किसी भी तरह हमें विश्व में युद्ध को रोकना होगा । युद्ध टलना चाहिए । टालना चाहिए । विश्व में युद्ध चाहे कहीं भी हो मानव परेशान होता है । मानवों की हिंसा होती है । हम एक मानव है – हमें मानवता की रक्षा के लिए उन मानव का हमेशा साथ व सहयोग देना चाहिए – जो परेशान है पीड़ित है हिंसा से ग्रस्त है ।
वेर का शमन वेर से नहीं होता ।
नफरत-घृणा को हमें प्रेम सद्भाव से जीतना होगा ।
अतः विश्व में पहुँचा तनाव हो – युद्ध हो – हिंसा हो – उसे रोकने थामने, बंद कराने के हर संभव प्रयास हमें करने ही चाहिए । हिंसक संघर्षों का निवारण किसी भी तरह करना चाहिए ।
युद्ध विराम के हों सार्थक प्रयास युद्ध हमारे मनुष्य होने की अवधारणा और हमारी उपलब्धियों पर भी प्रश्न चिह्न लगाते हैं। बम, बारुद और आग की लपटें मनुष्यता की निशानी नहीं है। शांति ही विश्व समुदाय की उन्नति का द्योतक है।
-पूज्य श्री नारायण साँईं जी
संलग्न – युद्ध के बारे में अध्ययन
दुनिया पर युद्ध कितने भारी ?
अगर 1970 के बाद से कोई भी हिंसक संघर्ष नहीं होता, तो वैश्विक जीडीपी 12% अधिक होती। – जर्नल ऑफ पौस रिसर्च में प्रकाशित अध्ययन
यह अध्ययन इस बात की तस्दीक करता है कि दुनिया ने युद्धों की कितनी बड़ी कीमत चुकाई है और रूस-यूक्रेन तथा इजराइल-ईरान- फिलिस्तीन के बीच के मौजूदा संघर्ष कितने भारी पड़ने वाले हैं।
आज से एक साल पहले यानी 7 अक्टूबर 2023 को जब हमास ने इजराइल पर आतंकी हमला किया उस वक्त इजाइल के प्रधानमंत्री जामिन नेतन्याहू ने कहा था, ‘हमारा देश युद्ध का सामना कर रहा है। अब एक साल के बाद भी इजराइल हमास के बीच जंग जारी है। और जंग पर खुद लहर दिन लगभग 26 करोड़ डॉलर (2185 करोड़ रु.) खर्च कर रहा है। गाजा की हालत तो और भी बदतर है। UNDP के मुताबिक यदि गाजा में आज युद्ध खत्म हो जाता है और पुनर्निर्माण तुरंत शुरू होता है तब भी पिछले साल का आर्थिक स्तर साल 2092 तक ही हासिल हो पाएगा। और अब इस संघर्ष में ईरान के भी कूद पड़ने से न केवल पूरी विश्व शांति के लिए खतरा पैदा हो गया है, बल्कि प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण जैसे मसलों पर स्थिति के और भी बदतर होने की आशंका गहरा गई है। करीब ढाई साल पहले शुरू हुआ रूस और यूक्रेन का युद्ध अब भी जारी है। युद्ध भले ही संघर्षरत शासकों के अहम को तुष्ट और उनकी सियासत को पुष्ट करते हों, लेकिन मानवता को इसकी गंभीर कीमत चुकानी पड़ती है और चुका भी रही है।
जंग के इस तरह से हो रहे 5 बड़े नुकसान
- आर्थिक क्षतिः भारतीय जीडीपी से 5 गुना ज्यादा खर्च युद्धों पर हो रहा
युद्ध का आर्थिक प्रभाव व्यापक है। इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर युद्धों और हिंसा का वार्षिक आर्थिक प्रभाव 19.1 ट्रिलियन डॉलर है। यह राशि वैश्विक जीडीपी का लगभग 13.5% है और भारतीय जीडीपी का पांच गुना है। यह भारत, ब्रिटेन और जापान की कुल जीडीपी से भी ज्यादा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की 2023 की एक रिपोर्ट बताती है कि संघर्ष प्रभावित देशों में आर्थिक विकास दर औसतन 2-3% कम होती है।
- जनहानिः पिछले दो साल में ही दो लाख 33 हजार जानें चली गई
युद्ध के आर्थिक प्रभाव तो व्यापक होते ही हैं, लेकिन इससे भी ज्यादा नुकसान जनहानि के तौर पर होता है। पेंटागन की एक नवीनतम रिपोर्ट में बीते साल के दौरान हुए युद्धों मेंहु में हुई जनहानि का अनुमान लगाया गया है। इसके अनुसार युद्ध में शामिल केवल चार देशों- रूस, यूक्रेन, फिलिस्तीन और इजराइल में ही 2 लाख 33 हजार लोगों को को जंग की वजह से अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। इनमें सैनिक और आम नागरिक दोनों शामिल हैं। यह आंकड़े डरावने हैं। - भुखमरीः युद्धग्रस्त देशों में कुपोषण 30% व भोजन की कमी 40% अधिक युद्ध और भुखमरी का गहरा संबंध है। विश्व खाद्य कार्यक्रम की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार युद्ध प्रभावित देशों में लगभग 60% लोग खाद्य असुरक्षा का सामना करते हैं। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 के अनुसार, युद्धग्रस्त देशों में भुखमरी का स्तर शांतिपूर्ण देशों की तुलना में 40% अधिक है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की 2023 की रिपोर्ट बताती है कि संघर्ष वाले क्षेत्रों में कुपोषण दर 30% तक अधिक होती है। यह न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए खतरनाक है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के विकास को भी रोकता है।
- शिक्षाः युद्ध की वजह से 7.5 करोड़ बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे युद्ध शिक्षा व्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित करते हैं। यूनेस्को की 2023 में आई रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग 25 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित हैं, जिसमें 7.5 करोड़ बच्चे सीधे तौर पर युद्ध और संघर्ष के कारण प्रभावित हुए हैं। इसमें युद्ध के कारण स्कूलों का नष्ट होना एक प्रमुख कारण है। अकेले यूक्रेन में ही 3790 स्कूल नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए हैं। फिलिस्तीन जैसे देशों में तो स्थिति और भयावह है।
- सेहतः युद्धग्रस्त देशों में संक्रामक रोगों का प्रसार 45% तक ज्यादा युद्ध स्वास्थ्य सेवाओं पर कई दुष्प्रभाव डालते हैं। इसमें सबसे ज्यादा जोखिम बच्चों पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर दोगुनी तक है। इसके अलावा लैंसेट मेडिकल जर्नल में 2023 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार युद्ध प्रभावित क्षेत्रों में संक्रामक रोगों का प्रसार 45% अधिक होता है। यानी बीमारियों का फैलाव अधिक होता है।
अगर युद्ध न हों तो…
- यूएन और स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के संयुक्त अनुमान के अनुसार, यदि वैश्विक सैन्य खर्च का 10% भुखमरी पर खर्च किया जाए तो 2030 तक 69 करोड़ लोगों को भुखमरी से मुक्त हो सकते हैं।
- यूनेस्को के अनुसार सैन्य खर्च का 5% शिक्षा पर खर्च करने से 7.5 करोड़ बच्चों को शिक्षा मिल सकती है।
- डबल्यूएचओ के अनुसार युद्ध पर खर्च होने वाली राशि का 2% स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करने से वैश्विक स्तर पर 10 करोड़ लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकती हैं।
20 लाख परिवारों को घर मिल सकते हैं, अगर सैन्य खर्च का 0.5% आवास पर खर्च होने लगे।
5 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड कम उत्सर्जित होगी, अगर सैन्य खर्च का 3% पैसा पर्यावरण पर खर्च हो तो।
- हैबिटेट फॉर ह्यूमैनिटी, यूनेस्को, यूएन और डबल्यूएचओ
पिछले 25 वर्षों में हुए ये 5 सबसे खतरनाक संघर्ष
- द्वितीय कांगो युद्ध (1998- 2003): यह युद्ध रवांडा के नरसंहार से उत्पन्न हुआ था। 30 लाख लोग मारे गए थे। यह ‘अफ्रीका का पहला विश्व युद्ध’ कहलाता है।
- सीरिया का गृह युद्ध (2011- वर्तमान): यह युद्ध अरब स्प्रिंग के दौरान शुरू हुआ था, जब राष्ट्रपति बशर अल-असद ने विरोध प्रदर्शनों को दबाने का प्रयास किया था। इसमें 4 लाख 70 हजार लोग मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए।
- इराक युद्ध (2003-2011): अमेरिका ने सद्दाम हुसैन के शासन को समाप्त करने के लिए इराक पर आक्रमण किया था। इसमें 85 हजार इराकी नागरिक मारे गए। इराक आज भी इससे उबर नहीं पाया है।
- अफगानिस्तान युद्ध (2001- 2021): 9/11 हमले के बाद अमेरिका ने तालिबान और अल- कायदा को समाप्त करने के लिए इस युद्ध की शुरुआत की थी। कम से कम 30 हजार अफगानी नागरिक मारे गए और हजारों नाटो सैनिक भी हताहत हुए थे।
- बोको हराम विद्रोह (2009- वर्तमान): नाइजीरिया में इस्लामिक विद्रोह ने इस युद्ध को शुरू किया था। पश्चिमी शिक्षा का विरोध और शरिया कानून लागू करने की मांग थी। कम से कम 11 हजार नागरिक मारे गए और लाखों लोग विस्थापित हुए।
सौजन्य: रसरंग, दैनिक भास्कर , अक्टूबर 6, 2024