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विश्व ने फिर से कुछ दिन पहले एक महान तत्वचिंतक, स्थितिप्रज्ञ महापुरुष को खो दिया है… 22 जनवरी 2022 को वियतनामी बुद्धिस्ट ब्रह्मज्ञानी संत थिक न्यात हान वैश्विक चेतना में लीन हो गए। उनको ओजस्वी परिवार की तरफ से भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पण करते हुए हम उनके कुछ श्रेष्ठ प्रवचनों के अंश चिंतन प्रसाद के रूप में आपके समक्ष रखना चाहेंगे ।
जीवन का एकमात्र उद्देश्य खुश रहने का नहीं ….सुखद यात्रा के लिए पास वाली सीट पर पीड़ा का होना अनिवार्य है l
(by Dr N. Ojha)
जीवन में तुम्हारी एकमात्र इच्छा क्या है? इस प्रश्न का जवाब ज़्यादातर लोगों के पास ऐसा ही मिलेगा – “खुश रहने की” |इसिन्ट इट? रोज़ सुबह उठ कर रात को फिर सो जाएँ तब तक अपने हर एक प्रयत्न आखिर तो खुश रहने के लिए होते हैं, परन्तु सच कहूंयह सदैव ही खुश रहने की इच्छा या अपेक्षा ही हमारी उदासी का सबसे बड़ा कारण है |
विश्व भर के प्रिये आध्यात्मिक गुरु और विएतनामी बुद्धिस्ट साधु “थिक न्हाट हान” तारीख 22 जनवरी के दिन वैश्विक चेतना में लीन हो गये | लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन लाने वाले उन तत्व वेत्ता की बातों और विचारों की ऐसी कमी हो गयी है जो कभी पूरी नहीं होगी परन्तु उनको पुस्तकें हमे आजीवन प्रकाश देती रहेंगी | उनके द्वारा लिखे गये “यू आर हियर” सबसे पहले प्रकरण का सार ही यह है कि अपने जीवन में यातनाएं ज़रूरी हैं | दुःख, पीढ़ा या यातनाओं की उपस्तिथि के बिना हमारे अन्दर करुणा का उदय होना संभव नहीं है , यातनाएं ही करुणा की जन्मदात्री हैं |
मज़ा करने के लिए अपनी इच्छा हम स्वयं ही निर्धारित करते हैं सतत आनंद में रहने के लिए अपने सेट किये हुए मन से थोड़ी भी कमी रह जाए यह हमे मंज़ूर नही होता, वास्तविकता यह है की अपने आध्यात्मिक विकास के लिए हर एक नकारात्मक अनुभव ज़रूरी होता है, इर्ष्या, गुस्सा,अकड़ामन, उदासी, बेचैनी, हताशा जैसे हर एक नेगेटिव इमोशन अपने स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी है कारण की नकारात्मक अनुभव के बीच में से एक सकारात्मक अनुभव का पौधा अंकुरित होता है । एक फूल की सुंदरता के द्वारा वो समझाते हैं कि ‘ तुम फूलों का ध्यान से अवलोकन करो तो ख्याल आएगा कि उसकी ताज़गी, सुंदरता और सुगंध का आधार उसे मिलने वाली खाद पर आधारित है और खाद और कोई नहीं परंतु प्राणियों के माल और कचरे से बनी गंदगी का ढेर है । यह माली की मेहनत और सूझ-बूझ का परिणाम है की गंदगी से खाद बनाकर उससे फूल उगा सकता है ‘ जीवन में होने वाली है असंख्य गंदगी से जीवन में से सुगंधीदार पुष्प उगाने की प्रक्रिया यानी आध्यात्मिक मथामण ।
अपने आस पास रहने वाली गंदगी निराशा डिप्रेशन या अंधकार का प्रमाण जैसे बड़े अपने अंदर फूल उगाने की संभावना उतनी ही ज़्यादा है । बीज में से पौधा उगने के बाद बीज का अपना कोई अस्तित्व नहीं रहता । कोपल से फूल उगने के बाद कोपल अदृश्य हो जाता है । इसी प्रकार हमे भी
नकारात्मक या अप्रिय लगता प्रत्येक अनुभव धीरे – धीरे ऐसे स्वरूप में बदल जाता है जो हमें सतत नीरात और राहत देता रहता है ।
अनुभवों का इस प्रकार वेष बदलना तब संभव होगा जब हम अपने अंदर उत्पन्न होने वाली अच्छे या ख़राब हर प्रकार के अनुभवों को आदरपूर्वक सत्कार करें । नकारात्मक अनुभवों से भागने के बदले पूरी सौम्यता से उसे स्वीकार करना ।
यही एकमात्र रास्ता हैं । अपने अंदर रहने वाली डार्क साइड को हेन्डल करना का
जीवन की कोई शाम झुले पर बैठे हो और अचानक उदासी मेहमान बनकर आए तो कहना कि ‘ आओ बैठो चाय पीओगे‘ मनोविज्ञान ऐसा कहता है स्पेस करने के बदले पूरी समग्रता से स्वीकार करते हैं । वो अनुभव अपने बहुत कम समय में गायब हो जाते हैं वो उदासी हो या अफ़सोस, दुख हो या चिंता हमें आने वाली हर एक भावना से छुटकारा पाने का एक ही रास्ता है, उन भावनाओं को पूरा अटेंशन देना ।
दुख, पीड़ा या हताशा का स्वाँग करके ज़िंदगी हमें कुछ सिखाना या सुधारना चाहती है । नकारात्मक भावना यह दूसरी कुछ नहीं परंतु भविष्य में आने वाला हमारा बेटर वर्जन का एडवांस में किया हुआ गंदा और डरावना मेकअप हैं ।
नेगेटिव इमोशंस का बरसात में धुल जाने के बाद बाक़ी बचा हुआ अपना व्यक्तित्व उन्नत परिपक्व और प्रसन्न होता है । हर पल पीड़ा, दुख और संघर्ष अपनी आत्मसाक्षात्कार की यात्रा में अपने को मदद करने आते हैं । यह जगत का सबसे जटिल और लंबा रास्ता अपने ही अंतःकरण तक पहुँचने का होता है । अपने आपको पहचानने की इस लंबी मुसाफ़िरी में यातनाएं हमें ‘लिफ़्ट ‘ जैसा सहयोग करती है ।
पुस्तक के एक पन्ने पर “ थिक न्हाट हान ”
अद्भुत बात लिखते हैं । तुमने कभी अपनी उदासी या दुख ऐसा कहा है कि तुम घबराना नहीं ? मैं हूँ तुम्हारे साथ अपनी हर एक भावना को ऐसी ही धारणा की ज़रूरत होती है । इतना आश्वासन मिलते ही वो ग़ायब हो जाती है ।
रूमी के लिखी हुई एक अफ़लातून कविता ‘ द गेस्ट हाउस ‘ में बताए अनुसार इस पृथ्वी पर हमारा मनुष्य होना एक गेस्ट हाउस के समान है । भावनाओं के रूप में रोज़ सुबह मन के —- अतिथि आते हैं । कभी उदासी, दुख चिंता तो कभी प्रसन्नता आती है भेदभाव रखें बिना हर एक का भाव से स्वागत करना
कारण की हर एक भावना परम तत्व की भेजी हुई सीक्रेट संदेश है ।
नकारात्मक भावनाओं के संदर्भ में जो बात साहित्य करता है जो बात मनोविज्ञान करता है
हमें हैरान करने वाली हर एक भावनाओं को लेने से वो अदृश्य हो जाती है तो हाथ में काग़ज़ पेन ले लो और जो कुछ भी अनुभव होता हो वो लिखो जगत का कोई भी भाव स्थाई नहीं है । एक भी भावना परमानेंट नहीं है l सदा खुश रहना किसी के लिए भी असंभव नहीं है l पर मूसलाधार बरसने वाली प्रसन्नता आनंद व सुखद अनुभूतियों की बौछारों के बीच अप्रिय भावनाओं की धूप को कुशलतापूर्वक संभालने की अटकल का नाम जिंदगी है l