ये वसंत पंचमी कल थी । वसंतोत्सव का, वसंत ऋतु का शुभारंभ हो रहा है और मातृ-पितृ पूजन दिवस के इस कार्यक्रम में आप सम्मिलित हुए है । देश-विदेश में यह कार्यक्रम बड़े धूमधाम से, बड़े पैमाने पर बहुत श्रद्धा, आदर और माता-पिता, गुरुजनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के उद्देश्य के साथ मनाया जा रहा है ।
जो पहले वेलेंटाइन के रूप में मनाया जाता था वो अब मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में इस कार्यक्रम को मनाने की शुभ परंपरा हमारे पूज्य महापिता श्री, गुरुदेव श्री के संकल्प, प्रेरणा और आशीर्वाद से वैचारिक क्रांति के रूप में ये एक अभियान मानों पिछले चंद वर्षों से शुरू है और इस अभियान से लाखों नहीं, करोड़ों-करोड़ों लोग, अलग-अलग भाषाएँ, अलग-अलग प्रांत, अलग-अलग मत और मजहब के लोग भी इस कार्यक्रम में शरीक होते हैं, ये बड़े गर्व और आनंद का विषय है ।
वसंत में अगर संत के वचन मिल जाए तो क्या कहना है…! वसंत में अगर संत की वाणी श्रवण करने को मिले तो क्या कहना है…! और वसंत में अगर संत के प्रति जन्म-मरण का अंत करने का राह अगर मिल जाती है तो क्या कहना है…!! और उसी राह पर चलने के आप राही बन गए हैं । पथ पर चलने के पथिक बन रहे हैं । इस बात की मुझे अत्यंत प्रसन्नता है ।
कई ऋतुएँ हैं और इन सभी ऋतुओं में वसंत का अपना अलग ही महत्व है और इसलिए वसंत को ऋतुराज कहते है ।
ऋतुराज का अर्थ क्या है कि जिसमें सब कुछ सुशोभित हो । प्रकृति अपने जीवन चक्र के यौवनावस्था में होती है । महाकवि कालिदास हो गए और उन्होंने ऋतुसंहार में इसको विवेकित करते हुए इसको बड़े ऊँचे स्थान पर प्रतिष्ठित किया ।
पुष्प सुंगध बिखेर रहे हैं
सर्वत्र नव लता है
वसंत पंचमी इसी नव लता की चादर है
स्वागत प्रकृति के सर्वोत्तम सृजन तरखरूप का है
पत्ते पुष्प के सुगंधित है ।
नर-नारी उल्लास से भरपूर है और इसलिए इस अवसर पर सरस्वती देवी की पूजा का बड़ा भारी महत्व है ।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।
कहकर हर विद्यालयों में, शिक्षालयों में, शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के साथ ही सरस्वती माँ के दर्शन बहुत ही प्रेरणा देते हैं । वाह क्या बात है कि जिनकी वाणी पर सरस्वती है । जिसके प्रवचन की शैली, मधुर वचन, ज्ञान के वचन जिसके मुख से निकलें । कहा जाता है कि मानों उसकी जीभ/जिह्वा पर मानों सरस्वती बैठी हुई है ।
ज्ञान पंचमी के रूप में भी यह उत्सव मनाया जाता है और हमारे सनातन धर्म के कुछ सिद्धांतों को आत्मसात् करते हुए इसको विशेष जैन धर्म ने महत्व दिया और एक अलग ही अपना अलग ही धर्म चल पड़ा और जैन धर्म के लोग इसको ज्ञान पंचमी के रूप में मनाते हैं और अपने अरिहंतो का, महाराजों का जो शास्त्र हैं उनके जो वचन है उनका पूजन, वंदन, स्वाध्याय, चिंतन करते है ।
तो जैसे सिक्ख धर्म में गुरुग्रंथ साहिब का बड़ा पूजन, मान, आदर और एक अलग ही महत्व है । इसी प्रकार हमें हमारे गुरुजनों और वेद-शास्त्रों के उपनिषदों का इस दिन विशेष आदर करना चाहिए । उनका पूजन करना चाहिए ।
अपने इंदौर आश्रम में कल ऑल इंडिया मुस्लिम धर्म के इमाम आए थे और उन्होंने आश्रम की विजिट की और गुरुकुल में सभी छात्रों से मिले । तो और धर्म के लोग भी अब हमारे धर्म
के नजदीक आ रहे हैं और इसका आदर कर रहे हैं ।
स्वागत प्रकृति के सर्वोत्तम सृजन तरखरूप का है । सरस्वती की पूजा का विधान है । ये बुद्धि और विद्या की प्रदाता है । संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी है ।
ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए लिखा है कि – “प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु ।” मतलब कि ये चेतना की देवी है । ये परम चेतना है और सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका है । भारत में विद्या की जो परंपरा है ये शुष्क युक्ति की नहीं है कि केवल तर्क से, युक्ति से कि विलक्षणता से विद्या प्रतिष्ठित नहीं होती । इससे सृजनात्मकता का सहकार्य है ।
विद्या प्रतिष्ठित नहीं होती ,इससे सृजनात्मकता का सहकार्य है,विज्ञान को कला और कला को विज्ञान के साथ में जोड़ना होगा वरना आज का विज्ञान अवसाद, तनाव, चिंताओं और आत्महत्याओं का चल रहा है,हमारे श्री कृष्ण भगवान ने तो साढे पमच हजार साल पहले ही युद्ध की मरुभूमि में अरण्य की विद्या गाते हुए कहा कि ज्ञान विज्ञान तृप्तत्मा कूटस्थ विजित्तेन्द्रीय युक्तव इति उच्चते योगी समलोष्टा समकांचनः हमें साइंस नहीं चाहिए हमें साइंस और स्प्रिचुअलिटी दोनों को हमें मिलन करवाना है, ज्ञान भी चाहिए और विज्ञान भी चाहिए ।स्प्रिचुअलिटी भी चाहिए और साइंस भी चाहिए रिलीजियस एन्ड साइंस कॉम्बिनेशन ऑफ बोथ तकनीक को शिल्प और शिल्प को तकनीक चाहिए श्वेत वस्त्र धारी और गौर वर्णा सरस्वती वीणा और पुस्तक दोनो धारण किये हुए है,ये कमलासना है हंस वाहिनी भी है मेरे भाइयों और बहनों इसीलिए वसंत में सरस्वती के पूजन का तात्पर्य ये है जीवन मे विवेक होना जरूरी है, महत्वपूर्ण काम जो है वो छूट गया, महत्वपूर्ण कार्य के लिए हम सावधान हैं कि नहीं, तत्पर हैं कि नहीं, रूपया कमाया, पैसा कमाया, डिग्री ले लिया, नॉट अ गोल, ये लक्ष्य नहीं है, परमानंदम ये गुरु वंदना में कहते हैं ब्रह्मानन्दम परमसुखदं केवलं ज्ञान मूर्ति कि जो ब्रह्मानन्द हैं, केवल ज्ञान मूर्ति हैं गुरुजी अंदर हैं स्थूल शरीर से लेकिन चेतना से सूक्ष्म शरीर से वो सबकी आत्मा में रमण करते हैं,गुरुबुद्द्यात्मनो न अन्यत शिवजी ने गुरु गीता में कहा आत्मा में गुरु बुद्धि के सिवा कुछ भी सत्य नहीं है इसीलिए बुद्धिमानों को उस आत्मा को जानने का प्रयत्न करना चाहिए , जो आत्मा को जानेगा वो परमात्मा को जानेगा जो आत्मा को नहीं जानेगा वो परमात्मा को भी नहीं जानेगा, जो आत्मा को जानेगा वो ये देखेगा कि मुझमें भी आत्मा है दूसरे में भी आत्मा है, कण – कण में आत्मा है जर्रे – जर्रे में आत्मा है,सबमें मेरी आत्मा है तो आत्मनि प्रतिकुलनिपरेशाम समा चरेत,अपने लिए जो प्रतिकूल हो ऐसा व्यवहार किसी और के साथ नहीं करना चाहिए । हमारे अंदर अधिक से अधिक प्रादुर्भाव हो,और हम आत्मविद्यावान बनें, राज विद्यावान बनें, राज विद्या राज गुहियम, तो ये राजाओं की विद्या है, ये कोई दुश्मनों की विद्या नहीं है, हम उस राज विद्या के सुपात्र हैं जो कृष्ण ने गीता में कहा । वसंत में सरस्वती की पूजा होने का तात्पर्य है कि कितना विवेक होना जीवन में आवश्यक है और कितना तर्क आवश्यक है कितना संतों और संबंधों पर आधारित समाज आपेक्षित है और कितना सृजक और संबंधों में संवेदना से पूर्ण मानव जीवन ये कितना जरूरी है, ऐसे में वसंत के स्वागत और स्वागत में साहित्य और संगीत और कला में ज्ञान की अधिष्ठात्री का पूजन बहुत महत्वपूर्ण है । आप सबको पता हो या न हो माँ शारदा का प्राचीनतम मंदिर कृष्णा नदी के तीर में मुजफराबाद के कृष्णा नदी के तट पर है बहुत पुराना है। और पौराणिक मान्यता यही है कि ब्रह्मा जी ने इस मंदिर का निर्माण करके माँ शारदा को वहाँ स्थापित किया था इसीलिए उस मंदिर को ही माँ शारदा का प्रागट्य स्थल माना जाता है तो विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री का पूजन इसी प्रकार के सुगयं और सांगीतिक परम्परा को स्थापित करने का दिन है। तो विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री के पूजन का अवसर ऐसे सुरमय जगह पर जो स्थित है ।और अगर हम चाहें, और और सरकार से कहें तो वहाँ भी अच्छी पूजा, उपासना का द्वार खुल सकता है, हमारी बाते मानी जाती हैं तो लोकतंत्र है। तो लोकतंत्र को ले अगर हम आवाज बुलंद करते हैं तो वहाँ भी हिंदुओं के आवागमन का मार्ग प्रशस्त हो सकता है । ऐसे में वसंत उत्सव के उल्लास का उत्साह, नवलता का पर्व और अधिक सुखमय रूप से हम मानने के प्रति जागृति लाकर एक अच्छे भविष्य का सृजन कर सकते हैं केवल प्रकृति में नवलता होने से जीवन नया नहीं होता, नवल तो तब होगा जब वसंत में संत की वाणी का समावेश होगा । जब संत की वाणी का वसंत में अनुभव हो जाए, उनकी वाणी का श्रवण हो जाए, उनके दर्शन का सौभाग्य हो जाए तो फिर वसंत सार्थक हो जाता है,जीवन सफल हो जाता है बिना मिले बिना समरस हुए एक रस हुए अलग – अलग बजना और अलग – अलग बोलना इसे संगीत नहीं कहते ये तो बेसुरा सा हो जाएगा । इसीलिए जब विविध स्वर साथ आते हैं तभी तो संगीत बनता है।
जब विविध स्वर संबंधित होते हैं साथ आते हैं तभी तो संगीत बनता है । तो हमारे मन भी एक हो हमारी बुद्धि भी एक हो हमारा लक्ष्य भी एक को हमारे कार्य भी एक हो उसी लक्ष्य की तरफ़ करने वाले हूँ तो जीवन में एक अच्छे संगीत का उदभव हो जाता है । समाज जीवन का संगीत भी उससे अलग नहीं हो सकता और समाज जीवन का संगीत बिना राष्ट्रीय हितों को सामने रखते हुए सर्व हितकारी और लोक कल्याणकारी नहीं हो सकता केवल तर्क से ही सरस समाज नहीं बनेगा केवल तर्क से समाज में यांत्रिकता आएगी और यांत्रिकता होंगी तो पुरजे टकराएंगे ।
स्वर होंगा लय होगा कोमलता होगी तो सामंजस्य बनेगा सहकार
बनेगा जहाँ एक ओर वसंत ऋीतु में मन का उल्लास, नव संचार बढ़ता है वह हमें यह ही उन वीरों का स्मरण करती है जिन्होंने देश और धर्म के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया ।
तो हमें सरस्वती का प्रागट्य दिन वसंत पंचमी जीवन के महान संकल्पों के दिवस के रूप में मनाना चाहिए मातृ पितृ पूजन का यह जो अवसर है उसमें अभिवादन शीलस्य हम उन माता को वंदन करते हैं हम उस पिता को वंदन करते हैं जिन्होंने हमें जन्म दिया इसलिए वंदन करते हैं
कि उन्होंने हमें ज्ञान दिया संस्कार दिया उन्होंने गुरु के लिए प्रेरित किया और गुरु के ज्ञान के लिए हमें प्रेरित किया इसीलिए उनका आदर है क्योंकि वो अच्छे संस्कारों के प्रति हमें ध्यान देते हैं और ये हमारे भीतर संस्कार दृढ़ होते हैं
आप सभी को वसंत पंचमी की बहुत – बहुत में बधाई देता हूँ और मातृ पितृ पूजन दिवस के अवसर पर मैं यह कामना करता हूँ की आप सभी एक बने, आप सभी नेक बने और ये बेबुनियाद आरोपों पर तनिक भी विश्वास ना करते हुए और आशा रखे कि बहुत जल्दी हमारे गुरुदेव बाहर आऐगें ।
और फिर से ज्ञान , फिर से भक्ति, फिर से योग, फिर से कर्मयोग की त्रिवेणी सबके जीवन में और अधिक प्रवाहित होगी और इस हैं अध्यात्म ज्ञान में कुछ भी हो जाए आप दृढ़ बनकर आगे चलते रहे “ बाधाएँ कब बांध सकी है, आगे बढ़ने वालों को और विपदाएँ कब रोक सकी है पथ पर चलने वालों को “
“ लक्ष्य ना ओझल होने पाए क़दम मिलाकर चले और सफलता तेरे चरण चूमेगी आज नहीं तो कल “
मत देखो कितनी दूरी है कितना लंबा मग है और न सोचो साथ तुम्हारे आज कहाँ तक जग है लक्ष्य प्राप्ति की बलिवेदी पर अपना तन मन वारो हिम्मत कभी ना हारो साधकों हिम्मत कभी ना हारो भक्तों हिम्मत कभी ना हारो देवीयों हिम्मत कभी ना हारो
साधकों हिम्मत कभी ना हारो
आगे बढ़ते रहे गुरू की अनंत शक्ति, उनकी अंनत कृपा आप सबके साथ है- हम सबके साथ है ।
इस पूर्ण विश्वास श्रद्धा के साथ अपने कदम आगे बढ़ाते चले जाऐ
कदम अपने आगे बढ़ता चला जा
“ युवा वीर है, युवा वीरांगनाएं है धनधनाते चले जाओ कदम अपने आगे बढ़ाते चले जाओं इन्हीं शब्दों के साथ मैं मेरी वाणी को विराम देता हूँ । आपके अंतकरण में बसे हुए मेरे परमात्मा को
बहुत – बहुत प्रणाम करता हूँ और आपका ये 2022 का वर्ष जो है अच्छा हो सफल हो और ये वर्ष ऐसा हो की अध्यात्मिक प्राप्ति का सुख प्राप्त करे सदगुरु के दर्शन का सौभाग्य सबको फिर से प्राप्त हो इन्हीं शब्दों के साथ बहुत बहुत धन्यवाद बहुत बहुत शुभकामनाएँ बहुत बहुत — हरि हरि ऊँ ओम नमों भगवते वासुदेवाय वासुदेवाय इष्ट देवाय इष्ट देवाय गुरू देवाय गुरू देवाय आत्म देवाय आत्म देवाय ब्रह्म देवाय ब्रह्म देवाय मँगल देवाय मँगल देवाय शांति देवाय माधुर्य देवाय कल्याण देवाय ओम नमो भगवते वसुदेवाय वासम करोती सर्वमिति वसुदेवाय
कि जिसका सबमें कण-कण में, रग-रग में, ज़र्रे-जर्रे में वास है । जो आनंदघन, सच्चिदानंद परमात्मा हम सबके दिल की धड़कन चला रहा है । आँखों को देखने की, कानों को सुनने की, जीभ को स्वाद की शक्ति वही दे रहा है । उस परमात्मा को भूलना नहीं है । उस परमात्मा में न देरी है, न दूरी है । बस, केवल समझ का फेर है ।
नुक़्ते की हेर-फेर से खुदा से जुदा हुआ । नुक़्ता अगर रख दें ऊपर तो वापस जुदा से खुदा हुआ । नुक़्ते का फर्क है और उस नुक़्ते के फर्क को जो समझ लिया मानों अध्यात्म की ऊँची गहराई तक पहुँच गया ।
खलिल जिब्रान थे फिलॉसफर उन्होंने एक बढ़िया बात कही कि हम जिनके साथ हँसे होंगे उन्हें तो कदापि भूल जाएँगे लेकिन जिसके साथ रोएँ होंगे उसे कभी भूल न पाएँगे । तो गुरु के लिए जो रोते हैं, ईश्वर के लिए जो रोते हैं, आँसू बहाते हैं, वो कितना गहराई से याद करते हैं । ऊपर वाला जानता है और उनका अंतरात्मा जानता है । आपकी श्रद्धा, आपकी भक्ति वो उसकी किताब में दर्ज होती होगी । तो इस खलिल जिब्रान की बात में गहरा मर्म है ।
अक्सर मनुष्य की सगाई दुःख के साथ होती है । यादों में जब हृदय दुःखी होता है, व्यथित होता है, पीड़ित होता है तो विरह-व्यथा में हृदय पास और साथ होने के लिए मचलता है तो उसका अनुभव तो उसे ही होता है । वो यादें रुलाती है, वो यादें तड़पाती है, वो यादें भुलाए भूलती नहीं है । तो गुरुजी को याद करके, परमात्मा को याद करके, सच्चिदानंद, सत्यस्वरूप, आनंदस्वरूप, परमात्मस्वरूप साँईं भगवान को याद करते-करते जब आप आँसू बहाते हो, कभी खिलखिलाते हो, कभी हँसते हो, कभी रोमांचित होते हो, कभी गद्गद होते हो, यही भक्ति के प्रकार हैं । ऐसी भक्ति आपकी सदैव ओर से ओर आगे से आगे बढ़ती रहें और आप भक्ति के उस परम अवस्था तक पहुँचकर दिव्य प्रेम के उस राज्य में प्रवेश कर पाओ ऐसा मेरा मंगलमय आशीर्वाद…!!
वसंत पंचमी की फिर से सबको बधाई…!!
ज्ञान पंचमी की बधाई…!!
मातृ-पितृ पूजन दिवस पर फिर से सबको बहुत-बहुत बधाई…!!!
नारायण ! नारायण ! नारायण !
हरि हरि बोल….
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