‘ओजस्वी अध्यात्म’ के प्रणेता, युवा ऋषि, लोकप्रिय क्रांतिकारी लीडर नारायण साँई का गुरुपूर्णिमा के (27 जुलाई, 2018) पर्व पर विश्व के सभी देशों में फैले फॉलोवर्स के नाम अत्यंत महत्वपूर्ण संदेश :-

‘बदलाव के नायक बनो,

आध्यात्मिक क्रांति करो ।’

विश्व के सभी देशों में निवास करनेवाले, गुरु-शिष्य परंपरा से जुड़े हुए, मेरे प्यारे साधक-भक्तजनों, शिष्यों, समर्थकों, चाहकों को गुरुपूर्णिमा के पावन पवित्र पर्व पर ‘जय गुरुदेव… हरि ओम… ओम शांति… नमो नारायण… जय श्री कृष्ण… राम-राम, सीताराम… जय भोले… जय गिरनारी… आमीन… सलाम वालेकुम… जय योगेश्वर… जय स्वामीनारायण… हर हर महादेव… ओहम्मो… ओहम्मो… ओहम्मो… सत् श्री अकाल’

इस दुनिया की सबसे पुरानी पवित्र किताब, जिसे हिन्दू वेद कहते हैं और आज जितने भी धर्म-संप्रदायों का अस्तित्व इस दुनिया में है उन सभी धर्मों-मत-मजहबों से पहले जिसको इंसान ने माना था उसमें लिखा है – ‘एकं सत् बहुधा वदन्ति विप्राः ।’ मतलब कि सत्य एक है लेकिन उसे समझदार विद्वानों ने कई तरह से बयां किया है । रोशनी-प्रकाश एक है उसे अलग-अलग जगह से देखा है, अनुभव किया है ।

है वो एक का एक… जिसे गुरुनानक देवजी ने कहा – ‘एक ओंकार, सतनाम… आदि सचु, जुगादि सचु, है भी सचु, नानिक होसे भी सचु…’ मतलब कि वह पहले भी सच था, युगों-युगों से पहले वह सच आज भी है और वह सच आगे भी रहेगा… उसमें विकृति या मिलावट नहीं हो सकती… वह वैसा का वैसा ही है लेकिन हम उस सच को जानने-पहचानने और आत्मसात् करने में कहीं-न-कहीं चूक कर रहे हैं, नादानी कर रहे हैं, गलती कर रहे हैं, उस गलती को सुधार दें तो बस…

हो गया बेड़ा पार समझो…! फिर गा उठोगे आप भी,

 

‘आ गया आना जहाँ पहुँचा वहाँ आना जहाँ !

अब नहीं आना न जाना काम क्या बाकी रहा !!

लग गया पूरा निशाना काम क्या बाकी रहा !!!’

जी हाँ, और फिर सद्गुरु का अनुभव हमारा अनुभव बनते देर न लगेगी । हम भी वही अनुभव गुनगुनायेंगे कि –

‘हम वासी उस देश के जहाँ पार ब्रह्म का खेल ।

दिया जले अगम का बिन बाती बिन तेल ।।

अब, इस गुरुपूर्णिमा के पर्व को सार्थक सफल बनाइये और याद कीजिए, पुण्य स्मरण कीजिए सद्गुरु का, सत् की राह दिखानेवाले, सत् की पहचान बतानेवाले, आचार्य भगवत्पाद गुरु भगवंत के प्रति कृतज्ञ हो, प्रणाम निवेदित कीजिए… क्योंकि ‘नास्ति तत्वं गुरोः परम्‘ कि गुरु के समान कोई तत्व नहीं है । ‘तस्मै श्री गुरुवे नमः’ ऐसे गुरु को नमस्कार कि जो अज्ञान-नासमझी को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से हमारे हृदय को आलोकित करते है, पुलकित करते है, आनंदित करते हैं और जन्मों-जन्मों के कर्मों को ज्ञानाग्नि में भस्म करते हैं… ऐसे गुरु को वंदन…वंदन…वंदन… अभिनन्दन है…! नमन… नमन… नमन… है उनको फिर-फिर अभिनन्दन है । सार्थक बनाते हैं जो जीवन को और घट के पट खोलकर जीवन जीने का सही अर्थ समझाते हैं… सिखाते हैं कि वेदान्तिक जीवनशैली को कैसे जीया जाता है हँसते, खेलते, मुस्कुराते हुए ! हर आपदा को अवसर में बदलने की युक्ति सिखाते हैं जो, मुसीबतों के बीच मुस्कुराने की ताकत देते हैं जो, दुःखों के बीच समता का सुखद अहसास देते हैं जो, दूर रहकर भी नजदीक होते हैं जो, साँसों की सहज साधना में ‘सोहम्’ ‘शिवोहम्’ का अनहद नाद जगाते हैं जो, हमारे ‘सद्गुरु’ अलख पुरुष हैं वो… जिसे विरले लोग ही तत्वतः जान पाते हैं और ब्राह्मी स्थिति को उनकी कृपा से प्राप्त कर निःशक, निर्भय हो जीवन को धन्य बनाते हैं ।

ऐसे महाप्राज्ञ, महमनीषि, परम पुरुष ‘सद्गुरु’ को प्राप्त कर अधम से अधम, पापी से पापी, दुरात्मा, दुराचारी, पापों में रत, घोर अपराधी मनुष्य भी उनके कल्याणकारी दर्शन व पुण्यमय ज्ञान से पवित्र होकर, सदाचारी, धर्मात्मा, पुण्यात्मा बन जाता है और महात्मा की ऊँचाईयों को छूने लगता है जिसका प्रमाण श्रीकृष्ण ने गीता में दिया है… पढ़ लेना ये श्लोक –

‘अपिचेत्सुदुराचारो भजते माम् अन्यत्र भाक्…’

तो, आप चाहे विश्व के किसी भी देश के, किसी भी कोने में क्यों न हों, आप किसी धर्म-मत-संप्रदाय के क्यों न हों – आप आध्यात्मिक हैं । आप गुरु का सम्मान करें । अपने सद्गुरु का पुण्य स्मरण करें । ‘सद्गुरु’ आपको दूर बैठे भी वह दे सकते हैं कि जो शाश्वत है, अमिट है, दिव्य है, अलौकिक है ।

संत कबीर एक अच्छे गुरु थे | उनके वचन आज भी ज्ञान के नेत्र खोलने की ताकत रखते हैं | उन्होंने कहा है –

साधु मिले साहेब मिले अंतर रही न रेख |

मनसा वाचा कर्मणा साधु साहेब एक ||

साहेब याने ईश्वर | ईश्वर मिले या साधु मिले, मानों अंतर ही नहीं है उनमें | मन से, वचन से, कर्म से – दोनों एक हैं ।

कल्पना कीजिए सद्गुरु ने किस दिव्य रूप का उनको दर्शन कराया होगा या फिर संत कबीर जी की श्रद्धा की पराकाष्ठा तो देखिए कि उन्हें ईश्वर और गुरु दोनों एक ही लगने लगे |

कभी आपने गाया होगा या सुनी होगी ये पंक्तियाँ…

“दीद हैं दो पर दृष्टि एक है

     लघु-गुरु में वही एक है

सर्वत्र एक किसे बतलाऐं

        सर्वव्याप्त कहाँ आये जाए…

अनंत शक्तिवाला अविनाशी

      रिद्धि-सिद्धि उसकी दासी

सारा ही ब्रह्मांड पसारा

        चले उसकी इच्छा अनुसारा ।।

तो दीद दो है दृष्टि एक है – ये बात समझने की है कि दिखता चाहे दो है पर है एक-एक और एक ही | ‘एकत्वमनुपश्यतः’ (गीता) – वह फिर एक ही देखता है । ‘द्वितीया द्वेतं भयं भवति’ जहाँ दो है – वहाँ द्वेत है वहीं भय है । जहाँ अद्वेत है वहीं आनंद है और निर्भयता है ।

तो, हो सकता है कि दुनिया में बसनेवाले शिष्यों के गुरुदेव अलग-अलग हों – किसी के गुरु कोई हों, किसी के कोई हों – ये हो सकता है पर शिष्य होना ये सौभाग्य है । शिष्य होना ये समझदारी है । शिष्य वही बनेगा जो अहंकारी नहीं होगा । शिष्य वही होगा जिसको सीखने, समझने की रुचि होगी । जानने की जिज्ञासा होगी । ज्ञान से प्रेम होगा । किसी ने ठीक कहा है कि सच्चा शिष्य होना कठिन है ।

मैं चाहता हूँ कि दुनियाभर के सभी शिष्यों का परस्पर संवाद हो । वे अपने-अपने गुरु से लिए हुए ज्ञान को आपस में साझा करें । अपने-अपने गुरु की महिमा का गान करें और जो सोश्यल प्लेटफॉर्म का उपयोग करते हैं वे पूरी दुनिया में फैले शिष्य समुदाय से कम्युनिकेशन करते रहें । चाहे वे परमहंस योगानंद के शिष्य हों या ओशो के अनुयायी हों, कबीर के पंथ के हों या गुरुनानक के सिक्ख हों – गुरु की सीख माननेवाले – दक्ष गुरुओं की शिक्षा को अंगीकार करनेवाले – ‘गुरु ग्रंथ साहेब’ को माननेवाले शिष्य हों या फिर निरंकारी हो या राधास्वामी को माननेवाले हों, स्वामीनारायण संप्रदाय के सहजानंद, गुणातीतानंद व शिक्षा पत्री का स्वाध्याय करनेवाले हों या फिर जय गुरुदेव – महर्षि महेश योगी, श्री श्री रविशंकरजी के आर्ट ऑफ लिविंग से जुड़े हों, साधु वासवाणीजी को सुननेवाले श्रोता-शिष्य हों या फिर स्वामी नित्यानंद, स्वामी मुक्तानंद व स्वामी चिद् विलासानंदजी से जुड़े हुए आध्यात्मिक राह के पथिक हों, आद्य शंकराचार्य को गुरु मानानेवाले हों या फिर आर्य समाज के दयानन्द ऋषि द्वारा प्रतिपादित ‘सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ’ का अनुमोदन करनेवाले आर्य समाजी हों, ब्रह्मकुमारीजी के द्वारा, गायत्री शक्ति पीठ, युग निर्माण योजना के प्रणेता गुरुदेव पं. श्री राम शर्मा आचार्यजी से दीक्षित हों या उनके विचारों के समर्थक बनकर अनुगामी बने हो, या इस्कोन से जुड़े हों, वे सारे, वे तमाम जो जीवन को शाश्वत पारमार्थिक मार्ग की ओर ले जाने के लिए प्रयासरत हो वे सभी दुनियाभर के शिष्य, साधक, भक्तजनों को मैं इस गुरुपूर्णिमा के पर्व पर हार्दिक शुभकामनाऐं देता हूँ और विश्व में आध्यात्मिक क्रांति लाने के लिए आमंत्रित करता हूँ |

#Sadgurufollowers हेशटैग पर अपने-अपने गुरु की महिमा का गान करें, अपने गुरु के साथ हुए अनुभवों को इस मंच पर साझा करें और अपने देश को सद्गुरु के ज्ञान पर मैत्री-करुणा-प्रेम आधारित देश बनाने के लिए प्रयास करें |

हम सभी शिष्यवृंद इस विश्व को आतंक-अत्याचार-हिंसा से मुक्त बनाऐं और आनंद-शांति-सुख और प्रेम को जग में फैलाऐं | विस्तार करें |

Happy Gurupoornima

विश्वभर में फैले हुए सद्गुरुजी के सभी शिष्यों से मैं अपील करता हूँ कि अब हम सभी शिष्यों को एक होकर दुनिया में बदलाव के नायक, चेंजमेकर्स बनना है । नफरत, वैर, द्वेष और इर्ष्या से मुक्त होकर एक अच्छा देश, श्रेष्ठ दुनिया बनाने के प्रयास करने हैं |

दुनियाभर के सभी धर्मों के श्रेष्ठ धार्मिक आध्यात्मिक संगठनों के प्रमुख, सद्गुरुओं के शिष्य-अनुयायी-अनुगामी अब एक हो जाऐं और विश्व में ‘आध्यात्मिक क्रांति’ का सूत्रपात करें | गुरुपूर्णिमा पर यह संकल्प ही सही अर्थों में अपने गुरुदेव को दी जानेवाली श्रेष्ठ दक्षिणा होगी |

– नारायण साँई, ट्रस्टी, संत आशारामजी आश्रम ट्रस्ट |

27जुलाई, 2018, गुरुपूर्णिमा ।

Comments (3)
कमल किशोर यादव
July 27, 2018 1:00 am

गुरुपूर्णिमा कि सभी साधको व भक्कतो को हार्दिक बधाई।

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कमल किशोर यादव
July 27, 2018 1:07 am

सभी साधको व भक्तो को गुरु पूर्णिमा की हार्दिक बधाई।

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Charu sheela joshi
July 27, 2018 9:27 am

जय हो प्रभू।सद्गुरु भगवान की जय।

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