हर वर्ष भादो मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी के रुपमें मनाया जाता है । यह दिन विशेषकर ‘राधा’ के स्मरण-चिन्तन का दिन है व बड़ा प्रेरक दिवस है ।

श्रीमद् भागवत में वर्णित ‘रासलीला’ में राधा का संकेत मिलता है । ‘राधा’ का चरित्र – उनकी विशेषता – का वर्णन कर पुराणों में और संस्कृत साहित्य के ग्रंथों में विस्तार से किया गया है ।

संस्कृत साहित्य में राधा का सर्वप्रथम उल्लेख सातवीं सदी में कवि भट्ट नारायण के ‘वेणी संहार’ नाटक में मिलता है । नौंवी सदी के आनंदवर्धनकृत ‘ध्वन्यालोक’ नामक ग्रंथ में राधा महिमा का श्लोक है । बारहवीं सदी में जयदेव ने ‘गीत गोविंद’ की रचना की, जिसमें सर्वप्रथम राधा को कृष्ण की प्रेमिका बताया है और बडा मधुर सरस वर्णन है ।

श्रीमद् भगवत के दशम स्कंध के अध्याय 26 से 30 को “रासपंचाध्यायी’ के रूप में जाना जाता है । 26वें अध्याय के अंत में कृष्ण गोपीयों के साथ रास रचाते हैं ।

‘गर्ग संहिता’ में कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन है । ब्रह्मवैवर्त पुराण के ब्रह्मखंड में तीनों लोकों के उपर गोलोक का वर्णन है जिसमें कृष्ण ने किया सृष्टि सर्जन राधा के मनोहर स्वरुप का वर्णन है ।

कृष्ण स्वयं राधा की महिमा गाते है ।

यथा त्वं च तथाहं च भेदो हि नावचोर्धुवम ।
यथा पृथित्वां च धावल्यं यथाग्न्नौ दाहिका सति ।।

जो (राधा) तू है, वही मैं (कृष्ण) हूँ । हमारे दोनों में कुछ भी भेद नहीं । जैसे दूध में धवलता, अग्नि में दाहकता,भूमि में गंध है वैसे ही मैं तुझमें सतत रहा / बसा हूँ । (ब्रह्मवैवर्त पुराण)

गोकुल के वृषभानु नामक गोप की कलावती नामक पत्नी से राधा का जन्म हुआ । राधा कृष्ण की अंतरंग शक्ति है ।

राधा का उल्टा होता है धारा । जिसकी धारा- प्रवाह – वृत्ति अपने प्रियतम के प्रति अखंड – अबाधित- अनवरत रूप से बहती है वही तो है राधा ! ! !

राधाष्टमी की बधाई ।

 

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