Janmashtami Special | Shri Krishna Divya Charitra – श्री कृष्ण दिव्य चरित्र
जन्माष्टमी… कृष्ण का नाम लेते ही रस की अनुभूति है, जिसमें कर्षण है अर्थात् खिंचाव है, आकर्षण है, आनंद है, सुख है, शांति है, उत्सव है, पौरुष है, वो है कृष्ण… जो दुःख के समय भी मलिनता को नहीं प्राप्त होता, वो है कृष्ण… जो हर परिस्थिति में सम रहता है, वो है कृष्ण… जो हर परिस्थिति का आनंद उठाता है, जो हर परिस्थिति का उपयोग करता है, वो है कृष्ण… जो पुरुषार्थी है वही है कृष्ण… देखिए, जेल में वो पैदा हुआ और पैदा ही जिनका जेल में होना – इससे तो बड़ा क्या अपशकुन हो सकता है फिर भी कभी भगवान कृष्ण के जीवन में मलिनता, दुःख, तनाव या चिंता की या भय की रेखाएँ देखने को नहीं मिलती, यही तो श्रीकृष्ण है । बहुत कुछ सीखने को मिलता है भगवान जगद्गुरु श्रीकृष्ण के जीवन से… इसलिए तो वह जगद्गुरु है । ‘कृष्णम् वन्दे जगद्गगुरुम्’ – कहकर शास्त्रों ने उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की है । हमें भी भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से, उनके सद्गुणों से बहुत कुछ सीखना है । इसलिए ही हम, वर्ष में एक बार ही ये पर्व तो धाम-धूम से मनाते हैं और लाखों नहीं, करोड़ों-करोड़ों देश और विदेश के नर-नारी नंद घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की… करकर बड़ा उत्सव मनाते हैं । माखन और मिश्री खाते हैं, खिलाते हैं । ये मक्खन और मिश्री तो भगवान ने ग्वाल-बालों के साथ चोरी करके खाया था । बापूजी कहा करते है – बच्चों ! यदि तुम्हें माता-पिता न दें और घर में पड़ा है और तुम चोरी भी कर लेते हो मक्खन की, कोई गुनाह नहीं । कोई पाप नहीं । तो शक्ति सम्पन्न होना, बल सम्पन्न होना, बुद्धि सम्पन्न होना… ये मनुष्य का पहला कर्तव्य है । जब तक शरीर ठीक नहीं रहेगा तब तक आगे के काम कैसे होंगे ? इसलिए सबसे पहले शरीर को बलवान बनाना चाहिए । शरीर बलवान होगा तो धर्म भी अच्छा होगा । अर्थ भी अच्छा होगा । काम भी अच्छा होगा और जो मानव जीवन के चार पुरुषार्थ बताए हैं न, वो चारों पुरुषार्थ ठीक से सम्पन्न होंगे ।