वही ईश्वर ब्रह्म है । साक्षी, गंभीर, आत्मा, ॐ कार, प्रणव, परब्रह्म, चेतन, परमात्मा आदि उसी के नाम हैं । जब उस ईश्वर की कृपा होती है तब जीवन अंतर्मुख होकर निर्मल होता है । निर्मल हृदय में आत्मा की भावना होती है फिर विवेकरूपी दूत ईश्वर भेजता है । विवेक के आते ही आत्म प्राप्ति होती है ।
(God is the Supreme only! He’s verily known as the Witness, Solemn, Soul, Omkar, Pranav, Consciousness, the Supreme Lord… When the Lord’s divine grace is showered, our lives get purified by becoming introversive. And a purified heart fosters the notion of soul then the Lord sends the messenger of discernment. With the advent of discernment the being attains his ‘true self’.)