उत्तरायण के पावन पर्व पर आओ ये संकल्प करें…

सूर्य के प्रकाश की तरह सदैव हमारे हृदयों में प्रेम का, बुद्धि में ज्ञान का प्रकाश बना रहे । इस प्रकाश से जग को आलोकित करते रहें ।

हम चलें प्रकाश की ओर… चाहें प्रकाश, चाहें उजास…

ज्ञानरूप सूर्य तो जगमगा रहा है सदा, जहाँ अंधकारमयी रात्रि है ही नहीं ।

प्रकाश में जीएँ, प्रकाश को चाहें, प्रकाशमय बने, तेजस्वी-ओजस्वी बनकर ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करें – स्वयं को ! जग को !

ॐ भूर्भुव स्वः । तत् सवितुर्वरेण्यं ।

भर्गो देवस्य धीमहि । धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

अर्थात् – उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा में धारण करें । वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें ।

 

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