इस्तेमाल करनेवाले लोगों को चुना गया । इनके मोबाइल इस्तेमाल करने के तरीके, समय के साथ-साथ यह भी देखा गया कि वे कितनी बार मोबाइल चेक करते हैं । एक हफ्ते तक एप के जरिए उनके मोबाइल की मॉनिटरिंग की गई । इसके बाद देखा गया कि बार-बार फोन चेक करनेवालों के बहुत से काम अधूरे रह जाते हैं, क्योंकि वे ध्यान केंद्रित न कर पाने से अपने काम पूरे नहीं कर पाते । बातचीत के दौरान वे सही शब्दों का इस्तेमाल नहीं कर पाते, क्योंकि वे उस समय शब्द ही भूल जाते हैं । वे चाहे जितनी कोशिश करें, दिमाग भटकता रहता है । फोन चेक करने का असर हर उम्र और लिंग के लोगों पर समान है । ऐसा नहीं है कि बार-बार फोन चेक करने का असर लंबे समय में ही पड़ता है । जिस दिन भी हम ज्यादा फोन चेक करते हैं, उस दिन हम बहुत से काम अधूरे छोड़ देते हैं ।’
बच्चों को मायोपिया का खतरा
स्मार्टफोन के ज्यादा इस्तेमाल से आँखों की रोशनी भी जा रही है । इसका सबसे ज्यादा असर बच्चों पर पड़ रहा है । इससे मायोपिया और एस्थेनोपिया जैसी आँखों की बीमारी हो रही है । जर्नल ऑफ मेडिकल इंटरनेट रिसर्च में छपी रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक दुनियाभर में 5-8 साल तक के 49.8% बच्चे मायोपिया के शिकार हो जायेंगे ।
मैं ये देखकर हैरान हूँ कि करोड़ों इंसान आज मोबाइल फोन की गुलामी से मनोरोगी हो गए हैं ।
- मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटोप आदि गॅजेट्स – क्या आपके ऊपर हावी हो गये हैं ?
- क्या आप भोबाइल फोन को बार-बार चेक करते हैं ?
- क्या आप स्क्रीन पर ज्यादा वक्त बिताते हैं ?
- क्या आप मोबाइल फोन को बोरियत मिटाने का या टाइमपास करने का जरिया मानते हैं ?
अगर इन सवालों का जवाब ‘हाँ’ हैं, तो सावधान हो जाइये, आप तकनीक के गुलाम बन गये हैं । दैनिक जीवन की छोटी-मोटी समस्याओं की समझ और उन्हें हल करने की क्षमता आप घटाते जा रहे हैं । आपका ध्यान भटक रहा है, एकाग्रता कम हो रही है और आपकी आँखों में मायोपिया, एस्थेनोपिया जैसी बिमारी हो रही है । अत: गैजेट्स का इस्तेमाल कम से कम करें । स्वस्थ रहें । दुनिया से कनेक्ट तो बहुत हो लिए, अब मैं चाहता हूँ परमात्मा से कनेक्ट होकर देखो, तो पता चले ।