पूज्य श्री नारायण प्रेम साँईं जी की वाणी में संत टेऊँराम महाराज प्रसंग
सिंधी जगत के एक संत हो गए टेऊँराम महाराज । बोलते थे तो वो परमात्मा के साथ एक हो जाते थे । शुध-बुध भूल जाते थे । और बच्चों को उनके साथ बहुत आनंद आता था। बच्चे अपने-अपने घर से निकलकर उनके पास पहुँच जाते थे ।
तो माता-पिता उनको रोकते थे कि क्या रोज़-रोज़ भाग पड़े ?, क्या रोज़-रोज़ संत के पीछे दौड़ चले ? लेकिन उनसे रहा नहीं जाता था । आखिर उनके घरवाले उन बच्चों को चारपाई के साथ बांध देते थे । तो बच्चे भी भले छोटे होते थे लेकिन उनको जो शांति मिलती थी, आनंद मिलता था उनसे रहा नहीं जाता था तो चारपाई से जो हाथ बंधे हुए रहते थे, अब वो अपने दांतों से खोल देते थे उस रस्सी को और दौड़ चलते थे । तो कुटुंबी लोग और नाराज हुए ।
बोले कि “हम बांध देते हैं, फिर भी तुम लोग नहीं मानते”।
आखिर जमीन में खड्डा करके उनको आधा शरीर उनका गाड़ देते थे । ये इतिहास कहता है उनके जीवन चरित्र में ये बात आई । लेकिन यह समय का फेर कहो कि पहले के जमाने में आज से बीस, पच्चीस, पचास, सौ, दो सौ, पाँच सौ वर्ष पहले जितना लोगों में धर्म के लिए रुचि थी उसकी अपेक्षा आज का समय अधिक धार्मिक, अधिक आध्यात्मिक है । यह भारत के ही नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के सुंदर आध्यात्मिक भविष्य का संकेत दे रहा है ।