आत्मा में दृढ़ अभ्यास और संसार से वैराग्य होते ही स्वभाव सत्ता प्रगट हो जाती है । (With determined practice in the soul & dispassion from the world, the intrinsic power gets manifested.)
निष्काम कर्म ही अपना सच्चा मित्र है । जैसे पिता पुत्र को अशुभ की ओर से बचाकर शुभ की ओर लगाता है, वैसे ही निष्काम कर्म अपने को श्रेष्ठता प्रदान करते हैं । (Selfless action is our true friend. Just as a father safeguards his son from the inauspicious and deploys him in the auspicious [...]
जिसे अपनी आत्मा में दृढ़ धारणा है और संसार नीरस भासता है - वह पूजनीय, वंदनीय हो जाता है । (Anyone who is firmly established in his soul & deems the world as dull/ boring- becomes worthy of worship & idolization.)
ईश्वर दूर नहीं, भेद नहीं । अनुभवस्वरूप, ज्योति, परम बोध स्वरूप है । (The Supreme is not distant or different. He is an embodiment of experience, radiance & realization.)
संसार से वैराग्य, संतों की संगति, आत्मा में प्रीति - जिसको मिली वह तो तरा, दूसरों को तारने का सामर्थ भी पाया । (He who has attained detachment of world, vicinity of saints & affability towards the soul not only transcends the worldly limits but also becomes competent for making others do so.)
ऐसा दुःख नरक में भी नहीं जैसा तृष्णावान को होता है । अतः तृष्णा छोड़ो । संतोष बड़ा धन है । वही परम शांत, परम सुखी हुआ जिसको संतोष हुआ । (A desirous person feels more pain than in hell. So abandon every desire. Contentment is great wealth. Only that who is contented is absolutely [...]
जगत प्रतीत ही नहीं होना चाहिए । निर्वासनिक होगा तो दुःख क्यों मिलेगा ? (This world should not be perceived at all. When the being gets free of every desire then why would any pain impact at all?)
जब तक चित्त का दृश्य के साथ संबंध है, तब तक कर्मबंधन बना ही रहेगा, अतः दृश्य के साथ संबंध तोड़ो । शुद्ध अद्वैत चिन्मात्र तत्व को प्राप्त करो । (Until the Chitta (mind & intellect) is attached to sight, bondage of Karma will persist. Hence, sever your relationship with sight. Attain the pristine consciousness [...]
वही ईश्वर ब्रह्म है । साक्षी, गंभीर, आत्मा, ॐ कार, प्रणव, परब्रह्म, चेतन, परमात्मा आदि उसी के नाम हैं । जब उस ईश्वर की कृपा होती है तब जीवन अंतर्मुख होकर निर्मल होता है । निर्मल हृदय में आत्मा की भावना होती है फिर विवेकरूपी दूत ईश्वर भेजता है । विवेक के आते ही आत्म [...]
मन को संकल्प-विकल्प रहित करके देखो, सारा दृश्य एक रूप हो जाएगा । (Just eradicate every resolve & counter-resolve from your mind and the entire outlook will become homogeneous.)