नवरात्रि विशेष : निर्भयता के गुण को समझने की आवश्यकता है !

नवरात्रि विशेष : निर्भयता के गुण को समझने की आवश्यकता है !

निर्भयता के गुण को समझने की आवश्यकता है !

दो अक्टूबर को सत्य और अहिंसा के पुजारी महात्मा गांधी बापू का जन्मदिन है । अगले दिन से सबसे बड़े हिंदू त्योहार, नवरात्रि की शुरुआत होती है । शक्ति पूजा शुरू होगी. साधना पर्व का उदय होगा । समय के साथ-साथ नवरात्रि का उत्सव भी दो भागों में बंट गया है । पुरानी पारंपरिक नवरात्रि कुछ गाँवों में बची हुई है । गाँव के चौराहे पर गरबी की स्थापना की जाती है । आदमी गरबी गाते हैं । इसके बाद महिलाएँ गरबा खेलती हैं । नवदुर्गा की महिमा नगाड़े और शरणाई या ढोल के साथ गाई जाती है ।

शहरों में अत्याधुनिक परिधानों और इलेक्ट्रॉनिक वाद्ययंत्रों के साथ डिस्को डांस के साथ-साथ गरबा या डांडिया रास खेलना एक अलिखित फैशन बन गया है । शहरों में शायद ही किसी को प्राचीन गरबा मुखड़ा याद होगा । मुट्ठी भर चावल और घी का है दिया, श्रीफल लेकर जाए रे, चलो चलो गब्बर गोख जाए रे… या फिर पंखिड़ा तू उडी जाजे पावागढ़ रे गरबे रमवानुं मारी माँ ने कह जे रे… ‌ऐसा गरबा अब कम ही सुनने को मिलता है । माताजी के गरबे में भी आधुनिकता आ गई है ।

चाहे प्राचीन गरबा गाना हो या पुरातन गरबा घुमाना हो, नवरात्रि के उत्सव में एक तरह की मर्यादा बनाए रखना जरूरी है । खिलाड़ियों की वेशभूषा, नृत्य मुद्राएं, भाव-भंगिमाएँ ऐसी नहीं होनी चाहिए कि मर्यादा चूक जाए । अगर आप दूसरों को आकर्षित करने के चक्कर में भटक गए तो जिंदगी भर पछताओगे । वैसे, प्रफुल्ल चंद्र नटवरलाल भगवती कारी 1950 के दशक में सुप्रीम कोर्ट में एक माननीय न्यायाधीश थे । उन्होंने एक मामले में कहा कि महिलाओं को आधुनिक दिखने के लिए भड़कीले कपड़े पहनने से बचना चाहिए । इस बयान (शब्द रूपी मार) ने काफी विवाद खड़ा कर दिया था । सच कहूँ तो उनका टकराव सामयिक था ।

यदि किसी के अंग खुले वस्त्र पहने हुए हैं और यदि किसी की आंखें दोषपूर्ण हैं, तो दोष केवल दोषपूर्ण द्रष्टा का नहीं है । यह एक तरफा बात थी । आधुनिक पहनने वाले भी उतने ही जिम्मेदार हैं । उस दृष्टि से गरबा का अर्थ समझना होगा । गरबो शब्द मूल शब्द गर्भ से आया है । गर्भ में दीपक का अर्थ है गर्भ में भगवान का वास । जैसा कि शरीर और ब्रह्मांड में है । गर्भ में दीपक अज्ञान से भरे शरीर में ज्ञान के दीपक का प्रकाश है । इस लिहाज से हर महिला घूमता हुआ गरबा खेलती है । ईश्वर का वास सबके शरीर में टिमटिमाती लौ के रूप में रहता है । गरबा खेलते समय या डांडिया रास लेते समय गरबा के इस सार को निरंतर याद रखना चाहिए । यह महत्वपूर्ण है कि गाए जाने वाले छंदों के शब्द आधुनिक हों, अस्पष्ट न हों ।

एक और बात । हर मोहल्ले, गली, समाज, क्षेत्र की बहन-बेटियों की सुरक्षा करना स्थानीय युवाओं की जिम्मेदारी है । गरबा नृत्य में बाहर से आए युवाओं का शामिल होना स्थानीय युवा शक्ति की लापरवाही मानी जाएगी । जिस तरह गरबा गायन में लय बनाए रखना जरूरी है, उसी तरह स्थानीय युवाओं को आई ऑयल लगाकर अपनी आंखें खुली रखनी चाहिए, यह आज की महती जरूरत है । नृत्य के उत्साह में इस जिम्मेदारी को भूल जाना अक्षम्य है । यह बात स्वयं नवदुर्गा हमें समझाती हैं । जब इंसान के अंदर जानवर जाग जाता है तो एक माँ भी अपने बेटे को मारने से नहीं हिचकिचाती ।

असुर का अर्थ है गुमराह (राह से भटके) हुए बच्चे । नाम कुछ भी हो, चण्डमुण्ड कहो, महिषासुर कहो, वे भी माँ के गर्भ से जन्मे और भटके हुए बच्चे हैं । माता उनमें जागृत राक्षसी तत्वों को परास्त करने के लिए अपने हाथों में त्रिशूल और खड़ग उठाती हैं । गरबे खेलने वाले हर युवा को ये बात खास तौर पर याद रखनी चाहिए । आसुरी तत्व को ख़त्म करना है । कवि ने यह भी कहा है, अब के पापी के लिए दुनिया का पाप दोगुना हो जाएगा… रोमियो की आँखों में दिखाई देने वाले विकार को नष्ट करने के लिए । यह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है । यदि आप इतनी सतर्कता दिखा सकते हैं तो आपको गाने की जरूरत है- रंगे रमे आनंदे रमे आज नवदुर्गा रंगे रमे… यदि इस विनम्र सुझाव को नवरात्रि मनाते समय ध्यान में रखा जाए, तो हर किसी के व्यक्तित्व में रंगीन आनंद और उल्लास उभर आएगा । हमारी बहनें-बेटियाँ असामाजिक तत्वों का शिकार बनना बंद कर देंगी । कहा है चंद में, ध्यान से पढ़ो वीरा…!

– मुद्दे की बात – अजित तोता

Leave comments

Your email is safe with us.

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.