सर्वोत्कृष्ट संतानों का अवतरण कहाँ होता है ?

सर्वोत्कृष्ट संतानों का अवतरण कहाँ होता है ?

धन्यो गृहस्थाश्रम:

विवाह की संस्था बहुत पुरानी संस्था है और इसका विकल्प अगले सहस्त्रों वर्षों तक बरकरार रहेगा चूँकि कुंवारों और संन्यास मार्ग पर चलने वालों ने प्रतिक्रांति करके एक नया ‘मॉडल’ दिया है । अविवाहित रहकर प्रेमी-प्रेमिका के रूप में लंबी मित्रता का वादा निभानेवालों ने भी एक ‘मॉडल’ उपस्थित किया है । विलंबित विवाह अथवा पचास की उम्र पार करने के बाद दंपति बनाने का भी ‘मॉडल’ आया है । अहमदाबाद के मणिनगर की एक संस्था अविवाहित बड़ी उम्र के स्त्री-पुरुषों, विधुरों, विधवाओं के पुनर्विवाह के लिए कार्य करती है जिसमें अकेले रहने वाले लोग जीवनसाथी पसंद करते हैं । वृद्धाश्रम में जीवन बिताने की अपेक्षा – जीवनसाथी चुनकर उनके साथ जीवन बिताने का विकल्प उन्हें ज्यादा पसंद आता है । जो भी ‘मॉडल’ प्रचलन में आ रहे हैं उनमें पुरुषों का तर्क स्त्रियों के विरुद्ध तथा स्त्रियों का तर्क पुरुषों के विरुद्ध इन वैकल्पिक मॉडलों का सत्व है ।
किसी ने कहा – स्त्री नरक का द्वार है । किसी ने कहा – मर्द बेवफा होते हैं । तो किसी ने दलील की – मैं किसी महान मिशन से जुड़ा/जुड़ी हूँ पहले वो मिशन पूरा हो बाद में विवाह का सोचूँगा/सोचूँगी । तो कोई कहता ‘पहले कैरियर, तब विवाह’ और किसी का मत है ‘मुझे बच्चा नहीं चाहिए । हम पत्नी-पति साथ में रहेंगे । दाम्पत्य सुख भोगेंगे पर बच्चे पैदा नहीं करेंगे ।’ कोई लड़की पत्नी बनकर पति के घर आना पसंद करती है तो कहीं कोई पति, पत्नी के घर जाकर रहना ज्यादा पसंद करता है और ऐसा ही घरजमाई का प्रचलन है । पुरुष सत्तात्मक समाज में कन्या पति के घर जाती है परंतु मातृसत्तात्मक समाज में लड़का पत्नी के घर का सदस्य बनकर घरजमाई कहलाता है । कहीं जातीय विवाह होता है, कहीं अंतरजातीय होता है और कहीं कहीं कभी-कभी अन्तधार्मिक विवाह होता है । कहीं सगोत्र व सपिंड विवाह वर्जित है और कहीं इसका कोई मायना (अर्थ) ही नहीं है । कहीं प्रेम विवाह स्वीकृत है तो कहीं इसका घोर विरोध है और व्यवस्थित विवाह पर जोर है । किसी धर्म में यह ‘राजीनामा’ है, किसी धर्म में यह ‘समझौता’ है, और किसी धर्म में यह ‘जीवनभर का संबंध’ है । कोई एक पत्नीव्रता है, कोई बहुपत्नीव्रता है, कोई एक पतिधारिणी है और कोई बहुपतिधारिणी है । कोई किसी कन्या को वेश्या मंडी में बेचने के लिए विवाह का नाटक करता है । तो कोई माँ-बाप की बात रखने के लिए विवाह की केवल रस्म अदायगी करके चल देता है । कोई विवाह के बाद कन्या को आग के हवाले कर देता है । कोई पत्नी, पति का प्राण हरण करवा कर स्वतंत्र हो जाती है । कोई पति को नाको चने चबवाती रहती है और कोई पति को भीगी बिल्ली बनाकर रखती है । कोई दैहिक सौंदर्य पर बल देता है तो कोई सद्व्यवहार पर बल देता है और कोई आत्मिक सौंदर्य पर बल देता है । कोई तिनका-तिनका जोड़कर गृहस्थी को दैवी रूप देती है और कोई घर को तार-तार कर देती है । कोई स्त्री पुरुष की प्रेरणा बनती है तो कोई पगड़ी उछालती है । कोई पत्नी को दासी समझता है तो कोई उसकी याद में ‘ताजमहल’ बनवाता है । स्वच्छंद स्त्री-पुरुष घर को सराय बना देते हैं और सुसंस्कृत युगल ‘देव कुटीर’ बनाते हैं ।

‘देव कुटीर’ में पवित्र आत्माओं का अवतरण संभव है । विवाह संस्था को क्षति पहुँचाने में जिसका भी योगदान हो किन्तु यह याद रखना होगा कि गृहस्थ आश्रम स्त्रियों के लिए ‘शक्ति केन्द्र’ है और इसको बचाने का गुरुतर दायित्व स्त्री जाति पर है । सर्वोत्कृष्ट संतानों का अवतरण ‘देव कुटीरों’ में ही होता है ! अतः हम ऐसा प्रयास करें कि हर विवाह प्रेम से निकले ! जबरदस्ती, मजबूरी व मन-मेल बिन के विवाह कराके हम युगलों को जीवनभर वैवाहिक जीवन को घसीटते हुए जीवनयापन करने पर मजबूर ना करें । ‘धन्यो गृहस्थाश्रमः ।’

– नारायण साँईं
02/11/2020
8:15 PM

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