इस पृथ्वी पर न जाने कितने जीव जन्म लेते हैं और मृत्यु को प्राप्त होते हैं । पर ‘जन्म कर्म च मे दिव्यं जिनका जन्म दिव्य है, जिनका कर्म दिव्य है, जिन्होंने अपने आप को जान लिया है, जो अपने आत्मानंद में मस्त है ऐसे संत, महापुरुष अरूपी और अनामी होते हुए भी जो नाम – रूप धारण करते हैं ऐसी जिनकी लीला है…
जी हाँ, हम बात कर रहे हैं श्री नारायण प्रेम साँई जी की ।
विश्ववंदनीय सद्गुरु जिनके पिता हैं, जो बापूनंदन लोक लाडले हैं, जो श्री लक्ष्मी माँ के प्यारे हैं। वे जितने सरल, सौम्य हैं उतने ही अटपटे / अनोखे / अलबेले हैं । झटपट किसी की समझ में नहीं आते । उनकी लीलाओं का रहस्य जानना बहुत ही मुश्किल है । ऐसे नररूपधारी श्री साँई अपने शरणागत भक्तजनों को अनंत आनंद वितरण करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लेकर लीला – विलास का विस्तार कर रहे हैं। जिनका प्रेम अवर्णनीय है, जिनका अपने भक्त के प्रति स्नेह जननी से भी अधिक है, वे नर की भांति अनेकों वेश धारण करते है, जिनका श्री विग्रह मात्र पंच महाभूतों की रचना नहीं । कोई समाधि लगाकर भी उनके इस सच्चिदानंद – विग्रह की महिमा नहीं जान सकता । जिनके वास्तविक स्वरुप को न तो देवता जानते है और न ऋषी ही, फिर दूसरा ऐसा कौन प्राणी है जो उनको समझ सके, उनका वर्णन कर सके । भौतिक रूप से न दिखते हुए भी वे हमारे साथ हर पल, हर जगह और सदा है । जैसे समस्त नदी, झरने आदि का परम आश्रय समुद्र है । वैसे ही सबका आश्रय एकमात्र श्री साँई ही है। जो एक होते हुए भी संपूर्ण प्राणियों के अंतःकरणों में स्थित उनके परम हितकारी अंतरात्मा है । जिनके दर्शन व अमृतवाणी प्रोत्साहन व अभिप्रेरणा देते है।
जैसे सूरज से पूछो कि तुम्हारे उदित होने से कितनों को लाभ होता है ? चंद्रमा से पूछो कि तुम्हारी किरणों से कितनी औषधियों को पुष्टि मिलती है और कितनों के ताप दूर होते है, शीतलता मिलती है। जैसे चन्द्रमा को नहीं पता वैसे गंगा, यमुना, नर्मदा, तापी, सिन्धु, कावेरी आदि नदियों के पानी से कितने लाख, कितने अरब टन अनाज पैदा होता है उसका हिसाब नदियों के पास कहाँ… कितनों को जीवन मिलता है सूर्य से, ये सूर्य के पास हिसाब नहीं है, ऐसे ही संतों, महापुरुषों से पूछो तो शायद उन्हें भी नहीं पता होता कि उनकी वाणी कितने अतृप्त हृदयों को तृप्ति देती है… कितने अशांत हृदयों को शांति देती है। इसीलिए कहा है – ‘संत वचन शीतल सुधा, करे तापत्रय नाश ।’ अशांत, दुःखी, शोक संतृप्त विलासी युग के मनुष्यों के लिए एक मात्र श्री साँई शरण ही आधि – व्याधि – उपाधि के तमाम तापों व दुखों से मुक्ति प्राप्त करने का उपाय है। श्री साँई नररूप में साक्षात् परमात्मा है । इस लोक में, मनुष्य लोक में श्री साँई के रूप में ही परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति हो रही है । ऐसे स्वयंप्रकाश, स्वयंसिद्ध, कृपासिन्धु, करुणावत्सल, दीनवत्सल, विश्वकल्याणमय, नररूप में अवतरित लोकलाडले बापूनंदन महायोगी श्री नारायण प्रेम साँई जी के आत्मसाक्षात्कार दिवस की सभी भक्तों को खूब – खूब बधाई…! आज के इस पावन, शुभ, मंगलमय दिवस पर हम सभी को कोई न कोई शुभ संकल्प अवश्य लेना चाहिए। जो मानवमात्र के विकास का सपना अपने हृदय में संजोए हुए हैं, जो भारत को विश्वगुरु बनने की ओर ले जा रहे हैं, हमें भी उनके दैवी कार्यों में जुट जाना चाहिए और अपना जीवन ओजस्वी, तेजस्वी बनाना चाहिए।