स्वयं को पहचाने ! – World Suicide Prevention Day
स्वयं को पहचाने !
World Suicide Prevention Day: 10 Sept 2024
आपने पढ़ा होगा, सुना होगा । कई बाहर से धनाढ्य, सुखी-संपन्न लोग भी आत्महत्या करते हैं । क्यों ? क्योंकि वे न जीवन को समझ पाये, न स्वयं को । स्वयं से बेखबर, जिंदगी से नासमझ लोग जिंदगी नष्ट करने पर उतारू हो जाते हैं ।
सच के आनंद और झूठ के सुख की तुलना करके देखिये । एक जीवन बिंब के साथ सत्य, आनंद की अनुभूति ही बताती है कि हम कितने पूर्ण हैं ! जब पूर्णता का बोध होने लगे, तो समझना कि अब हम दूसरों को आधार, दूसरों को सहारा दे सकते हैं । इससे उलट, झूठ के काल्पनिक सुख में ही स्वयं को डुबो दिया, तो तय है कि स्व के नष्ट होने की घड़ी आ गई । ‘स्व’ को खोजने के लिए जरूरी है कि खुद पर खुलकर हँसने की हिम्मत पैदा कर ली जाए । ऐसा होने पर झूठ का झूठ बालू की भीत की तरह एक दिन ढह जायेगा !
और एक खास बात बताऊँ कि जिन आँखों पर हम भरोसा करते हैं, वे आँखें स्वयं को कभी नहीं देख पातीं और फिर जो स्वयं को न देख पाएँ, वे दूसरों को कैसे वास्तविक रूप में देख सकती हैं !
यही हाल मन की आँखों का है । मन की आँखों को पहले तो हम खोल ही नहीं पाते और यदि खोल भी लेते हैं, तो धारणाओं, मान्यताओं, आग्रहों और दुराग्रहों से इतने अधिक जकड़े रहते हैं कि अपनी वास्तविकताओं को देख नहीं पाते !
मैं चाहता हूँ कि आप जीवन का वास्तविक दर्शन करें । जिंदगी को समझें । जीवन को उत्सव की तरह मनाएँ । मन के विज्ञान का जीवन के विज्ञान से संतुलन बिठाने की कोशिश करें । स्वयं से स्वयं की बनी दूरियाँ खत्म हो जाएँ… आप जागें, आप उठें और चल पड़ें… सारी बाधाओं को चीरकर आइये, हम जीवनोत्सव मनाएँ । धर्म-मत-पंथ-सम्प्रदाय, जाति-वर्ण-रंग-भेद की दीवारों से बाहर आएँ… नाचें हम । गाएँ… हम । उत्सव मनाएँ हम । गरीब-अमीर का भेद भूलकर… आओ, उत्सव मनाएँ हम ।
मैं गाऊँ… तुम भी गाओ ।
मैं नाचूँ… तुम भी नाचो ।
मैं हो जाऊँ तल्लीन… तुम्हारे साथ ।
कहिये, हो आप तैयार ? सारी संकीर्णता छोड़कर ! स्वयं को जगाने के लिए ? अगर हाँ… तो फिर कीजिए संकल्प, स्वयं को जागृत करने का ! चलिए, परमानंद प्राप्ति का प्रयास करिये !
जो स्वयं में कभी देखा नहीं, उसे देखने के लिए मन की आँखों को खोलकर देखिये । आपका जीवन विज्ञान एक खोजकर्ता के रूप में मार्गदर्शन करता मिलेगा । आपकी अंतरात्मा में कभी मेरी ध्वनि भी आप सुन सकेंगे ! आपके भीतर ही सुर पैदा हो सकते हैं । आप गुनगुनाने लगेंगे । चहकने लगेंगे, मुस्कुराहट से चमकने लगेंगे ।
फूल खिला, फूल महका और फूल कुछ दिन में मुरझाकर अपने ‘स्व’ में विलीन हो गया, लेकिन उसका खिलना, महकना और बिखर जाना, उसकी वास्तविकता का ही रूप था । उसके खिलने, महकने और बिखरने में कहीं भी अवास्तविकता नहीं थी । सब कुछ सहज हुआ । यही सहजता स्वयं को स्वयं से जोड़ने के लिए अपेक्षित है ।
वास्तविकता को आप सहजता के साथ स्वीकार करते जाइये, जिंदगी को बोझ नहीं, मौज मानिये । जिंदगी सहज, सरल, सच और आनंदधाम बनती जाए आपकी ! हम सब विभिन्न जाति के, विभिन्न धर्मों-संप्रदायों के क्यों न हों, हमारे बीच भाषा की दिक्कत क्यों न हो, हम लोग चाहे विश्व के अलग-अलग देशों में रहनेवाले क्यों न हों… फिर भी हम सभी में कुछ चीजें समान हैं…