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कर्म में लगे रहना ही जीवन की सार्थकता है !
किसी भी मनुष्य की जिंदगी में घटनाओं की एक जंजीर होती है । एक कमजोर कड़ी के बाद एक मजबूत कड़ी आये, ऐसा हो सकता है और ऐसा होता भी है कि हमने जिसे निष्फलता मान लिया, वह बड़ी सफलता की जननी बन जाती है । कमजोर और मजबूत कड़ीयों का कुछ गूढ़ संबंध होता है, जो हमें उस क्षण समझ नहीं आता ।
अतः जो कुछ भी सामने आये, उसको हँसते हुए स्वीकारना और वही अंत तक श्रेयस्कर बना रहेगा, ऐसी श्रद्धा रखना हितावह है, ऐसा मैं मानता हूँ । मनुष्य का भाग्य सोने की सलाखें नहीं है या उसका दुर्भाग्य जहर की पुड़िया नहीं है । अविरत जलती चिंगारी के साथ ऐसा कुछ गूढ़ रसायन जिंदगी में भी है, जो अलग-अलग पदार्थों और परिस्थितियों का निर्माण करता है । कहीं पदार्थ दिखने में रंगीन है, परंतु स्वाद में कड़वा है । कहीं स्वाद मधुर है परंतु दिखने में अजीब है । कहीं आकार और स्वाद दोनों अजीब है, परंतु उस पदार्थ में कुछ कल्याणकारी गुण छुपे हुए हैं । इन सबका भेद कोई नहीं जानते और प्रयत्न करने से भी हम जान नहीं पाते हैं । इसीलिये जो हुआ, जो हो रहा है और जो होगा उसमें हमारा भला ही है, ऐसी श्रद्धा रखना ।
जिंदगी में दुःख-सुख आएँगे, परंतु सुख शांति से सार्थक बनाकर हर एक क्षण को श्रेष्ठता से जीना चाहिए । मनुष्य को सभी का आनंद लेना है, परंतु मनुष्य खुद को ही जानना भूल जाता है । मनुष्य सबके साथ आनंद लेना चाहता है, परंतु खुद के साथ ही मित्रता करना भूल जाता है । और अंत में ऐसा होता है कि मनुष्य को लगने लगता है कि वह अपने मार्ग से भटक गया है ।
थोड़ा ही दुःख आता है, तो मनुष्य हतोत्साहित हो जाता है । थोड़ी ही देर में मनुष्य को ऐसा लगने लगता है कि मेरा कोई नहीं है, वो भगवान को भी दोष देने लगता है कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों ? मैं ही क्यों ?
इसीलिये, सुख-दुःख जिंदगी में रहेंगे ही । यह एक ऐसा सनातन सत्य है, जिसमें से सबको गुजरना ही पड़ता है । सत्य यह भी है कि इन दोनों में से कोई भी सदैव नहीं रहेगा । दुःख को जीवित रखने से तो दुःख को समझना जरूरी है । काफी लोग कामचलाऊ आयी हुई परेशानियों को दुःख समझ लेते हैं और दुःखी हो जाते हैं । दुःख को अगर हम जान जायेंगे, तो सुख का भी अच्छे से आनंद ले पायेंगे ।
दुःख को हम गंभीरता से नहीं लेते । दुःख को ऐसा समझें कि ये टिकनेवाला नहीं है, उसके सामने हारना नहीं, थकना नहीं है ! इस प्रकार दुःख के प्रभाव से हमेशा के लिये मुक्ति मिल जायेगी ।
हमें अपने कर्मों से जिंदगी को सार्थक बनाना है । हमें दिल लगाकर किसी भी कार्य में लग जाना है, यही जिंदगी की उत्तम दवा है ! क्योंकि हमें पता नहीं कि सामने आकर खड़ी हुई ‘भाग्य की देवी’ सफलता का संदेश लेकर आई है या निष्फलता का । कभी तत्काल निष्फलता बहुत बड़ी सफलता की चाबी बनकर आती है, तो कभी तत्काल सफलता में निष्फलता या विफलता भी छुपी होती है । इसलिए फल की चिंता किये बिना सतत कर्म में लगे रहना, इसमें ही आनंद है ।
आनंद ही आनंद
मौज ही मौज
परमानंद… सहज कर्म…
सहज आनंद