नकारात्मक मत सोचें । असफलता भी सफलता में बदल सकती है !
नकारात्मक सोच अगर हटा दें तो शारीरिक अयोग्यता भी वरदान में बदली जा सकती है । महाकवि सूरदास बाहर की आँखें तो नहीं थी लेकिन अंदर की आँखें थी । उन्होंने अंधे होने के बावजूद भी महाकाव्य की रचना की । हेलन केलर नाम की लड़की अंधी भी थी, बहरी भी थी । सफल वक्ता भी बनीं । महान लेखक भी बनी । महान वैज्ञानिक मिस्टर आइंस्टाइन पूर्व जीवन में एक साधारण क्लर्क का काम करते थे और बाद में उन्होंने ध्यान-योग-साधना किया । भीतर की शक्तियाँ प्रकट हुई और महान वैज्ञानिक बनें । डेढ़ साल के थे लाल बहादुर शास्त्री । उनके पिता का अवसान हो गया, वो डेढ़ साल के थे । गरीबी में बड़े हुए, फिर भी प्रधानमंत्री बन गए । एकलव्य धनुर्विद्या सीखने के लिए निकले । जो गुरु मिले, उन्होंने एकलव्य को नीच जाति और छोटे कुल में जन्म के कारण शिक्षा लेने से मना कर डाला, फिर भी लक्ष्य को उन्होंने सिद्ध कर लिया । तो जन्म से नहीं, मनुष्य तो कर्म से महान बनता है । अपने कर्मों को भगवत् अर्पण कर दें और महापुरुषों के उपदेश को, उनके ज्ञान को, उनके अनुभव को अगर हम अपने जीवन में धारण करें तो कठिन से कठिन समस्या भी आसान हो सकती है । इसके कई प्रमाण शास्त्रों में मिलते हैं ।
हारिये न हिम्मत, बिसारिये न हरि नाम ।
लक्ष्य न ओझल होने पाये, कदम मिलाकर चल ।
सफलता तेरे चरण चूमेगी, आज नहीं तो कल ।।
मत देखो कितनी दूरी है ? कितना लंबा मग है ।
और न सोचो साथ तुम्हारे, आज कहाँ तक जग है ।।
लक्ष्य प्राप्ति की बलिवेदी पर, अपना तन मन वारो ।
हिम्मत कभी न हारो, साधो ! हिम्मत कभी न हारो !
महापुरुष हिम्मत करते है और हमें भी हिम्मत रखने का संकेत देते है । उनके संकेत का पालन करें तो असफलता सफलता में बदल सकती है । निराश, हताश व्यक्ति को भी आशा का संजीवनी, आशा की किरण प्राप्त हो सकती है ।