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सूरत से पूज्य श्री नारायण साँईं जी का रक्षाबंधन संदेश !
रक्षाबंधन, श्रावणी पूर्णिमा की खूब-खूब बधाई व शुभकामनाएँ !
ये पवित्र स्नेह का बंधन हमारी आत्मीयता, हमारे स्नेह, हमारी सुरक्षा, हमारी एकता, हमारी अखंडता को दिनोंदिन अधिकाधिक मजबूत करता रहे !
रक्षाबंधन और भाई दूज – निष्काम भाई-बहन के प्रेम के हैं ये दो त्यौहार, भाई-बहन के प्रेम को प्रकट करने का, प्रस्तुत करने का, अहसास करने का विशेष दिन है । साथ ही यह भावना ‘रक्ष्य-रक्षक’ की जिसे पुनः परिपुष्ट करते हैं –
भाई रक्षक हैं, बहन रक्ष्य हैं ।
गुरु रक्षक हैं, शिष्य रक्ष्य हैं ।
रक्षाबंधन – शब्द में ही यह भाव सूचित होता है –
रक्षा के दो अर्थ हो सकते हैं – राखी व रक्षण ।
राखी बाँधनेवाली बहन का आजीवन रक्षण करने की जिम्मेदारी भाई की है । बहन के दुःख में भागीदार होकर भाई उसके दुःख-कष्ट-परेशानी-दिक्कत को दूर करने के लिए सदैव प्रयासरत रहे… रहना चाहिए । इस संकल्प को हर साल दुहराने – पुष्ट करने हर साल आती है श्रावणी पूनम – रक्षाबंधन का त्यौहार ।
ये सुरक्षा प्रदान करनेवाला, धन की वृद्धि करनेवाला और विजयी बनानेवाला त्यौहार है । आपसी वाद-विवाद, मनमुटाव-क्लेश-संताप-वैर-वैमनस्य को खत्म करके प्रेम-प्रीति-स्नेह-संवाद-सामंजस्य-रक्षा-सुरक्षा-परस्पर हित-मंगल की भावना को बढ़ाने की प्रेरणा देता है “रक्षा सूत्र”
जेलों में बंद कैदियों-बंदीवानों को राखी बाँधकर बहनें उनकी रिहाई की कामना करती हैं, उनके मानस-परिवर्तन की प्रेरणा देती हैं ।
‘यज्ञोपवीत संस्कार’ का भी ये विशेष दिन है । ब्राह्मणों द्वारा जलाशय के निकट यज्ञोपवीत बदलने का, धारण करने का दिन है । जनोइ (उपवीत) धारण करके छात्र विद्याभ्यास का प्रारंभ करते हैं । इसी संस्कार से सच्चा द्विज – ब्राह्मण बनता है – ‘संस्कारित द्विज उच्यते ।’
तामसी वृत्ति और दुर्गुणों की कालिमा को दूर करके विद्या तेज को प्रगटाने वाला यज्ञोपवीत या उपनयन संस्कार है । जनेऊ धारण करते समय ब्राह्मण संकल्प करते हैं :
“यज्ञोपवीत परम पवित्र है, वह मुझे बल, तेज और दीर्घायुष्य प्रदान करे… मेरी बुद्धि और विद्या हमेशा तेजस्वी रहे… !” मैं यज्ञोपवीत संस्कार करने-करानेवाले सभी को इस पर्व की बधाई देता हूँ ।
इस दिन समुद्रतट पर जाकर वरुणदेव की प्रसन्नता के लिए नारियल-दूध-फल से नैवेद्य अर्पण किया जाता है । समुद्र – वरुणदेव की स्तुति ऋग्वेद में भी कई जगह हुई है ।
हर वर्ष यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते को मजबूत बनाता रहे ! संस्कृत पाठशालाओं में वैदिक सूक्तों का स्वरसहित पाठ होता रहे । समुद्रतट पर पूजा करके समुद्रीयात्रा करनेवालों का रक्षण होता रहे और ब्राह्मण यज्ञोपवीत संस्कार से संस्कारित होते रहे ! हमारे बीच स्नेह-सरसता-सामंजस्य-सुरक्षा का भाव प्रगाढ़ होता रहे… ऐसी पुनः शुभकामना… !