मैं संपूर्ण आदर और श्रद्धा के साथ मेरे मार्गदर्शक, आचार्य, सद्गुरु को मैं विश्व में जहाँ भी हूँ, वहीँ से प्रणाम करता हूँ । जो कुछ दोष हैं वे मेरे हैं । और जो कुछ भी मेरे जीवन में सद्गुण हैं, अच्छाइयाँ हैं वो सब उनकी तरह से मिली हैं । मेरे जीवन की श्रेष्ठता के लिए मैं जितना भी धन्यवाद करूँ, कम है । उनकी कृपा, उनकी दी हुई समझ, उनका प्रदान किया ज्ञान… आज भी मुझे कम आता है । जबतक जीवन रहेगा उनका प्रदान किया हुआ ये अखूट खजाना मेरे काम आता रहेगा !
मैं उनका कृतज्ञ हूँ और रहूँगा ! उन्हें शत शत नमन… !