
गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था :
“प्रेम का उपहार दिया नहीं जा सकता, वह प्रतिक्षा करता है कि उसे स्वीकार किया जाए !”
मेरे …
अनन्त, अक्षुण्ण, अगाध, अप्रतीम, असीम दिव्य प्रेम को आप स्वीकार करें, बस मैं यही चाहता हूँ !
आपके निःस्वार्थ, निष्काम प्रेम को मैंने स्वीकार किया है इसी अनुभव से हर हाल में मुझे प्रसन्नता है !
मेरी खुशी, मेरी मस्ती, मेरी रौनक, मेरी तेजस्वीता… की वजह है आपका प्रेम, आपकी मोहब्बत ! अब हमें इस जग में प्रेमपंथ चलाना चाहिए !
‘ओहम्मो’