शब्दों से परे है प्रेम का एहसास
शब्दों से परे है प्रेम का एहसास
देखो, आपको प्रेम करनेवाले जो भी हैं, यह संभव है कि वे आपका अहित भी कर सकते हैं, और आपकी अवहेलना, तिरस्कार व धिक्कार करनेवाले आपका हित–मंगल–कल्याण भी कर सकते हैं । प्रेम और नफरत करनेवालों के दो अलग गुट नहीं होते । सवाल हार–जीत का नहीं है । साँप सीढ़ी के इस लंबे खेल में जिंदगी मानो घूमती है । खेल का अपना मजा है । भरपूर जिंदगी जीनेवालों को ये मजा मिलता है । किसीको पत्थर के बदले पत्थर मिलते हैं, तो किसीको फूल के बदले पत्थर मिलते हैं, तो किसीको फूल के बदले फूल मिलते हैं । प्रेम मिले, नफरत मिले, तिरस्कार या अवहेलना मिले, जो भी मिले – बस, हमें तो जीवन की पूर्णता का आनंद लेना है । मैं तो खुश हूँ – मैंने सबका मजा लिया ।
क्या याद आते हैं वे पल ?
जो साथ बिताये थे हमने ? जीया था खुलकर ! बेझिझक, निडर होकर । बेपरवाह बनकर ! एक पर्यटक बनकर सैर की थी । वो राहें, वो साथ चहलकदमी, साथ बिताये पल, वो समुद्रतट, वो खुला आसमाँ, वो पहाड़ियाँ, वो जंगल, वो सन्नाटा, वो शांति… वो अपनत्व का एहसास… जिंदगी के वे अनमोल पल, क्या कभी याद आते हैं ? उभरते हैं स्मृति पटल पर ? जो बिताये थे हमने संग–संग ! उन यादों से संभव है, पीड़ा भी मिलती हो, लेकिन उस पीड़ा में भी मिठास है, सुकून है ।
इंसान में वो ताकत है कि वो भूतकालीन पलों की जुगाली करता है… और विशिष्ट स्वाद का, रस का एहसास करता है ! विशिष्ट व्यक्ति, विशिष्ट स्थान और विशिष्ट समय कितनी ही कोशिश क्यों न कर लो… भुलाए नहीं भूलता |
इन यादों की भी अपनी ही अलग भाषा है यार ! वह जुड़ाव, वह अपनत्व, वह हमारे बीच का मधुर संबंध काल के प्रवाह में कमजोर न होने पाये ।
अतः किसी तरह संवाद जारी रखें ।
संबंध बनाए रखें । जुड़ाव बरकरार रहे ।
अधिक से अधिक स्नेह और सहानुभूति हम परस्पर प्रदान करें, करते रहें…
अवश्य, स्नेह और सहानुभूति से हमारे हृदय की जो स्वाभाविक माँग है, वह पूरी होगी ।
पेट की भूख से अधिक स्नेह की भूख होती है | कभी-कभी ये भूख ज्यादा सताती है । इसीलिये किसी-न-किसी प्रसंग, अवसर, घटना पर इंसान अपने दुःख या परेशानी के बारे में शिकायत करता रहता है । चूँकि ये सहानुभूति प्राप्त करने का कई बार जरिया होता है ।
पर, हम तो, स्नेह प्राप्त करने के लिये, स्नेह प्रदान करने पर विश्वास करते हैं ।
‘परस्परस्नेहप्रदानम्’
कह नानक जिन प्रेम कियो तिन पायो ।
कभी शब्दों में, तलाश न करना वजूद मेरा ।
मैं उतना लिख नहीं पाता… जितना महसूस करता हूँ ।
आपका अपना