राम श्वास है । राम प्राण है । राम जीवन है । राम ही तो विश्राम है । राम बिन आराम कहाँ ? विराम कहाँ ? राम के नाम को, राम के सुमिरन को हम जीवन के ताने बाने में इतना बुन ले कि राम से श्रेष्ठ, राम से महत्वपूर्ण, राम से सुखदायी हमें अन्य कुछ भी समझ में ही न आए, तो इससे अच्छा सौभाग्य हमारे लिए और क्या होगा ?
न मैं रहूँ, न आप रहो, बस राम ही राम रह जाए….! वास्तविकता तो यही है, चाहे हमारी समझ में आए चाहे न आए – पर यही हकीकत है कि सब राम ही राम है । राम के सिवा कुछ था नहीं, है नहीं और हो सकता नहीं । राम में ही पूर्णता है ।
आइये, हम अपनी दृष्टि को राम में टिकाएं ! सर्वत्र व्याप्त राम के दर्शन करें । राम की अनुभूति करें । राम का सुखद अहसास करें । हर काम के आरंभ, मध्य और अंत मे राम की ही शक्ति है । राम की अभिलाषा करे । राम से अभिन्नता का बोध प्राप्त करें । जीवन के रहते यह बोध हो जाना चाहिये । जितना जल्दी हो उतना ही अच्छा है । यही बोध जीवन को सफल और सार्थक बनाता है इस बात में मेरा अडिग विश्वास था, हैं, रहेगा ।
अनन्त जीवन के आधार राम को, राम के प्यारों को, राम के आश्रितों को मेरा हृदयपूर्वक प्रणाम !
– पूज्य श्री नारायण साँई जी