हिम्मत कभी न हारों !
(स्वामी विवेकानंद प्रेरक प्रसंग)
– पूज्य नारायण साँईं जी
लक्ष्यप्राप्ति की बलिवेदी पर, अपना तन-मन वारो ।
वार वार के वारो, चिंता, भय को फेंको ।
हिम्मत कभी न हारो साथियों !
हिम्मत कभी न हारो बच्चों !
हिम्मत कभी न हारो भाईयों !
हिम्मत कभी न हारो !
अपने अंतर में साहस, उद्यम, बल, शक्ति, उत्साह, तेज, पौरुष, दिव्यता को साथ लेकर कदम आगे बढ़ाओ । ये गुरु का आशीर्वाद हैं कि सफलता तुम्हारे चरण चूमने के लिए तैयार है वत्स ! उठो ! अपने आपको भगवान को अर्पित करो । अपनी चिंता, शोक और भय सभी उसे अर्पित करो क्योंकि है वो ही उत्तम सहारा । संसार सहारा नहीं है । संसार के ऊपर डिपेंड रहोगे तो टेंशन, worry ये सब । विवेकानंद जा रहे थे और सर्दियों की सीजन रही होगी । रास्ते में जो उनका वेश था बड़ी लंबी-चौड़ी पगड़ी, लम्बा वो उनका भेष, सन्यासी फिर धोती । ब्रह्मचर्यावस्था, हट्टे-कट्टे, कद्दावर, very bold वो देखके कुत्ते उनके पीछे-पीछे लग गए । भौं…भौं… भौं… तो दूसरी साइड भौं…भौं… भौं… है , पीछे-पीछे लगे तो विवेकानंद और आगे-आगे । कुत्ता with फैमिली उनके पीछे दौड़े । भौं… भौं… ऐसे पीछे लगे, ऐसे पीछे लगे । विवेकानंद खड़े हो गए । उनकी ओर देखा पीछे मुड़ गए और वे जहाँ से आ रहे थे उधर की ओर चले । उनका जो हॉर्न था वो कम होता गया और फिर विवेकानंद ने एकटक उनकी ओर देखा । तो जो पीछे आ रहे थे न । पूँछ ऊँची थी न, अब नीचे हो गई । दोनों पैरों के बीच पूँछ दबाके वो वापस जाने का रास्ता ढूँढ़ रहे । विवेकानंद ने कहा कि जब तुम मुसीबत और विघ्नरूपी कुत्ते से डरते हो तो with फैमिली वो तुम्हारा पीछा करते है और जब तुम उनका सामना करते हो तो पूँछ दबाकर भाग जाते है । यही सफलता का सिद्धांत है । विघ्नों से डरो मत । चिंताओं से डरो मत । Face Them ! उनका सामना करो और देखोगे कि उनकी कोई ताकत नहीं कि वे तुम्हारे सामने खड़े रह सके ।