अपने भीतर सत्य की, ज्ञान की जिज्ञासा को जाग्रत रखो
इंसान जब पैदा होता है तो उसमें जिज्ञासा स्वाभाविक होती है । जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता जाता है तो वो परिस्थितियों के अनुसार बदलने लगता है । उसे जो सिखाया जाता है वो बिना सवाल के स्वीकार करने लग जाता है । इससे उसकी जिज्ञासा कम होने लगती है । बार-बार एक ही चीज दोहराई जाती है तो उसे लगता है कि यही सच है और यही ठीक है । मानव में जिज्ञासा जन्म से ही होती है । बच्चा घूम-फिरकर, चीजों को समझकर जीवन आगे बढ़ाता है । इसी तरह विज्ञान की तरफ उसका रुझान स्वाभाविक होता है । पर जैसे-जैसे उसे सिखाया या बताया जाता है और जैसी परिस्थितियाँ व परिवेश होता है उस पर काफी कुछ निर्भर करता है ।
व्यक्ति जब बिना सवाल के तथ्य स्वीकारने लग जाता है उसकी जिज्ञासा कम होने लगती है । बार-बार दोहराने से झूठ भी सच लगने लगता है । सौ बार कोई झूठ बोला जाए तो वह सच लगता है । मीडिया किसी को हीरो, किसी को जीरो बना देते हैं बार-बार दोहराकर । वास्तविकता कुछ अलग होती है, बताया कुछ अलग जाता है । और इसीलिए कई लोग हैं जो मीडिया को भरोसेमंद नहीं मानते । मेरे कहने का तात्पर्य है कि किसी ने कहा, मत मानो । जब तक जाँच-पड़ताल न कर लो । प्रमाण न हो, तब तक कही-कहाई, सुनी-सुनाई बातों पर झट से विश्वास मत करो । अपने भीतर सत्य की, ज्ञान की जिज्ञासा को जाग्रत रखो ।