कितने निर्दोष जेलों में न होते …
महात्मा गाँधी से सवाल किया किसीने – ‘ऐसी कौन-सी चीज है, जो आपको रात-दिन चिंता करावे और जिसके कारण आपको हमेशा बेचैनी ही रहती हो ?’ बापू गांधीजी एक क्षण रूके फिर बोले – ‘पढ़े-लिखे लोगों में से दयाभाव सूख गया है, इस बात से मुझे हमेशा चिंता रहती है !’
कितनी मस्त-सच्ची और वास्तविक बात बोली उन्होंने ! अगर दया का अंश थोड़ा भी होता न्यायालयों में बैठे हुओं में, सत्ता में बैठे हुओं में, तो मैं, बापूजी और न जाने कितने निर्दोष जेलों में न होते ।