उल्लास और आनंद के समागम के साथ
जीवन में रंग भरती होली…
जीवन में इसका बड़ा महत्त्व है कि हम कैसे रंगों का समायोजन, अलगाव या जुड़ाव रखते हैं । जीवन में रंग महती भूमिका निभाते हैं । रंगों के माध्यम से ही हम प्रकृति की हरियाली से लेकर सूरज की सुनहरी रोशनी, आसमान का नीलापन और चंद्रमा की उजास देख पाते हैं । बादलों के बीच दिखती सात रंगों की इंद्रधनुषी रेखाएँ प्रत्येक रंग की सुंदर कहानियाँ बयाँ करती है, जिन्हें देखकर मन रंग-बिरंगी दुनिया का हिस्सा बन जाता है । सही मायने में जीवन को रंग-बिरंगा या ‘रंगहीन बनाना सब कुछ स्वयं के आचरण पर निर्भर करता है, सोच पर निर्भर करता है । आप जैसा सोचेंगे वैसा ही आपके साथ जीवन में होता चला जाएगा ।
वैराग्य यानी रंगहीन ?
रंग से जो परे है, वह रंगहीन नहीं, वह पारदर्शी है । वैराग्य यानी आप न तो कुछ रखते हैं और न ही कुछ परावर्तित करते हैं । अगर आप पारदर्शी हो गए हैं तो आपके पीछे की कोई चीज लाल है, तो आप भी लाल हो जाते हैं । अगर नीली है, तो आप भी नीले हो जाते हैं । आपके भीतर कोई पूर्वाग्रह होता ही नहीं । आप जहाँ भी होते हैं, उसीका हिस्सा हो जाते हैं । वह रंग एक पल के लिए भी आपसे चिपकता नहीं । आप केवल उसके ही नहीं होते हैं, आप सबके होते हैं । इसीलिए अध्यात्म में वैराग्य पर ज्यादा जोर दिया जाता है ।
आप जो रंग बिखेरते हैं, वही आपका हो जाता है । ठीक इसी तरह से जीवन में जो कुछ भी आप देते हैं, वही आपका गुण हो जाता है | सृष्टि महज खेल है राग और रंगों का । फाल्गुन के महीने में यह खेल अपने चरम पर होता है, प्रकृति के मनोहारी व लुभावने रूप को निहार कर जीवों के भीतर राग हिलोरें लेने लगता है ।
जैसा आप बिखेरते हैं वैसा ही रंग जीवन में बिखरने लगता है ।
हर इंसान किसी न किसी रंग में रंगा और अपने राग में मस्त है । दुनिया के रंगमंच पर विभिन्न भूमिकाएँ अदा कर रहे इंसान अलग-अलग रंगों की शरण लेते हैं । साधु-संन्यासी गेरुआ पहनते हैं, तो समाजसेवी सफेद, वहीं सिनेमा के पर्दो पर अभिनय करनेवाले कलाकार दर्शकों का दिल बहलाने के लिए रंग-बिरंगे वस्त्र पहनते हैं । असल में ब्रह्मांड के किसी भी चीज में रंग नहीं है । पानी, हवा, अंतरिक्ष और पूरा जगत ही रंगहीन है । यहाँ तक कि जिन चीजों को आप देखते हैं, वे भी रंगहीन हैं । रंग केवल प्रकाश में होता है । रंग वह नहीं है, जो दिखता है, बल्कि वह है जो त्यागता है । आप जो रंग बिखेरते हैं, वही आपका रंग हो जाएगा । जो अपने पास रख लेंगे, वह आपका रंग नहीं होगा । ठीक इसी तरह से जीवन में जो कुछ भी आप देते हैं, वही आपका गुण हो जाता है । अगर आनंद देंगे तो लोग कहेंगे कि आप एक आनंदित इंसान हैं । आपका व्यवहार और आचरण ही बताएगा कि आप पर किस रंग की छाप है ।
हर रंग कुछ कहता है !
रंगों से हमारे शरीर, मन, आवेग आदि का बहुत गहरा संबंध है । शारीरिक स्वास्थ्य और बीमारी, मन का संतुलन और असंतुलन, आवेगों में कमी और वृद्धि, ये सब इन प्रयत्नों पर निर्भर है कि हम किस प्रकार के रंगों का समायोजन करते हैं और किस प्रकार हम रंगों से अलगाव या जुड़ाव करते हैं । जैसे नीला रंग शरीर में कम होता है, तो क्रोध अधिक आता है । नीले रंग के ध्यान से इसकी पूर्ति हो जाने पर गुस्सा कम हो जाता है । सफेद रंग की कमी होती है, तो अशांति बढ़ती है, लाल रंग की कमी होने पर आलस्य और जड़ता पनपती है । पीले रंग की कमी होने पर ज्ञानतंतु निष्क्रिय हो जाते हैं ।
बुराईयों के खिलाफ प्रयास
होली पर रंगों की गहन साधना हमारी संवदेनाओं को भी उजला करती है, क्योंकि होली बुराईयों के विरुद्ध उठा एक प्रयास है । इसीसे जिंदगी जीने का नया अंदाज मिलता है और दूसरों का दुःख-दर्द बाँटा जाता है । बिखरती मानवीय संवेदनाओं को जोड़ा जाता है । होली को आध्यात्मिक रंगों से खेलने की एक पूरी प्रक्रिया आचार्य महाप्रज्ञ द्वारा प्रणित प्रेक्षाध्यान पद्धति में उपलब्ध है । होली पर प्रेक्षाध्यान के ऐसे विशेष ध्यान आयोजित होते हैं, जिनके जरिए विभिन्न रंगों की होली खेली जा सकती है ।
संतोष में है रंगों का महत्त्व
रंगों का महत्त्व इसलिए भी है कि जिस रंग को आप परावर्तित करते हैं, वह अपने आप ही आपके आभामंडल से जुड़ जाता है । जो लोग आत्म-संयम या साधना के पथ पर हैं, वे खुद से किसी भी नई चीज को नहीं जोड़ना चाहते । उनके पास जो है, वे उसके साथ ही काम करना चाहते हैं । यानी आप अभी जो हैं, उस पर ही काम करना बहुत महत्त्वपूर्ण है । एक-एक करके चीजों को जोड़ने से जटिलता पैदा होती है । इसलिए उन्हें कुछ नहीं चाहिए । विचार यह है कि उनके पास जो है वे उसीसे संतुष्ट हैं, उससे ज्यादा वे कुछ भी नहीं लेना चाहते ।
(साभार – सपना शर्मा)