योग केवल आसन ही नहीं सम्पूर्ण जीवनशैली है !

सूरत जेल में विपश्यना का यह दूसरा शिविर 10 दिन का दिनांक 9 नवम्बर, 2019 से प्रारंभ हुआ है । इस शिविर के मुख्य आचार्य के बारंबार अनुरोध पर पहली बार मैंने इस शिविर में भाग लेना स्वीकार किया । चूँकि पिछले कई वर्षों से मैं विपश्यना के बारे में जानता रहा हूँ और इगतपुरी, मुंबई आदि धम्म स्थानों पर भी गया हूँ । साँस को देखने की यह प्रक्रिया का उद्धेश्य निर्विकार मन का निर्माण करना है और मन की निर्विचार, निर्विकल्प स्थिति बनाना है ऐसा होने के बाद समाधि सहज ही संभव है । बचपन से श्वासोश्वास को देखने का अभ्यास करने का मेरे पिताजी ने कहा था और सिखाया था लेकिन तब पता नहीं था कि ये विपश्यना की साधना पद्धति है । वैसे हजारों साल पहले से कई ऋषि-मुनि-योगी जन साँसों को देखते-देखते तल्लीन होकर परब्रह्म परमात्मा से एकाकार हो ब्रह्मसुख का अनुभव करते आये हैं ।
विपश्यना के दस दिन संपूर्ण मौन का पालन, इशारों से भी बात न करना, किसी भी तरह का किसी से संवाद न करना और अधिक से अधिक साँसों को देखते रहने का अभ्यास करवाया जाता है ।
योग शास्त्रों में बारंबार यह बात दोहराई गई है कि मन और प्राण का घनिष्ठ संबंध है । दोनों में से एक वश में हो जाने से दूसरा अपने आप वश हो जाता है !
तो, यह प्रक्रिया मन को वश और निर्विकार बनाने के लिए है । मैं मानता हूँ कि आम जनता से ज्यादा आवश्यकता और महत्व विश्व के राजनेताओं को विपश्यना करने की है तभी देश और दुनिया का शीघ्र मंगल संभव हो सकता है ।

विपश्यना !

बुद्धपूर्णिमा – इसी पूर्णिमा को बुद्ध ने शिष्यों को विपश्यना का ज्ञान दिया | मौन, शांत, साक्षीभाव, श्वासोंश्वास का निरीक्षण |
देह की स्थूल और आंतरिक – सूक्ष्म क्रियाओं को जाग्रतावस्था की गहराई में जाकर अनुभव करना |
कुछ ऐसी ही प्रक्रिया….साधना है विपश्यना या विपश्वना ! कुछ लोग इसे विप्रासना भी कहते हैं !
यह साधना पद्धति लगभग २५०० वर्ष पूर्व बौद्ध धर्म के तपस्वियों ने विकसित की | कहा जाता है कि गौतम बुद्ध इसी तरह से ध्यान करते थे !
नासिक – मुंबई सड़क मार्ग पर इगतपुरी है, जहाँ मैं एकाध – दो बार कुछ घंटों के लिए गया था, और इस विपश्यना की साधना पद्धति को समझने का प्रयास किया था | मुंबई के पास थाणा के नजदीक भी विपश्यना केन्द्र में एक बार गया था | अजपा जप की, श्वासोश्वास को देखने की, साक्षी भाव में रहने की – जिस साधना पद्धति को उठते – बैठते – लेटते – मैं वर्षों से करता रहा हूँ – उसीमें और गहरा उतरने का नाम विपश्यना है – ऐसा मैं अब तक समझता रहा हूँ !
जो भी हो, मैं मानता हूँ कि इस साधना के जरिये धार्मिकता से ऊपर उठकर अगर मनुष्य आध्यात्मिकता को विकसित करता है और मनुष्य – मनुष्य के बीच वैर विरोध – नफरत के भाव कम होते हैं तो यह अच्छा है !


भारत में विपश्यना के प्रचार – प्रसार का श्रेय स्व. सत्यनारायण एन. गोयनका (१९२४ – २०१३) को जाता है | कई वर्षों पहले – उत्तराखंड हिमाचल के प्रवास में – जहाँ यात्रा का पड़ाव था – वहाँ टी.वी में पहली बार मैंने एस. एन. गोयनका को देखा – सुना था | उनसे मिलने की इच्छा तब हुई थी | बाद में भी दो – चार बार उनसे मिलने का प्रयत्न किया पर मिलना नहीं हो पाया |
ये लिख रहा हूँ तभी पता चला कि २०१३ में उनका शरीर शांत हो गया है !
योगगुरु आयंगर से भी मिलने की इच्छा अधूरी रही परन्तु मानसिक रूप से जिस तरह मैं ऋषि – मुनियों से मिलता रहता हूँ – वैसे इनसे भी मिलता हूँ !
जिनके विचारों से तुम मिलते हो – जिनके विचार – तुम्हारे विचारों से मेल खाते हों – उनसे बौद्धिक व मानसिक रूप से तुम्हारा जुड़ाव हो ही जाता है |
म्यानमार (बर्मा) के यान्गोन (रंगून) में विश्व प्रसिद्ध विपश्यना ध्यान केन्द्र है | राहुल गाँधी कोमनमेन बनकर इसी केन्द्र में विपश्यना शिविर में शामिल हुए व मौनव्रत रखा – ये खबर जानकर मन में खुशी हुई कि उन्होंने बौद्धिक – मानसिक क्षमताओं के विकास हेतु ध्यान साधना का मार्ग पसंद किया |
विश्वभर के कई नेता, कोर्पोरेट हस्तियाँ, सेलिब्रिटिस, – थाईलैंड, म्यानमार, श्रीलंका जैसे बौद्ध धर्म के गुढ़वादियों की प्राचीन ध्यान पद्धति के हब समान देशों में कुछ दिनों का कोर्स करते हैं |
आंतरिक शांति, मनुष्य की अनादिकाल से मांग रही है | इस मांग की पूर्ति हेतु मनुष्य प्रयत्न करता रहा है |
महर्षि महेश योगी ने भावातीत ध्यान की पद्धति बताई और उसके कोर्स शुरू किये | भारत व विश्व के कई देशों में भावातीत ध्यान की पद्धति ने हजारों लोगों को लाभान्वित किया !
श्री श्री रविशंकर जी ने सुदर्शन क्रिया, प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ने राजयोग, ऋषि प्रभाकर ने स्वयं सिद्धयोग (एस एस वाय) और इस्कोन ने ‘हरे रामा हरे कृष्णा’, तथा बापूजी ने – नादानुसंधान, कुंडलिनी योग व जनहितकारी सेवायोग का प्रचलन किया |
गुजरात में विपश्यना केन्द्र नवसारी – सूरत के पास एवं धोलका में है | विपश्यना के यह सेन्टर उस केन्द्र में भाग ले चुके लोगों के डोनेशन से चलते हैं |
सत्यनारायण गोयनका का जन्म बर्मा (म्यानमार) में १९२४ में हुआ | बर्मा में चौदह वर्ष तक विपश्यना के लेजनडरी मास्टर सयागी यु बा बीन के वे शिष्य बनकर रहे | तत्पश्चात उनके आशीर्वाद लेकर १९७६ में भारत में नासिक मुंबई सड़क मार्ग पर इगतपुरी में मुख्यालय की स्थापना की |
खास बात ये है कि – विपश्यना के तमाम मास्टर्स इस बात पर जोर देते हैं कि इस ध्यान पद्धति से बौद्ध मार्ग के तुम अनुयायी बनते हो – ऐसा बिल्कुल नहीं है | ये धर्म से पर एक सनातन एवं वैज्ञानिक पद्धति है |
गोयनका जी ने १२० जितने ट्रेनर (प्रशिक्षक) तैयार किये जो भारत सहित विश्वभर में फैले हुए हैं | सवा लाख से अधिक लोगों ने विपश्यना की ध्यान साधना पद्धति को अपनाया है और जीवन में शांति का अनुभव करते हैं |
भारत में आयुर्वेद, पंचकर्म, कुदरती उपचार पद्धति, (नेचुरोपैथी), योग, ध्यान की विभिन्न पद्धतियों और उनके आचार्यों – गुरुओं की एक विलक्षण प्रभावशाली दुनिया है जो विश्व को वर्षों से प्रभावित आकर्षित करती रही है ! महर्षि रमण के श्री चरणों में कई विदेशियों ने चमत्कारिक आत्मशांति का अनुभव किया !
नर्मदा नदी के तट पर एक आश्रम में रहनेवाले पंडित जसराज के प्रथम शिष्यों में से एक ऐसे संगीतज्ञ परेश और माला नायक दंपति से लेकर युवा राग निष्णात नयन वैष्णव ने शास्त्रीय संगीत एवं राग को संगीत चिकित्सा की दृष्टि से सिद्ध कर सके उस हद तक संगीत चिकित्सा में अपनी एक अलग पहचान खड़ी की है | वे विभिन्न प्रकार के वर्क शॉप भी आयोजित करते हैं |
भारत में अब – योग, फिजियोथैरापी, ओर्गेनिक डायेटिश्यन, वैकल्पिक उपचार पद्धति, आयुर्वेद, संगीत, विधि – विधान – पूजा पद्धति करानेवाले पंडित, ध्यान की विभिन्न पद्धतियाँ, मंत्रोच्चार, वास्तुशास्त्र, फेंगशुई और शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में नई पीढ़ी को कोर्स करना चाहिये | हमारे भारत की प्राचीन परम्पराओं को संभाले रखने का, शांति प्राप्त करने का, प्रकृति जन्य और तनाव मुक्त जीवन शैली, मानसिक अभिगम विकसित करने की पूरी दुनिया को आवश्यकता है |
मनुष्य भौतिक क्षेत्र में तो विकास करेगा – और करना ही चाहिये पर आध्यात्मिक विकास की अनदेखी नहीं हो सकती |
भौतिक प्रगति के साथ उसकी कीमत भी मनुष्य को चुकानी पड़ेगी – कंप्यूटर, मोबाइल, एप्लीकेशंस, वर्चुअल टेक्नोलॉजी और ‘काउच पोटेटो’ जैसा टाइम पास उसे डिप्रेशन में ले जायेगा |
एलोपैथी दवाईयों की साइड इफ़ेक्ट, जंतुनाशक दवाईयों के छटकाव से दुष्प्रभावित हुई खाद्य सामग्री, प्रदूषित हवा – प्रदूषित जल – मिलावट, पर्यावरण का असंतुलन और फास्टफूड के कल्चर से यूटर्न लेने का समय बहुत तेजी से आएगा ही |
हमें उसके लिए स्वयं को तथा समाज को तैयार करना ही पड़ेगा |

भारत में योग, ध्यान, आयुर्वेद, नेचुरोपैथी, संगीत चिकित्सा तथा सूक्ष्म और स्थूल देह के शुद्धिकरण के लिए Wellness Tourism का बिजनेस १८० अरब डॉलर का है जब तक भारत का केवल एक अरब डॉलर का व्यापार है | इसे बढ़ाया जा सकता है | भारत ने ही पहले भी विश्व को स्वस्थ, सुखी व प्रसन्न रहने की विद्या दी थी – आज भी विश्व मानव को जीवन सफलता की कुंजियाँ देने की अपार क्षमताएं भारत में छुपी हैं |

बिटल्स जैसे संगीत बैंड के सदस्यों, एप्पल फेइम स्व. स्टीव से लेकर प्रिंस चालर्स और केमिला जैसे पश्चिम जगत की सेलिब्रिटियों को हिमालय और भारत की आध्यात्मिक तपोभूमि ने प्रभावित किया है |
भारत के कई संतों महात्माओं योगियों ने – विश्व को भारत के ध्यान योग व आध्यात्मिकता से जबरदस्त आकर्षित किया है | आज हिन्दू संस्कृति की विरासत ‘वेलनेस टूरिझम’ में लगभग बदलती जा रही है |
हमें इस बात पर जोर देना होगा कि हिन्दू – केवल धर्म नहीं है परन्तु ये जीवन जीने की पद्धति है |
भारत में मेडिकल टूरिझम की अपेक्षा Wellness Tourism का जोर ज्यादा है | इसे बढ़ाकर हम दुनिया को अपने भारत के प्रति आकर्षित कर सकते हैं !

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