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विवाह करते समय संतानों के लिए भी संकल्प लीजिए !
सोलह संस्कारों में से एक है विवाह, लेकिन अब विवाहोत्सव चौथी इंडस्ट्री बन गया है, संस्कार उद्योग में बदल गया है । चूँकि जब दृष्टिकोण व्यावसायिक होता है, तो मूल उद्देश्य खो जाता है । व्यवसाय का झुकाव भोग-विलास, सुख-सुविधा, साधन-संपन्नता इसी में होता है । इसलिए विवाह के पीछे जो संस्कार था, वो धीरे-धीरे लोग भूलते जा रहे हैं । आज श्रीराम महोत्सव खूब धूमधाम से मनाया जा रहा है, तो क्यों न संस्कार को याद किया जाए । सात वचन अपनी जगह हैं, लेकिन इस समय विवाह का सबसे अच्छा परिणाम होना चाहिए, श्रेष्ठ संतानों का जन्म होना । संतानों के जीवन में भी शांति उतरना । माता-पिता बच्चों को जन्म तो दे देते हैं । उनके जीवन में भौतिक सफलता भी देते हैं, लेकिन जो अशांति आती है, उसके लिए प्रयास नहीं करते हैं । इस महोत्सव के दिन विचार करें, स्थिर माता-पिता बनें । ये एक बड़ा उद्देश्य होना चाहिए । अस्थिर माता-पिता के बच्चे सदैव अशांत पाए जाएँगे । कृपा करके विवाह करते समय आनेवाली संतानों के लिए भी संकल्प लीजिए ।
– पं. विजयशंकर मेहता