चतुर्मास व्रत
चतुर्मास में भगवान नारायण एक रूप में तो राजा बलि के पास रहते हैं और दूसरे रूप में शेष शय्या पर शयन करते हैं, अपने योग स्वभाव में, शांत स्वभाव में, ब्रह्मानंद स्वभाव में रहते हैं। अतः इन दिनों में किया हुआ जप, संयम, दान, उपवास, मौन विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी है। भगवान शेषशय्या पर सोते हैं, अतः हमें धरती या पलंग पर सादा बिस्तर अथवा कम्बल बिछाकर शयन करना चाहिए।
चतुर्मास में दीपदान करने वाले की बुद्धि, विचार और व्यवहार में ठीक ज्ञान-प्रकाश की वृद्धि होती है और कई दीपदान करने का फल भी होता है। इन दिनों में प्रात: नक्षत्र (तारे) दिखें उसी समय उठ जाय, नक्षत्र-दर्शन करे। चौबीस घंटे में एक बार भोजन करे ऐसे व्रत परायण व्यक्ति को अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिल जाता है। (पद्म पुराणउत्तर खंड)
चतुर्मास में केवल दूध पर रहने वाले अथवा केवल फल पर रहनेवाले के पापों का नाश हो जाता है तथा साधन-भजन में बड़ा बल मिलता है ऐसा स्कंद पुराण में लिखा है। नमक का त्याग कर सकें तो अच्छा है। जो दही का त्याग करता है उसको गोलोक की प्राप्ति होती है।
चतुर्मास में दोनों पक्षों की एकादशी रखनी चाहिए। बाकी दिनों में गृहस्थी को शुक्ल पक्ष की ही एकादशी रखनी चाहिए। चतुर्मास में शादी-विवाह, सकाम कर्म वर्जित हैं। तिल व आँवला मिश्रित अथवा बिल्वपत्र के जल से स्नान करना पापनाशक, प्रसन्नतादायक होगा। अगर ‘ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय…’ ५ बार जप करके फिर पानी का लोटा सिर पर डाला तो पित्त की बीमारी, कंठ का सूखना यह कम हो जायेगा, – चिड़चिड़ा स्वभाव भी कम हो जायेगा।
चतुर्मास में पाचनतंत्र दुर्बल होता है तो खानपान सादा, सुपाच्य होना चाहिए। इन दिनों पलाश की पत्तल पर भोजन करनेवाले को एक-एक दिन एक-एक यज्ञ करने का फल होता है, वह धनवान, रूपवान और मानयोग्य व्यक्ति बन जायेगा। पलाश की पत्तल पर भोजन बड़े-बड़े पातकों का नाशक है, ब्रह्मभाव को प्राप्त करानेवाला होता है। नहीं तो वटवृक्ष के पत्तों या पत्तल पर भोजन करना पुण्यदायी कहा गया है।
भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाओ तो पूरे मंदिर में बिल्वपत्र का हवामान रहेगा और वही हवा श्वास के द्वारा व्यक्ति लेगा, इससे वायु प्रकोप दूर होगा तथा वनस्पति व मंत्र का आपस में जो मेल होगा उसका भी लाभ मिलेगा। इसलिए सावन महीने में बिल्वपत्र की महिमा है।
इन ४ महीनों में अगर पति-पत्नी हैं, तब भी ब्रह्मचर्य का पालन करना आयु, आरोग्य और पुष्टि में वृद्धि करता है। भोग-विलास, शारीरिक स्पर्श ज्यादा हानि करेगा। इस समय सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ती हैं तो जीवनीशक्ति कमजोर रहती है, जिससे वीर्य, ओज कम बनता है। जो विदेशी लोग चतुर्मास के महत्त्व को नहीं जानते वे ‘यह पाऊँ, यह खाऊँ…’ में उलझते हैं, विकलांग, चिड़चिड़े, पति-बदलू, पत्नी-बदलू, फैशन-बदलू हो जाते हैं, फिर भी दुःखी व अशांत रहते हैं। जो इसका महत्त्व जानते हैं और नियम पालते हैं वे कुछ बदलू नहीं होते फिर भी अबदल आत्मा में उनका रसमय जीवन होता है
कितनी असुविधा होती है भारतवासियों को, फिर भी शांति, आनंद और मस्ती-मजे में रह रहे हैं। और कई माई-भाई ऐसे हैं कि जो वे कह देते हैं वह हो जाता है अथवा जो होनी होती है वह उनको पता चल जाती है।
चतुर्मास में निंदा न करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, किसी भी अविवाहित या दूसरे की विवाहित स्त्री पर बुरी नजर न करे, संत-दर्शन करे, संत के वचनवाले सत्शास्त्र पढ़े, सत्संग सुने, संतों की सेवा करे और सुबह या जब समय मिले भ्रूमध्य में ॐकार का ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है।
मिथ्या आचरण का त्याग कर दे और जप अनुष्ठान करे तो उसे ब्रह्मविद्या का अधिकार मिल जाता है।
जिसने चतुर्मास में संयम करके अपना साधन-भजन का धन नहीं इकट्ठा किया मानो उसने अपने हाथ से अमृत का घड़ा गिरा दिया। और मासों की अपेक्षा चतुर्मास में बहुत शीघ्रता से आध्यात्मिक उन्नति होती है। जैसे चतुर्मास में दूसरे मौसम की अपेक्षा पेड़-पौधों की कलमें विशेष रूप से लग जाती हैं, ऐसे ही चतुर्मास में पुण्य, दान, यज्ञ, व्रत, सत्य आदि भी आपके गहरे मन में विशेष लग जाते हैं और महाफल देने तक आपकी मदद में रहते हैं।
चतुर्मास के व्रत-नियम
(1) गुड़, ताम्बूल (पान या बीड़ा), साग व शहद के त्याग से मनुष्य को पुण्य की प्राप्ति होती है । (2) दूध-दही छोड़नेवाले मनुष्य को गोलोक की प्राप्ति होती है । (3) पलाश के पत्तों में किया गया एक-एक बार का भोजन त्रिरात्र व्रत (तीन दिन तक का उपवास कर किया गया व्रत) व चांद्रायण व्रत (चंद्रमा की एक कला हो तब एक कौर इस प्रकार रोज एक-एक बढ़ाते हुए पूनम के दिन 15 कौर भोजन लें और फिर उसी प्रकार घटाते जायें) के समान पुण्यदायक और बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाला है । (4) पृथ्वी पर बैठकर प्राणों को 5 आहुतियाँ देकर मौनपूर्वक भोजन करने से मनुष्य के 5 पातक निश्चय
ही नष्ट हो जाते हैं । (5) पंचगव्य का पान करनेवाले को चान्द्रायण व्रत का फल मिलता है ।
(6) चौमासे में भूमि पर शयन करनेवाले मनुष्य को निरोगता, धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है । उसे कभी कोढ़ की बीमारी नहीं होती ।
उपवास का लाभ
चतुर्मास में रोज एक समय भोजन करनेवाला पुरुष अग्निष्टोम यज्ञ का फल पाता है । चतुर्मास में दोनों पक्षों (कृष्ण व शुक्ल पक्ष) की एकादशियों का व्रत व उपवास महापुण्यदायी है ।
त्यागने योग्य
(1) सावन में साग, भादों में दही, आश्विन में दूध तथा कार्तिक में दाल व करेला का त्याग ।
(2) काँसे के बर्तनों का त्याग ।
(3) विवाह आदि सकाम कर्म वर्जित हैं ।
चतुर्मास में परनिंदा का विशेष रूप से त्याग करें । परनिंदा महान पाप, महान भय व महान दुःख है । परनिंदा सुननेवाला भी पापी होता है ।
जो चतुर्मास में भगवत्प्रीति के लिए अपना प्रिय भोग यत्नपूर्वक त्यागता है, उसकी त्यागी हुई वस्तुएँ उसे अक्षयरूप में प्राप्त होती हैं ।
ब्रह्मचर्य का पालन करें
चतुर्मास में ब्रह्मचर्य-पालन करनेवाले को स्वर्गलोक की प्राप्ति तथा असत्य-भाषण, क्रोध एवं पर्व के अवसर पर मैथुन का त्याग करनेवाले को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है ।
जप एवं स्तोत्रपाठ का फल
जो चतुर्मास में भगवान विष्णु के आगे खड़ा होकर ‘पुरुष सूक्त’ का पाठ करता है, उसकी बुद्धि बढ़ती है (‘पुरुष सूक्त’ के लिए पढ़ें ऋषि प्रसाद, जुलाई 2012) । चतुर्मास में ‘नमो नारायणाय’ का जप करने से सौ गुने फल की प्राप्ति होती है तथा भगवान के नाम का कीर्तन और जप करने से कोटि गुना फल मिलता है ।
स्नान व स्वास्थ्य-सुरक्षा
चतुर्मास में प्रतिदिन आँवला रस मिश्रित जल से स्नान करने से नित्य महापुण्य की प्राप्ति होती है । बाल्टी में 1-2 बिल्वपत्र डाल के ‘ॐ नमः शिवाय’ का 4-5 बार जप करके स्नान करने से वायु-प्रकोप दूर होता है, स्वास्थ्य-रक्षा होती है ।
साधना का सुवर्णकाल
चतुर्मास साधना का सुवर्णकाल माना गया है । जिस प्रकार चींटियाँ वर्षाकाल हेतु इससे पहले के दिनों में ही अपने लिए उपयोगी साधन-संचय कर लेती हैं, उसी प्रकार साधक को भी इस अमृतोपम समय में पुण्यों की अभिवृद्धि कर परमात्म-सुख की ओर आगे बढ़ना चाहिए ।
चतुर्मास में शास्त्रोक्त नियम-व्रत पालन, दान, जप-ध्यान, मंत्रानुष्ठान, गौ-सेवा, हवन, स्वाध्याय, सत्पुरुषों की सेवा, संत-दर्शन व सत्संग-श्रवण आदि धर्म के पालन से महापुण्य की प्राप्ति होती है । जो मनुष्य नियम, व्रत अथवा जप के बिना चौमासा बिताता है, वह मूर्ख है । चतुर्मास का पुण्यलाभ लेने के लिए प्रेरित करते हुए पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘तुम यह संकल्प करो कि यह जो चतुर्मास शुरू हो रहा है, उसमें हम साधना की पूँजी बढ़ायेंगे । यहाँ के रुपये तुम्हारी पूँजी नहीं हैं, तुम्हारे शरीर की पूँजी हैं । लेकिन साधना तुम्हारी पूँजी होगी, मौत के बाप की ताकत नहीं जो उसे छीन सके !
चतुर्मास में कोई अनुष्ठान का नियम अथवा एक समय भोजन और एकांतवास का नियम ले लो । कुछ समय ‘श्री योगवासिष्ठ महारामायण’ या ‘ईश्वर की ओर’ पुस्तक पढ़ने अथवा सत्संग सुनने का नियम ले सकते हैं । इस प्रकार अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ-न-कुछ साधन-भजन का नियम लेना चाहिए ।