जो चित में है और जो बाहर है दोनों ही मिथ्या है। अपने मन में जो भरा है वही भीतर और बाहर दिखता है। परंतु तुम तो मन से, बुद्धि से, बाहर व भीतर दोनों से ऊपर उठ जाओ। तब तुम देखोगे कि सब कल्पना ही है, मन का विलास है, भ्रम है, स्वप्न है, असत्य है और अगर कोई सत्य है तो वह केवल तुम ही हो।