सत्य को जानना, समझना मुश्किल है !
थोड़े समय पूर्व एक सेक्युलर मित्र, एक सरकार समर्थक मित्र और एक विपक्ष के समर्थक मित्र के साथ लंबी यात्रा करना हुआ । उस समय उन सबके बीच सरकार तर्फी और सरकार विरोधी उग्र बहस हुई । उसमें मैंने कुछ टिप्पणी करी तो तीनों शाब्दिक तरीके से मेरे ऊपर टूट पड़े । वो तीनों अतिशिक्षित मित्रों को कुत्ते – बिल्ली की तरह झगड़ता हुआ देख में चुप हो गया तो वो सब मुझ पर गुस्सा हो गये । उन सबका आग्रह था कि मैं कोई स्टैंड लूँ ।
मैंने उनको कहा, ‘ मुझे एक फिल्म की बात करनी है । अगस्त २५, १९५० के दिन जापानीज़ डायरेक्टर अकीरा कुरोसावा की फिल्म ‘रशोमोन’ रिलीज हुई थी । इस फिल्म में एक समुराई (जापानीज़ योद्धा) की पत्नी के ऊपर कोई बलात्कार करता है और बाद में वह समुराई का खून कर देते है । वह समुराई के खून के आरोप के तहत एक ख़तरनाक डाकू को गिरफ्तार किया गया । उसको अदालत में पेश किया जाता है, तब वह न्यायाधीश समक्ष जुबानी देता है कि ‘वह समुराई मेरे पास से एक एन्टीक तलवार लेने की लालच में उसकी पत्नी को ले के मेरे साथ जंगल में आया था । वहाँ मैंने उसको बांध दिया । उस समय उसके साथ उसकी पत्नी भी थी । वह मेरे प्रति आकर्षित हो गयी और उसने मेरे साथ शारीरिक संबंध बाँधा । वैसे, बाद में उसको शर्म आयी । उसने कहा – आप दोनों द्वंद्व युद्ध करो । आप दोनों में से जो जीत जायेगा, उसको मैं मेरा पति मानुँगी । उसकी जिद्द के कारण मुझे समुराई के साथ लड़ना पड़ा । हमारे बीच घातक लड़ाई हुई, उसमें मैं जीत गया । परन्तु तब तक समुराई की पत्नी मौका देख कर भाग गयी थी । ‘उसके बाद समुराई की पत्नी ने रोते-रोते जुबानी दी की ‘ इस बदमाश डाकू ने मेरे पति को बांध दिया और बाद में उसकी नजर के सामने ही मेरे ऊपर रेप किया । मैंने मेरे पति को बोला कि आपकी नजरों के सामने मेरी इज्जत लूट गयी है । मैं लाचार थी वो आपने अपनी नजरों से देखा है । मुझे माफ़ कर दो, परंतु उन्होंने मेरे सामने भी ना देखा । मैंने उनके हाथ खोल के उनको छुड़वाया और प्रार्थना की आप मेरा स्वीकार नहीं करने वाले हो तो मेरा जीने का कोई अर्थ नहीं है । आप मुझे मार डालो । मेरे पति के मुख को देख मुझे ऐसा लगा कि जैसे वो मुझसे नफरत करने लगे थे । आघात के कारण मैं मूर्छित हो के गिर गयी थी । मैं जब होश में आयी तब मैंने देखा तो मेरे पति की छाती में छुरी भोंकि हुई थी और उसकी मृत्यु हो चुकी थी । ‘ सत्य क्या है वह जानने के लिये मृत समुराई की जुबानी के लिये कोर्ट ने एक व्यक्ति को बुलाया जिसके पास मृतकों के सूक्ष्म शरीर को या आत्मा को बुलाने की शक्ति थी । उस व्यक्ति ने समुराई की आत्मा को कोर्ट में बुलाया ।
समुराई के आत्मा ने अदालत समक्ष जुबानी देते हुए कहा , ‘ इस डाकू ने पहले तो मेरी नजर के सामने मेरी पत्नी के ऊपर बलात्कार किया । उसके बाद उसने मेरी पत्नी को कहा की ऐसे नामर्द पति के साथ जीने का क्या फायदा है । उससे तो तू मेरी पत्नी बन जा । मेरी पत्नी मुझे छोड़ने को तैयार हो गयी । उसने इस डाकू के सामने शर्त रखी की मैं तेरे साथ आऊंगी , परंतु उसके पहले तुझे मेरे पति को मार डालना पड़ेगा । मेरा पति जीता होगा तो मैं दो पुरुषों की मालिकी की स्त्री बन जाऊँगी और उस भाव के साथ मेरा जीना जहर समान बन जाएगा । मेरी पत्नी की बात सुन के डाकू ने मुझे पूछा , सुन लिया ना तेरी पत्नी क्या कह रही है ! बोल क्या करुँ ? इस दौरान मेरी पत्नी ने मेरे साथ धोखा किया और उसके कारण मुझे आघात लगा और मेरे पेट में छुरी भोंक के मैंने मेरे जीवन का अंत कर दिया । ‘
कोर्ट में इन जुबानीयों के बाद थोड़े दिनों बाद चातुर्मास के एक दिन गाँव के बाहर एक खंडर में एक लकड़हारा, एक साधु और वह गाँव का एक निवासी इकठ्ठे हो गये । साधु और गाँव वाले समुराई के खून के बारे में बात कर रहे थे कि इन तीनों में से सच कौन ? उस समय लकड़हारा गुस्सा हो गया । उसने कहा कि , ‘वो डाकू, समुराई और उसकी पत्नी – तीनों अदालत में झूठ बोले है । वास्तविकता क्या है मुझे पता है क्योंकि वह पूरी घटना मैंने छुपकर देखी, मेरी नजरों से देखी थी । वास्तव में ऐसा हुआ था कि डाकू ने समुराई की पत्नी का बलात्कार करने के बाद उस स्त्री को कहा था कि तू इस समुराई को छोड़ दे और मेरी पत्नी बन जा । समुराई की पत्नी ने समुराई के हाथ खोले । हाथ छूटने के बाद भी समुराई पुतले की तरह खड़ा रहा । बंधन में से छूटने के बाद भी समुराई ने अपनी पत्नी के ऊपर रेप करने वाले डाकू के सामने कोई प्रतिक्रिया नहीं की इसलिये उसकी पत्नी गुस्सा हुई । उसने समुराई को और डाकू को ताने मारते हुए कहा कि आप दोनों नामर्द है । एक की मैं पत्नी हूँ और दूसरा मुझे पाने की इच्छा रखता है । आप में हिम्मत हैं तो आप दोनों द्वंद्व युद्ध करो । उस स्त्री ने दोनों को उकसाया इसीलिये डाकू और समुराई दोनों बिना मन के लड़ने के लिये तैयार हुए, परंतु दोनों एक-दूसरे से लड़ाई करने से डर रहे थे । उनकी लड़ने की इच्छा नहीं थी, उसके बावजूद भी वह स्त्री के सामने मर्दानगी साबित करने के लिये दोनों लड़े । उस समय अनायास ही डाकू के हाथों समुराई का खून हो गया । उन दोनों की लड़ाई चालू थी, तभी समुराई की पत्नी भाग गयी । डाकू उसको पकड़ने के लिये दौड़ा, परंतु उसके पैर में चोट लग गयी थी इसीलये उसको पकड़ नहीं पाया । इसीलिये बाद में वो वहाँ से चला गया ।’ इस फिल्म के बारे में बात करने के बाद मैंने मेरे मित्रों को कहा कि एक ही घटना की स्थिति के बारे में हर किसी के सत्य अलग हो सकते है, परन्तु कई बार सब गलत हो सकते है और एक सत्य भी होता है । (कुरोसावा की इस फिल्म के कारण ‘रशोमोन इफ़ेक्ट’ ऐसी एक कहावत अस्तित्व में आयी। )
अब खास समझने वाली बात ये है कि किसी भी घटना की स्थिति, हालातों के बारे में या हर एक व्यक्ति का सत्य अलग-अलग हो सकता है । सरकार का सत्य अलग हो सकता है, सरकार के समर्थकों का सत्य अलग हो सकता है, विपक्ष का सत्य अलग हो सकता है, अलग-अलग विपक्षों का सत्य अलग हो सकता है । खुद को सेक्युलर माननेवालों का सत्य अलग हो सकता है, आतंकवादियों का सत्य भी अलग हो सकता है । परंतु एक सत्य वह होता ही है जो हकीकत का, वास्तविकता का सत्य होता है, जो मुश्किल से ही किसी विरले की समझ में आता है । इन सबमें वह लकड़हारे के जैसे – सत्य जाननेवाले या समझनेवाले लोगों के लिये आज के समय में जीना बहुत मुश्किल बन चुका है ।
साभार : आशू पटेल
सौजन्य : विशवगुरु पत्रिका, सितंबर 2023