गणेशोत्सव निमित्त पूज्य साँई जी का विशेष संदेश…!
विश्व के सबसे पुराने सनातन हिन्दू धर्म के, सभी देश-विदेश के श्रद्धालु भक्तों को गणपति उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ ।
‘गणानां पति गणपति’ – जो गणों के पति हैं, स्वामी हैं, नाथ हैं वे गणपति हैं । हम भी इंद्रियों के स्वामी बनें, गुलाम नहीं । ऐन्द्रिक सुखों का पीछे भागने वाले नहीं, अपितु इन्द्रियजीत बनकर स्वयं में विशेष शक्ति, ऊर्जा, सामर्थ्य विकसित करें !
इन दिनों जैन धर्म में विशेष महत्वपूर्ण पर्व – पर्युषण चल रहा है जिसे पर्वाधिराज भी कहते हैं । विश्व के सभी जैन समाज के मुनियों-महात्माओं-संतों, श्रावकों-श्राविकाओं, साधु-साध्वियों को पर्युषण पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ प्रदान करता हूँ । भगवान महावीर के जन्म महोत्सव की बधाई देता हूँ । श्वेतांबर व दिगम्बर तमाम जैन धर्म अवलम्बियों का मैं आह्वान करता हूँ कि सत्य, प्रेम और करुणा का जितना अधिक से अधिक विस्तार हो, ऐसा वे प्रयास करें ! इसी सिद्धांत पर चलकर हम विश्व को बेहतर बना सकते हैं और उज्ज्वल भविष्य के सपनों को साकार कर सकते हैं ।
श्रद्धा बहुत गजब की चीज है । हमें श्रद्धा याने यकीन को दिल में धारण करना चाहिए ! श्रद्धा क्या है ? इंग्लैंड के लेखक विलियम वॉर्ड से किसी ने पूछा – तो उन्होंने कहा – झरने को देखकर ऐसा मान लेना कि महासागर भी कहीं होगा, तो उसी का नाम श्रद्धा है ।
शास्त्रों ने कहा है –
श्रद्धापूर्णा सर्वधर्मा मनोरथ फलप्रदाः ।
श्रद्धया साध्यते सर्वं श्रद्धया तुस्यते हरिः ।।
श्रद्धा मनोरथों को पूर्ण करने वाले, सर्व धर्मों का आधार है । श्रद्धा से सभी कुछ साधा जा सकता है और श्रद्धा से ईश्वर प्रसन्न होते हैं । अतः श्रद्धा को हृदय में धारण करना चाहिए । राजा जनक को उपदेश देते हुए महामुनि अष्टावक्र कहते हैं – ‘श्रद्धस्त्व तात श्रद्धस्त्व…’ – हे राजन् ! श्रद्धा करो, श्रद्धा करो ।
आजकल लोग धनवान बनने के लिए शॉर्टकट रास्ता ढूँढ़ते हैं कि कम समय में जैसे-तैसे अमीर कैसे बना जाए ? वे लोग इस बात को खास समझें !
गुजरात के सुप्रसिद्ध लेखक पद्मश्री से सम्मानित कोलमिस्ट, लेखक डॉ. कुमारपाल देसाई (जन्म – 30 अगस्त, 1942) कहते हैं –
‘शून्य में से सृजन करने वाले सफल पुरुषार्थी मानवीयों का रहस्य ये होता है कि उन्होंने जीवन में जो भी कार्य सामने आया, वो जी-जान से किया । पूरी तत्परता से, पूरा जोर लगाकर किया । वो कार्य चाहे एकदम छोटा हो या बड़ा हो – लेकिन प्रत्येक कार्य ओतप्रोत होकर किया । ये पद्धति, ये तरकीब ही सफलता के सीढ़ी के स्टेप है – सोपान हैं । ये ही तरकीब – यही युक्ति निर्धन में से धनवान, गरीबी में से अमीरी, सिद्धि की पराकाष्ठा तके पहुँचने का सबसे सरल रास्ता है ।
चीन और ताइवान के बीच तनाव की स्थितियों के कारण वैश्विक स्तर पर चर्चा है । ऐसे समय में ताइवान में स्थित भगवान गौतम बुद्ध की विशाल प्रतिमा को देखकर सूरत की पाल क्षेत्र के गणेश मंडल ने 36 हाथ वाली गणपति की मूर्ति बनाई है । जो संभवतः भारत में पहली बार बनाई गई है ।
सूरत में तैयार की गई गणेश प्रतिमा में खास बात ये है कि उनका असली स्वरूप ताइवान में है । गौतम बुद्ध की ध्यान अवस्था वाली प्रतिमा जो ताइवान में है उसके 36 हाथ है । उसको देख के शांति और अहिंसा का बोध मिलता है । हालांकि हर एक हाथ में शस्त्र दिखाई देते है । गणपति बाप्पा के 36 हाथ हो ऐसी भारत की संभवतः ये प्रथम प्रतिमा है । गोल्डन रंग की प्रतिमा बंगाली कारीगर संजय ने तैयार की है ।
इस मूर्ति को तैयार करवाने वाले धवल मोदी ने बताया कि भगवान बुद्ध की मूर्ति की फोटो उन्हें ताइवान से उनके मित्र ने भेजी तो उनको इसमें गणेश स्वरूप देने का विचार आया और मूर्तिकार इसे बनाने के लिए संमत भी हुए । लोगों में भाईचारे का संदेश जाए इसलिए हमने ये मूर्ति बनवाई । 36 हाथ सेट करने के लिए खूब सूक्ष्मता से और ध्यान से काम करना पड़ा इसलिए तीन मूर्ति बन जाए उतने समय में ये एक ही मूर्ति बन पाई ।
आज गणेश चतुर्थी है – बुधवार 31 अगस्त, 2022 । सुबह 6:23 से रात्रि 9:48 तक गणपति की मूर्ति का स्थापन हो सकेगा ! गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन नहीं करना चाहिए ! गणपति को तुलसीदल भी नहीं चढ़ाना चाहिए ।
2 साल के बाद कोरोना नियंत्रित होने पर अब गणेशोत्सव की मंजूरी दी गई है । जिसके कारण भक्तों में गणेशोत्सव पर्व मनाने का उत्साह अनेक गुना ज्यादा दिखाई दे रहा है । शास्त्रों के अनुसार विशेष रूप से मिट्टी के गणपति बनाने का और स्थापना करने का विशेष महिमा है । अपने घर, शहर, नगर, हर एक स्थान पर अपनी श्रद्धा के अनुसार 3, 5, 7 या 10 दिन तक गणेशजी की स्थापना कर सकते है। इस बार अनंत चतुर्दशी 9 सितंबर को शुक्रवार को है जिस दिन आखरी विसर्जन किया जाएगा ।
ज्योतिषियों के अनुसार गणेश जी को दूर्वा अतिप्रिय है । जो उन्हें अवश्य प्रदान करनी चाहिए । गणेश जी को दूर्वा की 21 गांठे अर्पण करने से मनोकामना पूर्ण होती है । गणेश जी को तुलसी प्रिय नहीं है इसलिए उनको अर्पण नहीं की जाती । गणेश चतुर्थी को चंद्र दर्शन निषेध है । गणेश जी के द्वारा चंद्र को श्राप मिला था इसलिए दर्शन करने से कलंक लगता है ।
अब, एक ख़ास बात और है कि भारत पर सबसे बड़ा ख़तरा आरोग्य की अस्वस्थता है । पूरे देश के सर्वेक्षण पर नज़र डालने से पहले आसपास में ही नज़र डालोगे तो उसमें से हिंदुस्तानियों में आहार की ख़राब आदतें आप पायेगे !
इस बात को विस्तार से समझना हो तो यह लेख (Article) पढ़ें ।
ज़िंदगी का नाम ही समस्या है जोकि विघ्न तो नहीं मानव को अनुभव समृद्ध बनाती है। पैसे कैसे कमाएं ये विश्व का सबसे प्रिय कार्य है । उसमें भी गुजराती के रूप में जन्म लेने के साथ ही पैसे के तरफ़ आकर्षण सहज ही है । जो की सिर्फ संपत्ति सर्जन की व्यस्तता में स्वास्थ्य की संपत्ति को नज़रअंदाज़ करने की भुल अधिकतर लोग कर बैठते हैं । यानी की स्वास्थ्य को ख़र्चा करके पहले पैसा कमाओ फिर पैसे को ख़र्चा करके स्वास्थ्य खोजने निकले । विश्व आरोग्य संस्था ने भारत के लिए सबसे बड़ा ख़तरा अनआरोग्य है ऐसा कहा है । आज देश के सर्वेक्षण पर नज़र डालने की जगह अपने आसपास ही नज़र करे तो दस में से सात हिंदुस्तानीयों की खाने की गलत आदत हैं। इस गलत आदत का अर्थ यह है कि जाने अनजाने उनके भोजन की थाली में त्याग करने जैसी सामग्री ही परसी जाती है ।
भारत के 40% लोग ठंडा खाना खाते हैं । उसमें तो महत्तम लोग चार या छः घंटे पहले पकाया हुआ भोजन खाते हैं । सो दर्द की एक दवा के रूप में गर्म खाने की बात आयुर्वेद में कही गई है ।
दूसरी नई बात यह है कि आरोग्य संबंधी सलाह किसी को दो तो यह बात किसी को अच्छी नहीं लगती ।
भारत के लोग जो वह एक समय मज़बूत कहे जाते थे वे अभी विविध रोगों से घिरे हुए रहते हैं । देश के 20% युवाओं को बिना कारण सिर में दर्द रहता है । बहुत छोटी उम्र में ली जाने वाली दवा शरीर की आंतरिक संरचना को गंभीर नुक़सान पहुँचाती है ।नई पीढ़ी के कॉर्पोरेट अधिकारी भी आराम-विराम की अपनी ग़लत आदत के कारण शरीर पर जुल्म करते हैं । विकसित राष्ट्रों में भी कॉर्पोरेट कल्चर है । हर एक समस्या का हल पैसे में ही है ऐसी मान्यता वर्षों से घर कर गई है । वो शायद ग़लत भी नहीं है ।लेकिन मात्र उसे ही एकमात्र लक्ष्य बनाकर लाखों ख़र्च कर देने पर भी ना मिले ऐसा स्वास्थ्य खो दे । ऐसी नौबत आएगी पल पल मेहनत करके कमाया हुआ पैसा हॉस्पिटलों के बील में बहे इससे अच्छा स्वास्थ्य के भरण पोषण पर ध्यान दें और यह इसलिए भी ज़रूरी है कि कम से कम कमाई भी मज़ा दे सकती है । कम कमाई से भरपूर सुख लेनेवाले व्यक्ति भी है । भारत थोड़ा बहुत बच गया है जिसका कारण गाँवों की ज़िंदगी है ।
गांवों में परंपरा के अनुसार आहार विहार अभी भी चालू है । वहाँ अभी भी स्वास्थ्य और दीर्घायु के दृष्टांत देखने को मिलते हैं ।
विश्व आरोग्य संस्था के द्वारा किए गए सर्वेक्षण बताते हैं कि भारत के पढ़े लिखे लोगों में से मात्र 8 प्रतिशत नागरिकों के डाइट चार्ट परफेक्ट है ।
व्यायाम को छोड़कर मात्र धन प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढ़ना ये अपने हाथों से पैर पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है । थाली में परोसे जाने वाले दाल, चावल, सब्ज़ी, रोटी को देखने के बदले गुलाब जामुन प्राप्त करने के लिए संघर्ष करनेवाले अनेक लोग ऐसे हैं जीनकी थाली में गुलाब जामुन परोसे जाते हैं और डॉक्टर्स ने उन्हें मना किया होता है । ऐसी ही स्थिति में नहीं फँसना वो ही बुद्धिशाली मनुष्य के लक्षण है ।
अब जो नए ख़तरे की तरफ़ विश्व स्वास्थ्य संस्था ने ध्यान आकर्षित किया है वो है कृषि उत्पादन की हल्की गुणवत्ता रासायनिक खादों के कारण फल फलादि सब्ज़ी, भाजी अनाज की गुणवत्ता को बहुत नुक़सान होता है ।
इस संस्था के एक निरीक्षण के अनुसार भारत के श्रीमहंत थोड़े समय में ही भारतीय कृषि उत्पादन का त्याग कर के विदेश से उच्च गुणवत्ता युक्त आयती आहार लेने लगेंगे । तंदुरुस्ती की मास्टर चाबी भारत ने रासायनिक खादों के अति उपयोग के कारण गुमा दी है ।
गुजरातियों की तो अलग ही दुनिया है । व्यापार में उत्कृष्ट व्यापारी के रूप में विश्वभर में ख्याति प्राप्त कर चुके लोगों को आपने खुद के स्वास्थ्य की चिंता करने का समय अब आ चुका है। समृद्धि के शिखर पर पहुँचने के साथ – साथ वहाँ छाती निकाल कर खड़े रहने की क्षमता भी रखना ज़रूरी बन गया है। इसके लिये स्वास्थ्य तरफ की सभानता जरूरी बन गई है। आयुर्वेद तो हक़ीक़त में एक जीवन शैली है, जिसकी उंगली पकड़ कर चलनेवाला स्वस्थता से ज़िंदगी और प्रकृति का आनंद प्राप्त कर सकता है। वह कोई परिस्थिति या तो एलोपैथी का आश्रित नहीं बनता है। हमारी जो प्राचीन थाली है उसमें अजब प्रकार की आरोग्यदायी मेजिक मिक्स प्रणालिका है, परंतु फास्टफूड के हमलों ने पूरी डाइनिंग डिज़ाइन बदल दी है।
अब तो गुजरतीओं की शादियों में होनेवाले भोजनमेले में भी ज्यादा फास्टफूड की चीजें चलती है। कभी भी शाम के भोजन को छोड़ना मतलब बारबार चूल्हे को ठंडा रखना वह गुजरातीयो की तीन या चार सदी पुरानी पहचान है। शाम को घर पर ही खाना खाना पड़े वह बहुत सुखी परिवार माने नहीं जाते। परंतु वास्तविकता यह है कि सुबह शाम नित्य जो अपने घर पर ही भोजन लेते है वह सचमुच सुखी परिवार है। विश्व आरोग्य संस्था ने दूसरी एक बात पर ध्यान केंद्रित किया है कि आजकल भारतीय बच्चे जो दूध पीते है उसका नये सिरे से वैज्ञानिक परीक्षण और मूल्यांकन कराना जरूरी है। यह काम संशोधक करे या तो सरकार करे, क्योंकि भारत में जितना दूध उत्पादन होता है उसके कई गुना ज्यादा बिकता है।
गुजरात मे अब एक नया ट्रेंड शुरू हुआ है। जिनके पास अपने फार्म हाउस या फेक्टरी के पीछे थोडी जगह है वह खुद गीर या तो देसी गाय रखने लगे है। गुजरात की महाराष्ट्र तरफ की सरहद देखो तो देशी गाय दक्षिण भारत जाने लगी। ट्रक भर भर के देशी गाय दक्षिण भारत जाने लगी। राज्य सरकार ने कहने के लिये खात पर प्रतिबंध रखा है परंतु उसके अमल करने का कोई भी लक्षण नजर नही आता। गुजरती प्रजा अभी दूध पीती है, परंतु उस दूध पर उसका पहले जैसा विश्वास नहीं है। कई अभ्यासियों ने उसका विकल्प ढूंढ लिया है जैसे कि बादाम का दूध , काजू का दूध, परंतु वह महेंगे होने के कारण व्यावहारिक नहीं है। गुजरात मे समग्र परिवार में एक व्यक्ति तो शर्दी खाँसी का भोग बनी होती है। यह दुष्चक्र चलता ही रहता है और एक के बाद एक सबको होता है। यह अभी भी चलेगा क्योंकि गुजरती लोग सर्दी खाँसी को सब रोगों के मूल के रूप में जानते नही है।
अब, मैं जल्द से जल्द जेल से बाहर आऊँ । देश-विदेश के अनेकानेक लोग ऐसा चाहते हैं । लंबे समय तक कारावास में मुझे देखना हृदय विदारक है । अवश्य, मैं आऊँगा – आपकी प्रतीक्षा का अंत होगा ! धीरज रखें ।