आजादी को बचाना होगा, वरना फिर से हम गुलाम बनेंगे
मेरे प्रिय साधकों, मेरे आत्मीय भक्तजनों, मेरे स्नेही समर्थकों, मेरे मित्रों, मेरे साथियों, मेरे प्यारे भाईयों और बहनों,
बहुत ही मुश्किल से और अथाह प्रयत्नों से हमें आजादी प्राप्त हुई है । हमारे पुरखों ने न जाने कितने बलिदान देकर देश को आजाद बनाया है और गुलामी से मुक्त किया है । मैं बहुत ही चिंतित और दु:खी होता हूँ यह देखकर कि कुछ लोग ऐसे हैं, जिनकी सोच और कार्य भारत को फिर से गुलामी में धकेलने की कोशिश करने जैसे हैं ! मैं नहीं जानता कि वे ऐसा जानकर कर रहे हैं या अनजाने में, लेकिन उनके प्रयास देश के वर्तमान और भविष्य के लिए बहुत ही नुकसानकारक हैं । अगर उनको रोका न गया तो उनके कार्य-कलाप भारत को परतंत्रता की जंजीरों में जकड़ने का कारण बनेंगे । अगर उनको रोका नहीं गया तो भारत को वे फिर से गुलाम बना देंगे । ऐसे कुछ लोग राजनीति में भी हैं और भारत के उद्योग जगत से भी ताल्लुकात रखते हैं ।
ये भारत देश आखिर कहाँ जा रहा है ? क्या आपको चिंता नहीं होती ? ऐसे लोकतंत्र की कल्पना नहीं की थी हमारे पूर्वजों ने ! संविधान निर्माताओं में ऐसे लोकतंत्र को, ऐसी व्यवस्थाओं को नहीं चाहा होगा कभी ! कभी-कभी मुझे ऐसे लोकतंत्र का बहिष्कार करने का विचार हो आता है ! राजनीति का स्तर इतना गिर जायेगा, इतना घटिया हो जायेगा – मैंने जीवन में इसकी कभी कल्पना नहीं की थी !
मेरे प्रिय साथियों ! क्या हम अपने देश की इन अव्यवस्थाओं को बदल नहीं सकते ? क्या आप और हम इसमें कुछ बदलाव, कुछ परिवर्तन नहीं कर सकते ? आखिर कब तक आप लोग इस तरह अन्याय-अत्याचार सहन करते रहेंगे ? अच्छे लोगों पर अन्याय-अत्याचार देखकर अगर आप आवाज बुलंद नहीं करेंगे, तो जब आप पर अन्याय अत्याचार होगा, तब आपके लिए भी आवाज उठानेवाला कोई नहीं होगा !
क्या हम सब इतने स्वार्थी, इतने मतलबी बन चुके हैं कि अपने स्वार्थ के अलावा हमें कुछ नहीं दिखता ? ये देश कहाँ जा रहा है और ये नेता लोग किस तरह अपनी चिकनी-चुपड़ी बातों से सबको गुमराह कर रहे हैं ? क्या आपको कुछ समझ में नहीं आ रहा है ?
अन्याय-अत्याचार के खिलाफ आपकी आवाज क्यों बुलंद नहीं होती ? आखिर कब तक ऐसी अव्यवस्थाएँ जारी रहेंगी ? क्या आप, हम अपने देश को बदलना नहीं चाहते ? क्या सिर्फ गाने सुनकर और सुनाकर ही देश बदल जाता है ? या बदला जा सकता है ?
भारत की पुलिस को भी बदलाव की जरुरत है ! पुलिस के लिए श्रेष्ठ उदाहरण है इंग्लैंड की पुलिस । भारत में अमेरिकन पुलिस नहीं चहिये – अमेरिकन पुलिस की तरह अति कठोर बनने की भी जरुरत नहीं है । मैं चाहता हूँ कि भारत के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर समय-समय पर पुलिस तंत्र की खबर लेते रहना चाहिए ! पुलिस भी कितनी मजबूरी में, तनाव में, व्यथा में काम करती है, ये नेताओं को क्या पता ? नेताओं के कारण पुलिस को कितनी परेशानी होती है, शायद नेताओं ने कभी इसकी कल्पना भी नहीं की होगी । पुलिस शासन का एक स्तंभ है । जनता को पुलिस कैसी चाहिए कि जो जनता की परेशानी-व्यथा समझ सके और उसका निराकरण भी कर सके ! प्रजा को मजबूत पुलिस चाहिये, उनके दर्द को समझे ऐसी पुलिस चाहिए ।
मुझे जेल में आने के बाद और अपने ऊपर केस दर्ज होने के बाद पुलिस के आचरण-व्यवहार को नजदीकी से थोड़ा बहुत देखने-समझने का अवसर मिला । उस आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि पुलिस को कई बार एक हथकंडे के रूप में प्रयोग किया जाता है । कई बार अक्सर पुलिस राजनीतिक दबाव के चलते काम करती है, जिसमें कई नेताओं का व्यक्तिगत स्वार्थ निहित होता है । पुलिस के साथ भी अन्याय-अत्याचार होता है, ऐसा मैंने देखा है और खुद पुलिस स्वयं के ऊपर होनेवाले अन्याय-अत्याचार के खिलाफ भी आवाज नहीं उठा सकती, डरती है – ये बात भी मेरे समक्ष में आई । अंततोगत्वा मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि सिर्फ और सिर्फ पुलिस को दोष देने के बदले हमें सामाजिक बदलाव पर अधिक ध्यान देना चाहिए ! हम मिलकर-अच्छी सोच, अच्छे इरादों से स्वयं को बदलें, तब देश और दुनिया को भी बदल सकेंगे, इस बात को मैं पूर्ण अंत:करण से स्वीकार करता हूँ ।
मैं चाहता हूँ भारत में एक श्रेष्ठ शासन की स्थापना हो । एक ठोस, मजबूत शासन… कि जो लोगों की पीड़ा को समझे और उसे दूर करने का प्रयत्न करे !
मैं भारतवासियों से कहना चाहता हूँ कि सहकार और सद्भाव से ही हमें मिली हुई आजादी बचानी होगी । वरना हम वापस गुलाम बन जायेंगे । अत: देशवासियों ! भारत की आजादी को बचाने के लिए आइये, हम संकल्प करें व कंधे से कंधा मिलाकर एकजुट हो जायें ।
महात्मा गांधी अपने अंतिम समय तक भारतवासियों को यह समझाने में लगे रहे कि उन्हें आजादी के बाद जो उपयुक्त शासन व्यवस्था बनानी है, वह बिना सद्भाव और सहकार के नहीं बन सकती ।
कोई है ऐसा जो देश के इन प्रधान सेवकों को ये बातें समझाए ?
विनाशकारी विकास का बहिष्कार करो
राजनेताओं की झूठी बातों पर विश्वास मत करो । ये विकास की बातें करके मूर्ख बनाते हैं, जनता को गुमराह करते हैं । हकीकत में विकास नहीं, देश विनाश की ओर तेजी से जा रहा है । विकास तो तब माना जायेगा जब प्रदूषण घटेगा, विकास तो तब माना जायेगा जब जेलों में कैदियों की, आरोपियों की संख्या घटेगी, न्यायालयों में केस घटेंगे, अपराध घटेंगे, आत्महत्याएँ घटेंगी और आप देखोगे तो पाओगे ये सब निरंतर बढ़ रहा है । इन सबका विकास हो रहा है, हमें ऐसा विकास हरगिज नहीं चाहिए ! देश में जनता की पीड़ा, जनता का दुःख, कष्ट, तनाव सब बढ़ रहा है । ऐसे विकास का बहिष्कार करो ! विकास के नाम पर जनता को गुमराह करना बंद करो ।
आप कोई ऐसी पहल कीजिये जो समाज के लिए, देश के लिए हितकारी हो ! वाकई सराहनीय हो । मैं चाहता हूँ हम सबकी शक्ति और हमारा सामर्थ्य समाज के, देश के हर तबके के लोगों के हित में लगे ! जनहित ही हमारा लक्ष्य हो । कोई भी विकास की पहल जो देर-सबेर हितकारी नहीं है, उसे छोड़ देना चाहिए । विकास के पहले हित-अहित की गहराई से समीक्षा होनी चाहिए । ऐसी समीक्षा के बिना किया हुआ विकास अंततः विनाशकारी होता है ।
भारत का सामान्य जन-जीवन त्रस्त, विक्षिप्त, परेशान और तनावग्रस्त बनता जा रहा है । नेता लोग अपने अहंकार व पद प्रतिष्ठा के नशे में चूर-चूर हैं और अपने वाक्चातुर्य से लाखों-करोड़ों लोगों को आकाशी फूल दिखाते हैं, जो कभी मिलते नहीं । मैं ये सारी बातें बहुत विवेकपूर्वक भारत के बहुआयामी पक्षों पर मानवतावादी दृष्टिकोण से विचार करने के बाद आपको बता रहा हूँ ।
मेरी बात पर आप विचार करेंगे तो आपको मालूम पड़ेगा कि मेरी बात-ये आपकी बात है । मेरी बात जन-जन की बात है । भारत की अधिकतर जनता के हृदय की पीड़ा को अभिव्यक्त करने की मैंने हिम्मत की है । मेरे विचारों में, मेरी लेखनी में भारतीय सामाजिक जीवन पूरी पारदर्शिता के साथ अभिव्यक्त हो, इसकी मैंने पूरी कोशिश की है ।