मुस्कुराहट से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता !

मुस्कुराहट से बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता !

स्माइल करने से शरीर में इतने अच्छे सकारात्मक बदलाव होते हैं कि शरीर में रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है – इसी सिद्धांत पर लाफ्टर थेरापी विकसित हुई है । अमेरिका में मायो क्लिनिक के रिसर्चरों ने कहा है हास्य के कारण ब्रेन में ऐसे केमिकल पैदा होते है जो इम्युनिटी सिस्टम को मजबूत बनाते है । जो लोग हँसते नहीं, मुस्कुराते नहीं उनकी रोगप्रतिकारक शक्ति कमजोर होती है । ऐसे एक-दो नहीं, कई प्रमाण दिए जा सकते हैं जिसके कारण ‘Laughter is the best medecine’ कहा गया है । 

  • एक होलिस्टिक हास्य गुरु

अब्राहम मेस्लो ने दुनिया को एक नया शब्द दिया – ‘सेल्फ एक्चुलाइजेशन’ यानी आत्म साक्षात्कार या आत्म सार्थक्य । जब कोई व्यक्ति पूरी तरह से खिल उठता है, तब वह आत्मसार्थक्य की स्थिति को प्राप्त होता है । ऐसे मानव की निर्मल मुस्कान किसी खिले हुए फूल की भांति होती है । ऐसे मनुष्य ने गीता, उपनिषद्, कुरान, बाइबिल या लाल किताब न भी पढ़ी हो तो भी चलेगा । ऐसा नया धर्म मानवजाति को निश्चित रूप से स्मित दीक्षा दे सकता है । अमेरिका में मैंने देखा कि एकदम अनजाने व्यक्ति का हम यदि अभिवादन करें तो वह प्रत्युत्तर में मुस्कराकर ही हमारा अभिवादन करता है ।

धर्म उसे ही कहा जाएगा, जिसके कारण मुस्कराने वाला समाज बन सके । जो धर्म मानव से उसकी मुस्कराहट ही छीन ले, उसे भले ही कुछ कह लिया जाए, पर धर्म तो कदापि नहीं कह सकते । मुस्कराहट वाले धर्म से प्यारा कोई और धर्म नहीं हो सकता । इस धर्म को मानने वाले समाज में ही प्रेमधर्म, आनंदधर्म और वास्तविक ब्रह्मचर्य समाया है ।

– गुणवंत शाह 

(पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ लेखक और विचारक)

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