शरद पूनम, जब भी आती है, मन के देवता चन्द्र देव सहज ही याद आते हैं…
उनकी शीतल किरणों में स्नान करके आल्हादित होने व अपलक पूर्ण चंद्रमा को देखते हुए न सिर्फ मन हर्षित व प्रसन्न करते हैं हम, बल्कि चंद्रमा का ध्यान करते हुए मन को कृष्ण युग में ले जाकर महारास की कल्पना से मधुर स्मृतियों में खो जाते हैं और दूध पोहे की खीर शाम से ही बनाकर चंद्रमा की किरणों में पतला पारदर्शी कपड़ा बांधकर रखते हैं और कम से कम 4-5 घंटे खीर को चंद्रमा की किरणों में रखने के पश्चात् रात्रि को 11:30 – 12:00 बजे खाते हैं । दक्षिण गुजरात में घारी नाम से एक मिष्ठान्न जिसमें भरपूर घी और सूखा मेवा होता है उसे शरद पूर्णिमा की रात्रि में रखते है, पूर्ण विकसित चंद्रमा की किरणों से परिपुष्ट वह मिष्ठान्न अगले दिन से “चंदी पडवा नी घारी” नाम से कई दुकानों पर मिलती है । जिसे खाकर तन पुष्ट, मन प्रसन्न होता है ।
पूरे साल भर चाहे हम पोहे दूध की खीर न खाते हों पर शरद पूनम को तो अवश्य ये विशेष खीर खाते ही है ।
भगवान बुद्ध को भी बोध हुआ, वे जब बुद्धत्व को उपलब्ध हुए तब सुजाता ने खीर खिलाई थी । कारावास में रहने के दौरान भी हर शरद पूर्णिमा को खीर खाना मैंने छोड़ा नहीं । शरद पूर्णिमा की चाँदनी में परिपुष्ट होने के पश्चात् ही आंवले तोड़े जाना और उनका किसी तरह सेवन करना हितावह है । आँवले का सेवन च्यवनप्राश, चटनी, मुरब्बा आदि के रूप में वर्ष भर करने के लिए, नए ऋतु की ये सामग्री बनाने, शरद पूनम के बाद ही आँवलों को पेड़ से तोड़ना व बनाना हितावह है !
– नारायण साँईं
31/10/2020
शरद पूर्णिमा