जो आपसे ईर्ष्या करते हैं, वे स्वयं ही ईर्ष्या की आग में जलते है । आपसे ईर्ष्या करनेवालों से आपको डरने या चिंतित होने या पीड़ित होने की जरुरत नहीं, बल्कि आपको उन्हें माफ करने की जरुरत है । आप अपनी प्रगति में अपना समस्त ध्यान केंद्रित कीजिये ! ईर्ष्या तो उस दीमक के समान है जिस मन को वो लगती है – खोखला बना देती है । दूसरों की तरक्की से जलने – तपने की नहीं बल्कि प्रसन्न होने की जरुरत है । एक – दूसरे को उन्नत बनायें – आगे बढ़ाएं ।