महापुरुषों को पुरस्कार प्रभावित नहीं करते

‘ओजस्वी अध्यात्म’ की महान वेदान्तिक जीवन शैली को आत्मसात् करनेवाले महापुरुषों को लौकिक पद,मान-सम्मान की इच्छा नहीं रहती |

स्वामी रामतीर्थ ने अमेरिका जापान आदि कई देशों में भारतीय वैदिकवेदान्त की फिलसूफी का प्रचार प्रसार किया था | विदेश यात्रा के दौरान उनके ओजस्वी प्रवचनों से कईविदेशी प्रभावित हुए थे | कई विदेशी संस्थानों ने उनको सम्मान-पत्र,पुरस्कार- पत्र दिये थे | भारत लौटतेसमय समुद्री जहाज में जब उनको दिये,तो उन्होंने कहा इन प्रमाण-पत्रों की मुझे कोई जरूरत नहीं | बहा दो-समुद्र में | और सारे सर्टिफीकेट (प्रमाण पत्र) समुद्र में बहा दिये |

मुझे याद है कुछ वर्षो पहले, भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिये जाते पद्मश्री, पद्म विभूषण पुरस्कार के लिए मेरे पिताश्री (संत श्री आसारामजी बापू) केनाम का चयन किया गया था | यह पत्र बापूजी को दिखाया गया तो उन्होंने स्पष्ट मना कर दिया कि ये पुरस्कार-सम्मान मुझे नहीं चाहिये | हाल ही में मुझे ज्ञात हुआ कि कर्णाटक के आध्यात्मिक गुरु श्री सिद्धेक्ष्वर स्वामीजी को भी पद्मश्री पुरस्कार के लिए पसंद किया गया था | लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि संन्यासी होने के कारण उनको किसी भी पुरस्कार में कोइ रूचि नहीं है |”

लौकिक मान-सम्मान-पुरस्कार आध्यात्मिक महानुभावों को आकर्षित नहीं कर सकते और इन सम्मानों को प्राप्त करने में उनकी रूचि नहीं रहती | लोगों की भलाई के कार्य करनेसे उनको मिलने वाला संतोष अधिक महत्व रखता हैं | ये वास्तविकता है | ऐसे महापुरुष भारत का वैभव हैं |

‘सन्त महान्तं सततं नमामि’                          (राजस्थान पत्रिका – २९/१/१८ )

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